Parliament Monsoon Session: जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2023 को मंगलवार (1 अगस्त) को राज्यसभा ने पारित कर दिया. इसमें जैव संसाधनों के संरक्षण, पेटेंट संबंधी आवेदन की प्रक्रिया को सुगम बनाने पर जोर दिया गया है. लोकसभा पहले ही इसे पारित कर चुकी है. इसी बीच इसको लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा.
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस सरकार में पर्यावरण एवं वन क्षेत्र में संरक्षण के मुकाबले कारोबार सुगमता को ज्यादा प्राथमिकता दी जा रही है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि विधेयक में संसद की संयुक्त समिति की ज्यादातर सिफारिशों को शामिल नहीं किया गया.
जयराम रमेश ने क्या कहा?
जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 पहली बार 16 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था. विधेयक में जैव विविधता अधिनियम, 2002 में कई दूरगामी संशोधन थे. प्रक्रिया के तहत विधेयक को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं वन संबंधी स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ’’
उन्होंने कहा, ‘‘विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की बजाय एक संयुक्त समिति का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष सत्ताधारी दल के एक वरिष्ठ और काबिल सांसद हैं. इस समिति के अधिकांश सदस्य भी सत्ताधारी दल के ही हैं. मुझे भी उस समिति में अपनी भूमिका निभाने का मौका मिला था. ’’
क्या दावा किया?
जयराम रमेश ने दावा किया, ‘‘30 जून, 2022 को राज्यसभा में मेरा पिछला कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही संयुक्त समिति की मेरी सदस्यता भी ख़त्म हो गई थी. इसके बाद मुझे इसकी बैठकों में आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि अगले ही दिन से राज्यसभा में मेरा अगला कार्यकाल शुरू हो गया था. ’’
कितनी सिफारिश की गई?
जयराम रमेश ने कहा, ‘‘संयुक्त समिति ने 21 प्रमुख सिफारिशें की हैं. मैं भी उनका पूर्ण रूप से समर्थन करता हूं लेकिन जो बात मुझे पूरी तरह से अस्वीकार्य है, वह यह कि 25 जुलाई 2023 को लोकसभा और आज राज्यसभा के पारित विधेयक में समिति की इन सिफ़ारिशों में से एक को छोड़कर बाकी सभी को ख़ारिज़ कर दिया गया है. ऐसा पहले शायद ही कभी हुआ हो, मेरी याद में तो कभी नहीं हुआ है. ’’
उन्होंने आरोप लगाया कि संयुक्त समिति में शामिल सभी सदस्यों की मेहनत का अपमान है.
जयराम रमेश ने यह दावा भी किया, ‘‘मोदी सरकार के दावों और वास्तव में उनके किए गए कार्यों के बीच जो भारी अंतर होता है, उसका यह एक और उदाहरण है. पर्यावरण और वन के क्षेत्र में सरकार कारोबार सुगमता को सुरक्षा, संरक्षण और सुधार के मुकाबले ज्यादा प्राथमिकता दे रही है.’’
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