संसदीय समिति ने रखा गलवान घाटी समेत लद्दाख के अग्रिम मोर्चो पर जाने का प्रस्ताव, राहुल गांधी भी हैं समिति के सदस्य
रक्षा समिति के अध्यक्ष ने बताया कि कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और कमेटी सदस्य राहुल गांधी उस बैठक में मौजूद नहीं थे जब इस बाबत चर्चा हुई. ओरांव के मुताबिक राहुल इस मामले पर बाहर भले ही राजनीतिक तौर पर बोलते हों लेकिन लेकिन रक्षा संबंधी समिति की बैठकों में उनकी उपस्थित कम ही होती है.
नई दिल्लीः लद्दाख में भारत-चीन सीमा तनाव घटाने के लिए चल रही डिसेंगेजमेंट की प्रक्रिया के बीच संसद की रक्षा मंत्रालय संबंधी समिति में इस इलाके का दौरा करने कई पेशकश की है. समिति ने गलवान घाटी समेत लद्दाख में एलएसी के कई अग्रिम मोर्चों पर जाने के लिए रक्षा मंत्रालय से मंजूरी का आग्रह किया है. समिति के अध्यक्ष जोएल ओरांव ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा कि 9 फरवरी को हुई समिति की बैठक में यह प्रस्ताव आया था कि गलवान घाटी का दौरा किया जाना चाहिए. इसे स्वीकार करते हुए हमने मामले को लोकसभा अध्यक्ष के सामने रखने और इसके लिए रक्षा मंत्रालय से मंजूरी लेने की प्रक्रिया शुरू की है. ओरांव ने माना कि रक्षा मंत्रालय की अनुमति के बाद ही सम्भव है. लिहाज़ा फिलहाल यह एक प्रस्ताव ही है.
उन्होंने कहा कि अगर इजाजत मिलती है तो सदस्य होने के नाते राहुल गांधी भी चल सकते हैं गलवान घाटी समेत लद्दाख के इलाकों के दौरे पर. गौरतलब है कि 15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुए टकराव में कर्नल संतोष बाबू समेत 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे.
महत्वपूर्ण है कि राहुल गांधी लद्दाख में भारत और चीन के बीच बीते 9 महीने से जारी तनाव के बीच सरकार पर तीखे हमले करते रहे हैं. भारत-चीन के बीच सैन्य गतिरोध खत्म करने और सैनिकों को पीछे हटाने के लिए हुए समझौते पर उन्होंने सवाल उठाए हैं.
राहुल ने बीते दिनों सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चीन के सामने झुकने और भारत की ज़मीन देने का आरोप लगाया. हालांकि सरकार ने राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि बीते 9 महीनों से जारी सैन्य गतिरोध के बीच भारत की कोई ज़मीन नहीं दी गई है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 11 फरवरी को संसद के दोनों सदनों में दिए अपने बयान में कहा था कि पूर्वी लद्दाख में बीते कई महीनों से जारी सैन्य गतिरोध में भारत ने अपनी कोई जमीन नहीं खोई है. फिलहाल पेंगोंग झील के इलाके से दोनों तरफ के सैनिकों के पीछे जाने की प्रक्रिया चल रही है. इस प्रक्रिया के पूरे होने के 48 घंटे के भीतर अन्य इलाकों में गतिरोध खत्म करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर बातचीत होगी. सेना और सरकार देश की हर इंच जमीन की सुरक्षा को प्रतिबद्ध है.
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