पारले का मुनाफा 15.2 फीसदी बढ़ा, कंपनी ने मंदी के कारण 10 हज़ार कर्मचारियों को निकालने की कही थी बात
पारले-जी, मैरी और मोनैको जैसी बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले हर साल 10 हज़ार करोड़ रुपये के बिस्किट्स की बिक्री करती है. पारले-जी देश की सबसे ज्यादा बिकने वाली बिस्किट है.
नई दिल्ली: इसी साल अगस्त के महीने में पारले प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड ने ऐसे संकेत दिए थे, कि बिस्किट की बिक्री घटने की वजह से कंपनी 10 हज़ार कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है, लेकिन अब कंपनी का मुनाफा बढ़ने की खबर आ गई है. रिपोर्ट्स के मुताबकि वित्त वर्ष 2018-19 में पारले बिस्किट्स का शुद्ध मुनाफा 15.2 फीसदी बढ़ गया है. हाल ही में कंपनी ने और भी कुछ टॉप बिस्क्टि्स बनाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर सरकार से जीएसटी में कटौती करने की मांग की थी.
बिज़नसे स्टैंडर्ड की वेबसाइट ने बिज़नेस प्लैटफॉर्म टफलर के हवाले से खबर दी है कि पारले बिस्किट्स का वित्त वर्ष 2018-19 में शुद्ध मुनाफा 410 करोड़ रुपये रहा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में ये 335 करोड़ रुपये ही था. इस साल कंपनी का कुल रेवेन्यू 6.4 फीसदी बढ़ा है, जिससे इसकी आय 9,030 करोड़ रुपए हो गई है, जबकि पिछले साल कंपनी का रेवेन्यू 6 फीसदी की दर से बढ़ा था और आय 8780 करोड़ रुपये हुई थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पारले-जी, मैरी और मोनैको जैसी बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले हर साल 10 हज़ार करोड़ रुपये के बिस्किट्स की बिक्री करती है. पारले-जी देश की सबसे ज्यादा बिकने वाली बिस्किट है. कंपनी की 10 फैक्ट्रियां हैं, जिनमें करीब एक लाख लोग काम करते हैं. इसके अधिकतम उत्पादों की बिक्री ग्रामिण इलाकों में होती है.
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पारले प्रोडक्ट्स के कैटगरी हेड मयंक शाह ने जताई थी चिंता गौरतलब है कि अगस्त में न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत करते हुए पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने कहा था कि पारले के बिस्किट की बिक्री में भारी गिरावट का मतलब है कि कंपनी को उत्पादन में कमी करनी पड़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप 8,000-10,000 लोगों की छंटनी हो सकती है. उन्होंने कहा था, "स्थिति बेहद खराब है, इतनी कि अगर सरकार तुरंत हस्तक्षेप नहीं करती है तो हम इन पदों को खत्म करने के लिए मजबूर हो सकते हैं.'' मयंक शाह ने कहा कि 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से पारले बिस्कुट के पारले-जी जैसे लोकप्रिय प्रोडक्ट की मांग गिर गई है.
उन्होंने कहा था कि ज्यादा टैक्स ने पारले को प्रत्येक पैक में बिस्किट की मात्रा कम करने के लिए लिए मजबूर किया है, जिससे ग्रामीण भारत में कम आय वाले उपभोक्ताओं की पारले के बिस्कुट के लिए मांग घटी है. ग्रामीण भारत पारले के राजस्व में आधे से अधिक योगदान देता है.
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