Parliament Session: विशेष सत्र के साथ नए संसद भवन में सदन की कार्यवाही का आगाज होने जा रहा है. हालांकि, सोमवार (18 सितंबर) को सत्र का पहला दिन पुरानी संसद में ही आयोजित किया गया, जिसमें 75 सालों के संसद के सफर पर चर्चा की जाएगी. 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी के अवसर पर नई संसद में कार्यवही शुरू होगी और बाकी चार दिनों की कार्यवाही यहीं पर होगी. विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर के लिए आयोजित किया जा रहा है. विशेष सत्र के बाद आगे के सभी सत्र अब नई संसद में ही होंगे तो ऐसे में पुरानी संसद का क्या होगा? यह सवाल इस वक्त हर किसी के दिमाग में होगा. 18 जनवरी, 1927 को पुरानी संसद बिल्डिंग बनकर तैयार हुई और 18 सितंबर, 2023 को इसकी विदाई है.
इन 96 सालों में पुरानी संसद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच भीषण बहसों, जोरदार हंगामों, सांसदों के भाषणों, ऐतिहासिक कानून और विधेयकों के पारित होने की गवाह रही है. इसके साथ देशवासियों का भी एक भावनात्मक जुड़ाव रहा है. हालांकि, अब जगह और सुविधाओं की कमी और टेक्नोलॉजी के बढ़ते दौर के चलते खामियों को देखते हुए सरकार ने नई पार्लियामेंट बिल्डिंग तैयार की है. 64,500 वर्ग मीटर क्षेत्र में तैयार किया गया नया संसद भवन सभी तकनीकी सुविधाओं से लैस है और दोनों सदनों की कैपिसिटी भी बढ़ा दी गई है.
पुरानी संसद का क्या होगा?
मार्च, 2021 में हाउसिंग और अर्बन अफेयर्स के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्य सभा में कहा था कि एक बार नया संसद भवन तैयार हो जाने के बाद पुरानी बिल्डिंग को रिपयेर कर इसे वैकल्पिक इस्तेमाल के लिए रखा जाएगा. सरकार ने कहा कि पुराने संसद भवन को संरक्षित कर रखा जाएगा और यह देश की पुरातात्विक संपत्ति होगी. 2022 की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पुराने संसद भवन को संग्राहलय में तब्दील कर दिया जाएगा. इसमें यह भी कहा गया कि विजिटर्स म्यूजियम में आ सकेंगे और जहां पर फिलहाल संसद की कार्यवाही होती है, वहां और चैंबर्स में भी वह बैठ सकेंगे.
पुरानी संसद के आर्किटेक्ट कौन?
पुरानी संसद देश को नया संविधान मिलने से लेकर पता नहीं कितने ही बिल पास होने की गवाह रही है. ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने 6 एकड़ (24,281 वर्ग मीटर) में 6 साल में पुराना संसद भवन तैयार किया था. नई दिल्ली का msx'#n हिस्सा लुटियंस दिल्ली के नाम से जाना जाता है. यह नाम संसद भवन के आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस के नाम पर रखा गया है. 1927 में संसद का निर्माण कार्य पूरा किया गया था. साल 1956 में इसमें दो और फ्लोर बनाए गए और 2006 में एक म्यूजियम तैयार किया गया, जो ढाई सौ सालों की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत को दिखाता है. 1911 में ब्रिटिश काल के दौरान ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज पंचम और महारानी भारत के दौरे पर आए थे. उन्होंने 12 दिसंबर, 1911 को देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली बनाए जाने का ऐलान किया. दिल्ली में संसद भवन, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक, राजपथ, इंडिया गेट और हेरिटेज इमारतों को बनाने की जिम्मेदारी दो आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को दी गई. 1921 में संसद को बनाने का काम शुरू हुआ और 1927 में यह बनकर तैयार हुई. शुरुआत में इसे काउंसिल हाउस के तौर पर जाना जाता था.
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