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Parliament Winter Session: टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने बीजेपी सरकार को दिए 6 चैलेंज, पूछा- क्या आप चैलेंज स्वीकार करेंगे?

TMC MP Slams BJP: टीएमसी सांसद ने सरकार से शीतकालीन सत्र में महिला आरक्षण बिल पास करने की चुनौती दी है. उन्होंने कहा कि सालों से ये बिल लटका हुआ है.

Derek O'Brien On Parliament Winter Session: तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन (Derek O'Brien) ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और बीजेपी सरकार को खुली चुनौती पेश की है. टीएमसी सांसद ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' में एक लेख के जरिए सरकार के सामने ये चुनौती रखी है. डेरेक ओ ब्रायन अपने लेख में लिखते हैं कि संसद का शीतकालीन सत्र (Parliament Winter Session) बुधवार से शुरू हो गया. लोकसभा में बीजेपी के पास पर्याप्त बहुमत है. वे आसानी से राज्यसभा (Rajya Sabha) में बहुमत का हासिल कर सकते हैं. नंबर उनके पक्ष में हैं, लेकिन क्या इनमें से एक भी मुद्दे को संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में उठाने की उनमें हिम्मत है?

टीएमसी सांसद ने अपने लेख में बीजेपी सरकार के सामने एक दो नहीं बल्कि छह चुनौतियां पेश की हैं. उन्होंने सरकार से इन सभी मांगों के पूरा किया जानें को लेकर सवाल किया है. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन हमेशा से ही केंद्र की एनडीए सरकार के खिलाफ हमलावर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं कि इस बार टीएमसी सांसद ने किन छह चुनौती के जरिए सरकार पर हमला बोला है.

1. महिला आरक्षण बिल

टीएमसी सांसद ने सरकार से शीतकालीन सत्र में महिला आरक्षण बिल पास करने की चुनौती दी है. उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई आरक्षित करने की मांग करता है. 1996 से कई बार पेश किया गया है, लेकिन एक अधिनियम बनने में विफल रहा है. विधेयक के संस्करण 1998, 1999 और 2008 में पेश किए गए थे. इसे 2010 में राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन लोकसभा के भंग होने और नई सरकार के गठन के बाद यह समाप्त हो गया. अपने 2014 के घोषणापत्र में, बीजेपी ने महिलाओं को "राष्ट्र निर्माता" और "संसद और राज्य विधानसभाओं में उनके लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए प्रतिबद्धता" जाहिर की थी. उन्होंने बीजेपी सरकार से दिसंबर 2022 में बिल लाने को कहा. (महिला आरक्षण बिल के बिना भी टीएमसी की 36 फीसदी सांसद महिलाएं हैं).

2. लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति

टीएमसी सांसद ने अपने लेख में सरकार से लोकसभा में एक उपाध्यक्ष नियुक्त करने की मांग की है. उन्होंने कहा, संविधान के अनुच्छेद 93 में कहा गया है कि लोकसभा को सदन के दो सदस्यों को जल्द से जल्द अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनना चाहिए. 15वीं लोकसभा में एम थम्बी दुरई को 71वें दिन डिप्टी स्पीकर चुना गया. यह 1,273 दिन (3.5 वर्ष) हो गया है, क्योंकि लोकसभा में उपाध्यक्ष नहीं है. डिप्टी स्पीकर स्पीकर के अधीनस्थ नहीं होता है. वास्तव में अध्यक्ष को अपना त्यागपत्र उपसभापति को सौंपना पड़ता है, यदि वह ऐसा करना चाहता/चाहती है. बीआर अम्बेडकर ने अध्यक्ष के इस्तीफे को राष्ट्रपति को सौंपने के प्रस्ताव का विरोध करके उपाध्यक्ष के इस कार्य और अध्यक्ष को कार्यपालिका से स्वतंत्र रखने के महत्व पर जोर दिया.

3. ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा

उन्होंने सरकार से शीतकालीन सत्र के दौरान एक ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के लिए विपक्ष से 267 नोटिस स्वीकार करने की मांग की. नियम 267 राज्यसभा सांसदों को नियमित कामकाज निलंबित करने और किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए लिखित नोटिस देने का अवसर देता है. पिछली बार ऐसा नोटिस नोटबंदी के मुद्दे पर नवंबर 2016 में (हामिद अंसारी अध्यक्ष थे) स्वीकार किया गया था. क्या आप इस पर विश्वास कर सकते हैं, छह साल के लिए 267 नोटिस की अनुमति भी नहीं दी गई है? विपक्ष ने मूल्य वृद्धि, किसान आंदोलन, पेगासस आदि जैसे कई मुद्दों पर नियम 267 के तहत चर्चा की मांग की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

4. पीएम को संसद में एक सवाल का जवाब 

उन्होंने कहा कि पीएम को संसद में एक सवाल का जवाब देना है. प्रधानमंत्री ने 2014 से राज्यसभा में एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है. पिछली बार राज्यसभा में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा 2016 में एक प्रश्न का उत्तर दिया गया था. 2014 से पीएमओ ने सात प्रश्नों का उत्तर दिया है. वहीं, इसके विपरीत 2004-2014 तक मनमोहन सिंह के तहत पीएमओ द्वारा राज्यसभा में 85 सवालों के जवाब दिए गए थे. हमारे प्रधानमंत्री इतने शानदार वक्ता हैं. मेरे जैसे विपक्षी सांसदों को यह देखकर खुशी होगी कि वह हमारे सवालों का जवाब देंगे. अब वह गुरुवार की सुबह पूरे 15 मिनट के लिए आते हैं.

5. पूर्व-विधायी परामर्श नीति का अनुपालन

डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि सरकार पूर्व-विधायी परामर्श नीति का अनुपालन करें. 2021 तक संसद में पेश किए गए बिलों में से 75 फीसदी बिना किसी पूर्व परामर्श के पेश किए गए. परामर्श के लिए रखे गए बिलों में से 54 फीसदी विधायी पूर्व परामर्श नीति (2014) द्वारा अनिवार्य 30-दिवसीय परामर्श अवधि का पालन नहीं करते थे. सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम 2019, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम (संशोधन) अधिनियम 2019, दिवाला और दिवालियापन (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2021, 2020 में तीन कठोर कृषि विधेयक जैसे महत्वपूर्ण कानून संसद में बिना किसी परामर्श के पेश किए गए. संसद में संख्या होने से सरकार को सार्वजनिक जांच से बचने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है. क्या बीजेपी यह सुनिश्चित करेगी कि इस शीतकालीन सत्र में पेश किए गए प्रत्येक विधेयक को 30 दिनों के लिए पूर्व सार्वजनिक परामर्श के लिए रखा गया?

6. संसद को निर्धारित दिन तक चलने दें

टीएमसी सांसद ने कहा कि संसद के पिछले सात सत्रों में, सदनों को निर्धारित ति थि से औसतन पांच दिन पहले स्थगित किया गया है. दिसंबर 2020 में, सरकार ने महामारी को संसद को कम करने का कारण बताया, जबकि ऐसा करने का असली कारण निरस्त किए गए कठोर कृषि कानूनों के लिए जवाबदेही से बचना था. संसद की बैठक साल में 100 दिन से भी कम समय के लिए होती है. राज्यसभा आखिरी बार 1974 में उससे ज्यादा दिनों तक बैठी थी. वर्ष 2000 से लोकसभा की प्रति वर्ष बैठकों की संख्या औसतन 121 दिनों (1952-1970) से घटकर 68 दिन प्रति वर्ष हो गई है.

उन्होंने कहा, 2019 में मैंने संसद के तीन सत्रों के लिए एक निश्चित कैलेंडर और प्रत्येक सदन के लिए एक वर्ष में न्यूनतम 100 दिन की बैठक प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए एक निजी सदस्य का विधेयक पेश किया. क्या बीजेपी संसद के लिए एक निश्चित कैलेंडर लाएगी और इसे सालाना 100 दिन (या अधिक) चलने के लिए अनिवार्य करेगी? टीएमसी सांसद ने पूछा कि प्रधानमंत्री जी, क्या आप चुनौती स्वीकार करेंगे?

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