आखिर कोरोनिल को लेकर कहां पर फंस गया पेंच? किन राज्यों ने लगाई रोक? जानिए कैसे मिलता है नई दवा का लाइसेंस
कोरोना वायरस की दवा कोरोनिल पर राजस्थान के बाद अब महाराष्ट्र सरकार ने भी प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं कोरोना की दवा बनाने के दावे का ये मामला अदालत में भी पहुंच गया है.
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नई दिल्ली: कोरोना महामारी के खिलाफ अबतक वैक्सीन तैयार नहीं हो सकी है. जानकारों का कहना है कि इसे बनाने में 6 से 12 महीने का और समय लग सकता है. लेकिन योग गुरु बाबा रामदेव का दावा है कि उनकी पतंजलि संस्थान ने कोरोना का 100 फीसदी इलाज करने वाली दवा खोज निकाली है. ये दवा लॉन्च होते ही विवादों में घिर गई और अब इसपर विवाद बढ़ता ही जा रहा है.
कोरोनिल के लॉन्च होते ही सबसे पहले आयुष मंत्रालय हरकत में आया. उसने इस दवा के विज्ञापन पर रोक लगा दी और पतंजलि के दावे पर कई सवाल उठाए. इसके बाद उत्तराखंड आयुर्वेदिक विभाग ने उनके खिलाफ नोटिस जारी किया. विभाग ने कहा कि बुखार-खांसी-सर्दी की दवा कहकर लाइसेंस लिया था, कोरोना की दवा बना रहे हैं ये नहीं बताया. इसके बाद बिहार के मुजफ्फरपुर की एक अदालत में दवा के नाम पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए एक मामला दायर हुआ है. वहीं राजस्थान और महाराष्ट्र सरकार ने कोरोनिल दवा की बिक्री पर रोक लगा दी है.
आखिर कहां पर फंस गया पेंच? जानकारों के मुताबिक, किसी भी दवा के ट्रायल में ही कई महीने और साल लग जाते हैं. इमरजेंसी की स्थिति में भी सालभर तो लग ही जाता है. ऐसे में अचानक पतंजलि की ओर से कोरोना वायरस की आयुर्वेद दवा का लॉन्च होना संदेह का विषय है. दूसरी बात ये भी कही जा रही है कि उन्होंने कोरोना की दवा का लाइसेंस क्यों नहीं लिया. उत्तराखंड आयुर्वेदिक विभाग का कहना है कि पतंजलि ने बुखार-खांसी-सर्दी की दवा का लाइसेंस लिया था, न कि कोरोना की दवा का.
भारत में किसी नई दवा का लाइसेंस हासिल करने के लिए कई मानकों का ध्यान रखना होता है. यह सभी मानक औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत आते हैं. कोरोनिल बनाने वाली संस्था पतंजलि पर इन्हीं मानकों की अनदेखी करने का आरोप है.
भारत में कैसे मिलता है नई दवा का लाइसेंस? किसी भी नई दवा को बनाने या मार्केट में बेचने के लिए सबसे पहले संबंधित व्यक्ति या संस्था को सीडीएससीओ के मुख्यालय से ड्रग अप्रूवल लेना होता है. इस दौरान कई तरह के प्रोसेज से गुजरना पड़ता है. न्यू ड्रग डिविजन दवा की जांच करता है. इसके बाद न्यू ड्रग एप्लिकेश कमिटी जांच करती है. इसके बाद ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से अनुमति मिलने के बाद दवा का क्लिनिकल ट्रायल कराया जाता है. ट्रायल सफल होने के बाद दवा के रजिस्ट्रेशन के लिए सीडीएससीओ के पास दोबारा आवेदन किया जाता है. रीव्यू के दौरान अगर दवा सभी तय मानकों पर खरी उतरती है तो लाइसेंस जारी कर दिया जाता है.
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