संसद में आवाज दबाने के लिए सांसदों का माइक किया जाता है ऑफ?
सदन में विपक्षी सांसदों के बोलने पर रोक लगाने का मामला नया नहीं है. अटल बिहारी जब विपक्ष में होते थे, तो वे भी इस तरह का आरोप लगाते थे. उन्होंने सुझाव दिया था कि नए सांसदों बोलने का ज्यादा वक्त मिले.
संसद के भीतर विपक्षी सांसदों के माइक ऑफ का मुद्दा तूल पकड़ने लगा है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का 6 मार्च को ब्रिटेन के हाउस ऑफ पार्लियामेंट में माइक ऑफ पर दिए बयान का विवाद अभी थमा नहीं था. इसी बीच लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने माइक ऑफ को लेकर स्पीकर ओम बिरला को एक पत्र लिख दिया है.
अधीर ने कहा है कि पिछले 3 दिनों से उनका माइक म्यूट है और वे संसद में बोल नहीं पा रहे हैं. सरकार विपक्षी सांसदों को चुप कराने के लिए सदन में प्रायोजित व्यवधान उत्पन्न कर रही है. चौधरी ने लेटर में आगे कहा कि सदन में विपक्षी सांसदों को बोलने नहीं देना लोकतंत्र का अपमान है.
अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर को लिखे पत्र में कहा है कि सरकार राहुल गांधी की छवि खराब करने की साजिश रच रही है. सदन में सरकार की इस साजिश का भंडाफोड़ करने के लिए मुझे बोलने नहीं दिया जा रहा है. उन्होंने स्पीकर से विपक्षी सांसदों को ज्यादा बोलने का अवसर देने की मांग की है.
राहुल के किस बयान पर मचा है बवाल?
6 मार्च को हाउस ऑफ कॉमन्स के ग्रैंड कमेटी रूम में विपक्षी लेबर पार्टी के भारतीय मूल के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने राहुल गांधी के साथ एक मीटिंग सेमिनार आयोजित किया था. इस मीटिंग में कांग्रेस के नेता सैम पित्रोदा भी शामिल थे.
इसी सेमिनार में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के अपने अनुभव शेयर किए. राहुल का इस दौरान माइक ऑफ हो गया, जिस पर उन्होंने कहा कि लोकसभा में माइक ऑफ कर दिया जाता है. आप कितना भी ठीक कर लें, वहां माइक ऑन नहीं हो पाता है.
राहुल गांधी के बयान को सरकार ने देश के अपमान से जोड़ दिया है. सरकार का कहना है कि विदेश में जाकर भारत के लोकतंत्र को राहुल गांधी नीचा दिखा रहे हैं. इसलिए राहुल गांधी को लोकसभा में माफी मांगनी चाहिए.
लोकसभा में माइक ऑफ पर राहुल के दिए बयान की वजह से संसद में भी गतिरोध जारी है. हंगामे की वजह से पिछले 4 दिन से संसद की कार्यवाही नहीं चल पा रही है.
माइक ऑफ का मुद्दा सदन के बाहर भी गरमाया, 2 बयान
1. मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस अध्यक्ष- प्रधानमंत्री मोदी देश को तानाशाही तरीके से चला रहे हैं. हम अडानी शेयरों की जांच के लिए संसद में जेपीसी के गठन की मांग कर रहे हैं. जब हम इस मुद्दे को उठाते हैं, तो हमारा माइक बंद कर दिया जाता है और सदन में हंगामा शुरू हो जाता है.
2. जगदीप धनखड़, राज्यसभा के सभापति- राज्यसभा में आज तक माइक ऑफ नहीं हुआ है. कुछ लोग देश के बाहर जाकर कहते हैं कि संसद में माइक बंद कर दिया गया. जबकि देश के अंदर इमरजेंसी के समय संकट आया था. उस दौरान माइक भी बंद हुआ था. वह दिन अब कभी नहीं आ सकता.
माइक ऑफ कर आवाज दबाने का आरोप क्यों?
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के सांसदों का आरोप है कि सदन के भीतर सरकार से सवाल नहीं पूछ पाए, इसलिए विपक्षी सांसदों का माइक ऑफ कर दिया जाता है. यह विवाद फरवरी 2021 में राहुल गांधी के एक भाषण के बाद शुरू हुआ था.
राहुल गांधी उस वक्त राष्ट्रपति अभिभाषण पर अपना भाषण दे रहे थे. राहुल सदन में हम दो हमारे दो को लेकर सरकार पर निशाना साध रहे थे. इसी दौरान सदन में सत्ताधारी दल के लोग हंगामा करने लगते हैं, जिसके बाद राहुल गांधी का माइक ऑफ हो जाता है.
अगले दिन कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी इस मुद्दे को उठाते हैं, तो उनका माइक भी ऑफ हो जाता है. कांग्रेस ने दोनों वीडियो अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है.
आवाज दबाने के लिए किया जाता है माइक ऑफ?
पिछले महीने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान लोकसभा स्पीकर ने माइक ऑफ का मुद्दा छेड़ा था. उस वक्त राहुल गांधी ने कहा था कि आप माइक ऑफ तो कर ही देते हैं. राहुल के इस बयान को सत्ताधारी दल के सांसद ने झूठ बताया था.
इस दौरान स्पीकर ओम बिरला नियमों का हवाला देते रहे. बिरला ने कहा कि आपको जो समय मिलता है, उसमें हम पूरा बोलने देते है. दरअसल, माइक ऑफ के पीछे बिरला समय की पाबंदी का हवाला दे रहे थे. आइए जानते हैं सदन चलाने और माइक ऑफ को लेकर क्या नियम है?
स्पीकर और सभापति के पास है संचालन की जिम्मेदारी
लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति संविधान के अनुच्छेद 118 का उपयोग कर सदन को संचालित करने का काम करते हैं. संविधान में संसद के काम भी तय कर दिए गए हैं. इसके मुताबिक संसद कार्य विधान यानी कानून बनाना, मंत्रणा देना, आलोचना करना और लोगों की शिकायतों को व्यक्त करना है.
मंत्रिपरिषद और सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है. संसद में कामों को किस तरह संचालित करना है, ये विशेषाधिकार सभापति व अध्यक्ष को दिया गया है. शोरगुल और हंगामे की स्थिति में सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है.
मूल रूप से संसद में प्रश्नकाल, शून्य काल और बिल या किसी विषय पर बहस होती है. किसी विशेष मुद्दे पर अगर संसद के कोई भी सदस्य अगर स्थगन प्रस्ताव देते हैं तो स्पीकर उसे सरकार के पास भेजता है.
स्थगन प्रस्ताव पर अगर सरकार बहस कराने को तैयार हो जाती है, तो स्पीकर सारे काम रोक कर उस पर चर्चा करवाते हैं. लोकसभा और राज्यसभा में अमूमन हंगामा स्थगन प्रस्ताव को लेकर ही होता है.
नियम और समय सीमा ब्रेक करने पर रिकॉर्ड नहीं होता है बयान
संसद की कार्यवाही को रिकॉर्ड किया जाता है. अगर संचालन के वक्त कार्यवाही में कुछ गलत जाता है, तो उसे स्पीकर हटवा देते हैं. स्थगन प्रस्ताव या किसी मुद्दे पर बहस के लिए समय का निर्धारण किया जाता है. यह काम भी स्पीकर संसदीय कार्य मंत्री और विपक्षी सांसदों से बातचीत के बाद तय करते हैं.
समय निर्धारण के बाद जिस दल के जितने सांसद होते हैं, उसे उतना समय बोलने के लिए मिलता है. पार्टी को इसके लिए स्पीकर के पास वक्ताओं के नाम भी भेजने होते हैं. नाम के आगे समय का भी जिक्र किया जाता है.
बोलने के दौरान जब विपक्षी सांसदों का वक्त खत्म होने लगता है, तो उन्हें अल्टीमेट किया जाता है. समय से अधिक बोलने पर उनका माइक भी ऑफ कर दिया जाता है. ताकि अगले वक्ता अपनी बात सदन पटल पर रख सके.
इसके अलावा, जब सदन में किसी मुद्दे पर हंगामा होता है तो स्पीकर वक्ताओं के माइक को ऑफ कर देते हैं और जो बोलने के लिए अधिकृत होते हैं, उनका ही माइक ऑन रहता है. इसकी वजह संसद की कार्यवाही का रिकॉर्ड होना है.
लाइव प्रसारण भी माइक ऑफ की मुख्य वजह
भारत में संसद का लाइव प्रसारण 1990 के दशक में शुरू हुआ था. 2006 में लोकसभा टीवी का 24 घंटे प्रसारण सेवा शुरू की गई. कार्यवाही का एक-एक चीज लाइव प्रसारण होने लगा.
संसद में इसके बाद हंगामा भी बढ़ गया. सांसद प्रचार पाने के लिए बढ़ चढ़ कर बोलने लगे. कई बार ऐसा हुआ जब कार्यवाही से बयान हटा दिया गया, लेकिन तब तक वो बयान पूरे देश में फैल गया.
लाइव प्रसारण की वजह से भी संसद में माइक ऑफ होने लगा. सिर्फ उन्हीं सांसदों का माइक ऑन किया जाता है, जिन्हें बोलने की परमिशन होती है. बाकी सांसदों के माइक ऑफ कर दिया जाता है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी द हिंदू में लिखे एक ओपिनियन में कहते हैं- सदन में स्पीकर कस्टोडियन होते हैं और कई बार विपक्षी सांसदों को नियम से आगे जाकर बोलने देते हैं, जिससे कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके.
सदन में विपक्षी सांसदों को कम बोलने देने का मामला नया नहीं है. अटल बिहारी वाजपेयी जब विपक्ष में होते थे, तो वे भी इस तरह का आरोप लगाते थे. वाजपेयी ने सुझाव दिया था कि विपक्ष के नए सांसदों को सदन में ज्यादा वक्त दिया जाना चाहिए.
माइक बंद सिर्फ संसद में नहीं, विधानसभा में भी होता है
सिर्फ लोकसभा और राज्यसभा ही नहीं, राज्यों के विधानसभा में भी माननीयों के माइक बंद कर दिए जाते हैं. हाल ही में बिहार विधानसभा में माइक बंद करने की घटना सामने आई. सदन में बीजेपी विधायक लखेंद्र पासवान बोल रहे थे.
इसी दौरान उनका माइक बंद हो जाता है, जिसके बाद पासवान माइक को तोड़ देते हैं. लखेंद्र पासवान के माइक तोड़ने पर सदन में हंगामा मच जाता है. स्पीकर उन्हें 2 दिन के लिए निलंबित भी कर देते हैं.
माइक बंद का राजस्थान समेत कांग्रेस शासित राज्यों में भी जोरशोर से उठा है. राजस्थान विधानसभा में 50 सीटों पर माइक ही नहीं था, जिस पर बीजेपी ने एतराज जताया था.
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश विधानसभा में भी माइक ऑफ का मुद्दा उठ चुका है. यहां विपक्षी पार्टियों की सरकार है. बीजेपी यहां माइक बंद का विरोध कर चुकी है.