In Depth: डॉनल्ड ट्रंप के 'धोखे' का प्रधानमंत्री मोदी ने इस अंदाज में दिया जवाब
नई दिल्ली: आज अमेरिका के बड़बोले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत को एक बड़ा झटका दिया. पेरिस जलवायु समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जो अरबों रूपए और तकनीक मिलनी है उस पर अब ग्रहण लग गया है.
ट्रंप ने 2015 में हुए पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया कि इससे भारत और चीन दुनिया में कचरा फैलाएंगे और अमेरिका अपना नुकसान उठाकर उन्हें पैसा और तकनीक नहीं दे सकता. दुनियाभर के नेताओं ने ट्रंप के इस बयान की आलोचना की है.
रूस में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ट्रंप के इस बड़े फैसले पर जब सवाल पूछा गया कि वो किसकी तरफ हैं तो उन्होंने नाम लिए बगैर कहा कि वो आने वाली पीढ़ियों के हक की तरफ हैं.
इस फैसले का भारत पर कितना बड़ा असर पड़ेगा? ट्रंप की इस दगाबाज़ी से भारत को बड़ा नुकसान होगा. पेरिस समझौते में ये तय किया गया था कि अमेरिका विकासशील और गरीब देशों को पैसा और तकनीक मुहैया कराएगा जिससे वो कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकें लेकिन ट्रंप के समझौता तोड़ने के बाद अब भारत को मिलने वाली अरबों रूपए की मदद नहीं मिल पाएगी.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पीछे क्यों हट गए? पेरिस समझौते के मुताबिक अमेरिका के कोयला उत्पादन पर लगाम लग जाएगी जिसकी वजह से 2025 तक अमेरिका में 27 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी. जबकि भारत को समझौते में छूट मिली हुई है जिसकी वजह से 2020 तक इसका कोयला उत्पादन दोगुना हो जाएगा, मतलब भारत में इससे हजारों नौकरियां पैदा होंगी.
क्यों अहम है पेरिस जलवायु समझौता? करीब 195 देशों ने मिलकर पेरिस में जलवायु परिवर्तन समझौता किया था. इसके तहत कार्बन उत्सर्जन में 28 फीसदी तक कमी लाने का लक्ष्य रखा गया. ये भी तय किया गया कि साल 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखना है.
कार्बन उत्सर्जन हमारी धरती के लिए कितना बड़ा खतरा? गर्मी लगातार बढ़ रही है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इसी का नतीजा है कि समुद्रों का जलस्तर बढ़ता जा रहा है. अगर इसे रोका नहीं गया तो इस सदी के आखिर तक कई देश समेत भारत में समंदर किनारे बसे शहर डूब जाएंगे.
मॉनसून की बारिश के बेहद कम होने से खेती चौपट हो जाएगी. इसका नतीजा होगा कि खाद्यान्न उत्पादन घट जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक इसकी वजह से 2030 तक दुनियाभर में वायु प्रदूषण, भूख और बीमारी से करीब 10 करोड़ लोगों की मौत हो जाएगी.
कार्बन उत्सर्जन में कौन कहां खड़ा है ? इस वक्त दुनियाभर में सबसे ज्यादा चीन 30 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करता है. अमेरिका 15 फीसदी के साथ दूसरे नंबर है, जबकि यूरोपीय संघ 9 फीसदी के साथ तीसरे और भारत 7 फीसदी उत्सर्जन के साथ चौथे नंबर पर है. धरती को प्रदूषित करने में चीन के बाद अमेरिका का ही सबसे बड़ा हाथ है लेकिन ट्रंप की मौजूद नीति के मुताबिक ना तो वो कार्बन उत्सर्जन में कमी करेंगे और ना ही पेरिस समझौते के मुताबिक दूसरे देशों को तकनीक और पैसे देंगे जिससे इसे कम करने में मदद मिल सके.