नई दिल्ली: सामरिक तौर पर चीन ने भारत के सामने हमेशा बड़ी चुनौती पेश की है. ज्यादा दिन नहीं बीते जब दोनों देशों की सेनाएं डोकलाम क्षेत्र में आमने सामने थीं. चिंता इस बात को लेकर बराबर जताई जा रही है कि चीन हिन्द महासागर में हर तरफ से भारत को घेरने की कोशिश में लगा है. लेकिन भारत को चीन से खतरा सामरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक भी है. वाणिज्य मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने संसद में एक रिपोर्ट पेश किया है जो चौंकाने वाला है.
चीनी सोलर पैनल से गई 2 लाख नौकरियां
संसदीय समिति ने इस बात पर गहरी चिंता जतायी है कि नियमों के लचर क्रियान्वयन के चलते देश के घरेलू उद्योगों को चीनी सामानों से बड़ा नुकसान पहुंचा है. इनके चलते उद्योग बन्द हुए हैं और नौकरियां खत्म हुई हैं. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में सोलर पैनल के डंपिंग के चलते अबतक 2 लाख नौकरियां खत्म हो चुकी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू उद्योग की आधी क्षमता बेकार पड़ी रह जाती है. कमिटी ने इस बात को उजागर किया है कि 2011-12 तक भारत जहां जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसे देशों को सोलर उपकरण निर्यात करता था.
टेक्सटाइल सेक्टर को भी बड़ा नुकसान: बन्द हुए सूरत और भिवंडी के कई पावरलूम
भारत का टेक्सटाइल उद्योग अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में शामिल है जिसमें बड़े पैमाने पर मज़दूरों की ज़रूरत पड़ती है. समिति ने कहा है कि चीन से आयात होने वाले पोलिएस्टर और विस्कोस जैसे सस्ते कपड़ों के चलते टेक्सटाइल उद्योग के सामने बड़ी चुनौती आ गयी है. समिति ने इस बात पर चिंता जताई है कि सस्ते आयात के चलते सूरत और भिवंडी जैसे औद्योगिक शहरों में 35% पावरलूम यूनिट बन्द जो चुके हैं. समिति के यहां तक कहना है कि सिंथेटिक, यार्न और फैब्रिक पर अलग अलग जीएसटी दर लगाने से भी सस्ते चीनी कपड़ों का आयात ज़्यादा बढ़ गया है. खिलौना, दवाई और साइकिल उद्योग को भी चीनी से आयातित सामानों से बड़ा धक्का पहुंचा है.
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चीनी सामानों की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल
समिति ने चीन से आने वाले सामानों की गुणवत्ता पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां से आने वाले सोलर पैनल में जिस ग्लास का इस्तेमाल किया जा रहा है. उसमें एंटीमनी होता है जो एक खतरनाक रासायनिक पदार्थ है. इसी तरह चीन से आने वाले एलईडी बल्बों में भी नुकसान करने वाले रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल हो रहा है. चीन से आने वाले खिलोने भी गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते हैं.
'कड़ा कदम उठाए सरकार'
रिपोर्ट में समिति ने इस चुनौती से आगाह करते हुए उससे निपटने के कदम उठाने को कहा है. गुणवत्ता की विशेष जांच से लेकर ड्यूटी और टैक्स के बारे में समिति ने उपाय सुझाए हैं. सबसे ज़्यादा बल चीनी समानों की गुणवत्ता की जांच और उनकी भारत में डंपिंग रोकने पर दिया गया है. समिति ने इस बात पर नाराजगी जाहिर किया है कि ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस के नाम पर भारत तो चीनी सामानों के आयात को तुरन्त मंज़ूरी दे देता है लेकिन यही सुविधा चालाकी से चीन अपने यहां भारत के सामानों को नहीं देता है. भारत के सामानों को चीन के बाजारों में बेचने से पहले कड़ी गुणवत्ता जांच से गुजरना पड़ता है. साथ ही इस काम के लिए भारतीय निर्यातकों से फीस के तौर पर मोटी रकम ली जाती है. इसलिए समिति ने अनुशंसा की है कि भारत में बिकने से पहले चीनी सामानों की कड़ी जांच करने के साथ साथ फीस में भी बढ़ोतरी की जाए.
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चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ा
2007 -08 में जहां भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 38 अरब डॉलर का था वहीं ये बढ़कर 2017-18 में क़रीब 89 अरब डॉलर हो चुका है. साल 2013-14 में जहां भारत के कुल आयात का 11.6% सामान चीन से आता था वहीं 2017-18 में ये बढ़कर 16.6% हो गया. सबसे चिंता की बात ये है कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर हो चुका है जो भारत के कुल व्यापार घाटे का 40 फ़ीसदी है. व्यापार घाटा वो अंतर है जो किसी देश के निर्यात और आयात के बीच होता है. इसका मतलब ये कि भारत चीन को निर्यात कम करता है और चीन से आयात ज़्यादा उपकरणों का 84% हिस्सा चीन से आयात हो रहा है. यही नहीं चीनी सोलर पैनल दूसरे देशों के ज़रिए भी भारत में भेजे जा रहे हैं.