Parliament Security Breach: संसद की सुरक्षा में बुधवार (13 दिसंबर) को बड़ी चूक हुई. जिस वक्त लोकसभा की कार्यवाही चल रही थी, उसी दौरान दो लोगों ने दर्शक दीर्घा से छलांग लगी दी और स्मोक केन के जरिए सदन में पीले रंग का धुआं फैला दिया. इन दोनों को तुरंत हिरासत में ले लिया गया. कुल मिलाकर इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक फरार आरोपी की तलाश की जा रही है.
संसद पर 13 दिसंबर, 2001 को हुए हमले के बाद इसकी सुरक्षा को बेहद की कड़ा कर दिया गया. हालांकि, बुधवार को जिस तरह से सुरक्षा में सेंधमारी हुई है. उसने कई सवालों को जन्म दिया है. सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात ये है कि संसद की सुरक्षा में ये चूक उस दिन हुई, जब देश पर संसद हमले की 22वीं बरसी थी. ऐसे में आइए जानते हैं कि संसद में वर्तमान में एंट्री के नियम कैसे हैं और 2001 में हुए हमले के बाद सुरक्षा में क्या सुधार किए गए हैं.
संसद में कैसे मिलती है एंट्री?
पार्लियमेंट कॉम्पलैक्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स और एक स्पेशलाइज्ड डिपार्टमेंट, जिसे 'पार्लियमेंट सिक्योरिटी सर्विस' (पीएसएस) कहा जाता है, के जरिए की जाती है. पुलिस कॉम्पलैक्स के आसपास के क्षेत्र में लोगों की पहुंच को कंट्रोल करती है. पैरामिलिट्री फोर्स कॉम्पलैक्स के बाहर के क्षेत्र की सुरक्षा करते हैं. कॉम्पलैक्स के भीतर पीएसएस और दिल्ली पुलिस सुरक्षा करती है. पीएसएस का नेतृत्व ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी के पास होता है.
पीएसएस में किसी भी विजिटर के लिए तीन स्तर की सुरक्षा जांच होती है. पहला गेस्ट पास बनाने से ठीक पहले पार्लियमेंट कॉम्पलैक्स के एंट्री गेट पर, दूसरा नए संसद भवन के गेट पर और तीसरा विजिटर के गैलरी में एंट्री करने से ठीक पहले. हर लेवल पर विजिटर की पूरी तरह से जांच की जाती है. उन्हें सदन के भीतर किताब और पेन जैसी चीजें भी ले जाने की इजाजत नहीं होती है. पीएसएस किसी सांसद की सिफारिश के आधार पर कार्यवाही देखने आने वाले विजिटर्स को एस्कॉर्ट करता है.
अन्य लोगों (इसमें सुरक्षा में सेंधमारी करने वाले दोनों भी शामिल हैं) को अधिकतम एक घंटे तक कार्यवाही देखने की इजाजत होती है. उन्हें कड़े सिक्योरिटी प्रोसेस से गुजरना पड़ता है. सारी जांच होने के बाद उन्हें कुछ सुरक्षा कर्मचारी गैलरी में लेकर जाते हैं. सार्वजनिक दीर्घाओं के अंदर भी विजिटर पर सुरक्षा निगरानी जारी रहती है.
सत्र के दौरान संसद की सुरक्षा पीएसएस और दिल्ली पुलिस दोनों संभालती है. सभी दीर्घाओं में, हाउस मार्शल या सुरक्षा अधिकारी पूरी कार्यवाही के दौरान अग्रिम पंक्ति में बैठते हैं. मेहमानों को आगे की पंक्ति की सीटों पर बैठने की अनुमति नहीं होती है.
संसद हमले के बाद कितनी बदली सुरक्षा?
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद पर हमले के बाद सुरक्षा के लिए संसद की ओर जाने वाली सभी मुख्य सड़कों पर वेज बैरिकेड्स लगाए गए. कारों के लिए आरएफ टैग, प्रमुख रास्तों में भीड़ को कंट्रोल करने वाले बैरिकेड्स, विजिटर्स के लिए फोटो पहचान पास और सीसीटीवी लगाए गए. बाहरी गाड़ियों संसद मार्ग के आखिरी हिस्से तक जाने की इजाजत नहीं है. हमले के बाद अधिकृत वाहनों के लिए केवल तीन गेट खुले रखे गए. दो अन्य गेटों को बंद कर दिया गया. इन दोनों में से एक से ही आतंकी घुसे थे.
पूरे पुराने संसद भवन में आरएफ टैग रीडर लगाए गए थे, जो टैग धारकों की गतिविधियों को भी रिकॉर्ड कर सकते हैं. साथ ही दर्जनों सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए थे. सुरक्षा की एक अतिरिक्त लेयर के लिए खोजी कुत्ते का दस्ता खड़ा किया गया. सार्वजनिक प्रवेश केवल एक गेट तक ही सीमित कर दिया गया और विजय चौक से बाहर निकलने का रास्ता विशेष रूप से सांसदों के लिए रिजर्व किया गया. सभी गेट्स पर हैंडहेल्ड विस्फोटक वाष्प डिटेक्टरों सहित लेटेस्ट गैजेट भी रखे गए.
संसद की बाहरी परिधि पर बिजली की बाड़ लगाई गई और रेड क्रॉस रोड और रायसीना रोड पर सीआरपीएफ वॉच टावर बनाए गए. नए संसद भवन में भी बिल्कुल ऐसे ही सुरक्षा की जाती है. हालांकि, नई इमारत में सुरक्षा दायरे को 20 मीटर बढ़ा दिया गया है. बिजली की बाड़ के दायरे का विस्तार किया गया है. मुख्य एंट्री और एग्जिट प्वाइंट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि कोई भी अनधिकृत वाहन अंदर नहीं आ सकता है.
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