नई दिल्ली: भारत में रक्षा सौदे और सैन्य खरीद पर घोटाले के सवालों का लंबा इतिहास रहा है. सेना के लिए जरूरी साजो-सामान की खरीद में रिश्वतखोरी और अनियमितता के प्रश्न कई सरकारों को परेशान करते रहे हैं. ताजा मामला फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद का है जिसको लेकर सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक रस्साकशी चल रही है. राफेल खरीद में गड़बड़ी पर विपक्ष के सवालों और सरकार की सफाई के बीच संसद की प्राक्कलन समिति ने सरकार को सैन्य सौदों को लिखने के लिए पेशेवर 'अनुबंध-लेखकों' की मदद लेने की सलाह दी है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने संसद में पेश अपनी ताजा रिपोर्ट में सरकार को सलाह दी है कि उसे रक्षा खरीद सौदों का मसौदा तैयार करने के लिए इस काम में दक्षता रखने वाले पेशेवरों की मदद लेनी चाहिए. समिति ने रक्षा मंत्रालय को इसके लिए बाकायदा कुशल अनुबंध लेखकों की टीम तैयार करने का भी मशविरा दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार समिति के सामने पेश हुए स्वतंत्र विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य में बताया कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में अनुबंध लेखन एक विकसित कला है. वहीं, भारत में सैन्य खरीद का तो बहुत अनुभव है लेकिन देश के लिए मददगार सैन्य सौदे तैयार करने का अनुभव मौजूद नहीं है. ऐसे में हमारे खरीद अनुंबध ऐसे बनते हैं जो दूसरे देशों और आपूर्तिकर्ताओं के लिए मददगार साबित होते हैं. विशेषज्ञों ने समिति को बताया कि अनुबंध में छूटे छेदों के सहारे विदेशी कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाती हैं तो साथ ही भारतीय हितों को नुकसान भी होता है.
हालांकि रक्षा मंत्रालय की ओर से समिति के सामने पेश हुए अधिकारी ने अनुबंध में कमियों की बात का खंडन किया. उक्त अधिकारी ने अपने जवाब में समिति को बताया कि सैन्य खरीद सौदों में मोलभाव के लिए बनाई जाने वाली रक्षा मंत्रालय की किसी भी कॉन्ट्रैक्ट नेगोसिएशन कमेटी में एक एक्विसिशन मैनेजर, एक टेक्निकल मैनेजर, एडवाइजर कॉस्ट के अलावा सर्विस हेडक्वाटर व डीजीक्यूए के नुमाइंदे मौजूद होते हैं. अभी तक ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं आया जहां अनुबंध में कमियों के कारण भारत के हित प्रभावित हुए हों.
संसदीय समिति ने रक्षा मंत्रालय और स्वतंत्र विशेषज्ञों का पक्ष सुनने के बाद अपनी सिफारिशों में सरकार को सैन्य खरीद सौदे को भाषाई तौर पर मजबूत करने और इसके लिए पेशेवर अनुबंध लेखकों की मदद लेने की सलाह दी. समिति के मुताबिक सैन्य खरीद के अनुबंध लिखने वाले कुशल लेखकों को तैयार करना वक्त की जरूरत है. इसके लिए समिति ने सैन्य बलों के वरिष्ठ और अनुभवी अधिकारियों की मदद लेने का भी मशवरा दिया.
प्राक्लन समिति ने हिंदुस्तान एअरोनॉटिक्स की फील्ड विजिट के दौरान एक अधिकारी के साथ अनौपचारिक बातचीत का भी रिपोर्ट में जिक्र किया है. रिपोर्ट के अनुसार सरकारी कंपनी एचएएल के अधिकारी ने कहा कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सौदों के तहत बनने वाले विमानों में भी मूल निर्माता कंपनियां भारत को संवेदनशील और उच्च गुणवत्ता की तकनीक नहीं देती हैं. ऐसे में एचएएल को विमानों की पूरी लाइफ साइकल जरूरतों व अपग्रेड के लिए मूल निर्माता पर निर्भर रहना पड़ता है.
सरकारों के लिए परेशानी के सबब बनते रहे हैं. बोफोर्स तोप खरीद से लेकर तहलको टेप और अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर विवाद से लेकर राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर उठा बवाल संसद में सत्तारूढ़ सरकारों के लिए सिरदर्द साबित हुआ है. ऐसे में जरूरी है कि सरकार इस बारे में ध्यान दे और भारतीय निर्माताओं को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में उच्च गुणवत्ता की तकनीक हासिल हो सके.
महत्वपूर्ण है कि विपक्ष सरकार पर इस बात का आरोप लगा रहा है कि राफेल विमान सौदे में उसने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बजाए सीधे उत्पाद खरीद पर जोर दिया. इतना ही नहीं सरकारी कंपनी एचएएल की बजाए अनुभवहीन निजी कंपनी को राफेल निर्माता दासौ एविएशन का ऑफसेट पार्टनर बनने का गलियारा दिया. हालांकि सरकार की ओर से रक्षा मंत्री इन सारे आरोपों को नकार चुकी हैं. साथ ही सरकार का दावा है कि उसने बेहतर औऱ किफायती सौदे के सहारे 36 राफेल विमान फ्रांस से हासिल किए हैं.