चंडीगढ़: अकाली दल के कद्दावर नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने केंद्र के नए कृषि कानूनों के विरोध में बृहस्पतिवार को अपना पद्म विभूषण पुरस्कार लौटा दिया. असंतुष्ट अकाली नेता और राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींढसा ने भी कहा है कि वह अपना पद्म भूषण पुरस्कार लौटा देंगे जो उन्हें पिछले साल दिया गया था.


इससे पहले, पंजाब के कुछ खिलाड़ियों ने भी पुरस्कार लौटाने की धमकी दी थी. बादल के कदम का स्वागत करते हुए कांग्रेस की पंजाब इकाई ने कहा कि यह निर्णय ‘राजनीतिक मजबूरी के चलते’ लिया गया है. वहीं, राज्य के मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) ने इसे ‘ड्रामा’ करार दिया है.


बादल के इस कदम से दो महीने से भी अधिक समय पहले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) तीनों कानूनों का विरोध करते हुए बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हो गया था. उनकी पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल ने भी केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि पंजाब में कृषि विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था. पंजाब में शिअद विपक्षी दल है.


बादल ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे पत्र में कहा, “मैं जो कुछ भी हूं वह अपने लोगों के कारण हूं, जिसमें विशेष रूप से आम किसान शामिल हैं. आज जब उनके सम्मान से अधिक बहुत कुछ छीना गया है तो मुझे पद्म विभूषण सम्मान रखने का कोई मतलब समझ में नहीं आता.”


शिअद (लोकतांत्रिक) के बागी नेता सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि बूढ़े लोगों और महिलाओं समेत किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हैं. उन्होंने कहा, “हम भी किसानों के बेटे हैं. हम पुरस्कार का क्या करेंगे? हम उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं.”


बादल को 2015 में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया था. शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि बादल ने केंद्र सरकार द्वारा किसानों को धोखा दिए जाने के विरोध में पद्म विभूषण लौटा दिया है. शिअद ने कहा कि जिस ‘भेदभाव एवं अवमानना से किसानों के शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलन’ के प्रति सरकार बर्ताव कर रही है, उसके चलते उन्होंने यह कदम उठाया है.


बादल ने उम्मीद जतायी है कि राष्ट्रपति अपने पद का उपयोग सरकार को यह कहने के लिए करेंगे कि वह किसानों का विश्वास जीते और देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करे.


प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि वैसे बादल ने इन कानूनों का समर्थन कर अपने राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी भूल की लीपापोती की कोशिश की है और राजनीतिक मजबूरी में यह निर्णय लिया, फिर भी यह स्वागतयोग्य कदम है.


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