Patanjali Misleading Advt Case: 'आपकी बखिया उधेड़ देंगे', SC के न्यायाधीश की सख्त टिप्पणी पर क्या बोले पूर्व जज, जानें पूरा मामला
Patanjali Misleading Advt Case: पतंजलि से जुड़े भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है जिस पर अदालत ने सख्त टिप्पणी भी की थी. इस पर पूर्व न्यायाधीशों ने आपत्ति जताई है.
Patanjali Misleading Advertisement Case: योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ चल रहे केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की ओर से गई कड़ी टिप्पणी पर पूर्व सीजेआई और जजों की ओर से नाराजगी जताई गई है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों का कहना है कि अदालत की कार्यवाही संयम और संयम के मानक स्थापित करती है.
एनबीटी की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व न्यायाधीशों की ओर से कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट वैधता, संवैधानिकता और कानून के शासन के इर्द-गिर्द घूमती निष्पक्ष बहस के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है. कोर्ट की अवमानना के डर का मतलब कानून का शासन, अदालतों की गरिमा और उनके आदेशों की पवित्रता को बनाए रखना है. पतंजलि मामले में उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के प्रति की गई कड़ी टिप्पणी पर पूर्व जजों का कहना है कि यह धमकी जैसी है. यह कभी भी संवैधानिक न्यायालय के जज के उस बयान का हिस्सा नहीं हो सकता है, जिसे आगे चल कर मानक माना जाए या उसकी नजीर दी जाए.
राज्य लाइसेंसिंग ऑथोरिटी पर की थी ये कड़ी टिप्पणी
दरअसल, पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से जुड़े भ्रामक विज्ञापन मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. इस केस की सुनवाई जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ कर रही है. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण की ओर से बिना शर्त माफी मांगने के लिए दायर हलफनामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने सख्त टिप्पणी की थी. जस्टिस अमानुल्लाह ने उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग ऑथोरिटी को लेकर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि हम आपकी बखिया उधेड़ देंगे.
पूर्व न्यायाधीशों ने दिया दो निर्णयों का हवाला
पूर्व जजों और पूर्व सीजेआई ने सुझाव दिया कि खुद को आवश्यक न्यायिक आचरण से परिचित कराने के लिए जस्टिस अमानुल्लाह को सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णयों को देखना अच्छा होगा. ये कृष्णा स्वामी बनाम भारत संघ (1992) और सी रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस ए एम भट्टाचार्जी (1995) ) केस हैं. कृष्णा स्वामी मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि संवैधानिक अदालत के जजों का आचरण समाज में सामान्य लोगों से कहीं बेहतर होना चाहिए.
इसके अलावा रविचंद्रन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि न्यायिक कार्यालय अनिवार्य रूप से एक सार्वजनिक ट्रस्ट है. इसलिए समाज को यह उम्मीद करने का अधिकार है कि एक न्यायाधीश उच्च निष्ठावान, ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए. उसमें नैतिक शक्ति, नैतिकता होनी चाहिए. उसे न्यायिक आचरण में औचित्य के सबसे सटीक मानकों को बनाए रखना होगा.