Patra Chawl Scam: पात्रा चॉल मामले में राजनीति और सरकारी फाइलों के बीच उन लोगों की कौन सुनेगा जिन्होंने बिल्डरों के नाम पर अपने खुद के घर की चाहत में अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया. उन लोगों का दुख पिछले 12 साल से उनकी आंखों में देखा जा सकता है जो आज भी आस लगाए बैठे हैं कि उनका आशियाना उन्हें मिल जाएगा. पात्रा चॉल घोटाले (Patra Chawl Scam) की सच्चाई ये है कि सिर्फ वहां के पुराने 670 निवासियों के घर ही नही फंसे, बल्कि चॉल की 47 एकड़ जमीन पर बनी बहुमंजिला इमारतों में उन हजारों लोगों की जमा-पूंजी एक घर की आस में फंसी हुई है.


राजनीति और घोटाले में बिखर गए सपने


पात्रा चॉल घोटाला मामले में भले ही शिवसेना (Shiv Sena)के दिग्गज नेता संजय राऊत (Sanjay Raut) ईडी की हिरासत में हैं. संजय राऊत के दोस्त प्रवीण राउत (Praveen Raut) जो पात्रा चॉल का रिडेवलपमेंट कर रहे थे वो जेल में है. इन सबके खेल के बीच पिस रहे हैं वो लोग जिन लोगों ने अपनी जमीन दी और अपना घर दिया और आजतक उनको अपना घर नही मिला. इस घोटाले की वजह से सैकड़ो ऐसे और भी लोग हैं जिन्होंने पात्रा चॉल की 47 एकड़ जमीन पर बन रही मुंबई के बड़े बड़े बिल्डरों की बड़ी बड़ी इमारतों में अपनी गाढ़ी कमायी के पैसे से घर बुक कराये, लाखों रूपये घर की बुकिंग में लगा दिये लेकिन सालों बीत जाने के बाद आज भी उनको अपना घर नही मिला है.  


अपने ही घर से हुए बेघर, आंखों में आसू लिए कर रहे फरियाद 
आंखों में आंसू और महाराष्ट्र सरकार से फरियाद लगाते लोग जो आज बेघर हो चुके हैं, जो चॉल में रहते थे और एक अच्छा घर मिलने की चाहत में 15 साल पहले अपने घर की जमीन और घर बिल्डर को सौंप दिया था. रिडेवलपमेंट के नाम पर इन्हें बेघर कर दिया गया और आज तक इन्हें घर नही मिला. 


चॉल  की जमीन पर खड़ी हो चुकी और वीरान पड़ीं बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतें, कुछ तो अधूरी हैं कुछ लगभग पूरी हो चुकी हैं. लेकिन इन इमारतों के हजारों फ्लैट को भी इंतजार है अपने मालिकों का. जो रोज आते हैं, सड़कों का चक्कर काटते हैं और इन अधूरी खड़ी इमारतों में अपने सपनों के घर को जर्जर होते और फाइलों में अपने घर के सपनों को दफन होते देखते रहते हैं. इन लोगों ने कभी पात्रा चॉल की 47 एकड़ जमीन पर खड़ी इन बहुमंजिला इमारतों में अपने सपनों के घर की बुकिंग करायी थी . 12 साल बीत गये लेकिन नये घर का सपना पूरा नही हो सका.


किसी ने घर बेचा-किसी ने गाढ़ी कमाई लगा दी


आज पात्रा चॉल के बहाने इन लोगों का घर घोटाले और राजनीति का शिकार हो गया है. किसी ने यह घर खरीदने के लिए अपना पुराना घर बेच दिया है, तो कोई घर के इंतजार में रिटायर हो गया, तो घर का इंतजार करते किसी की मां इस दुनिया से चल बसी. भले ही इन्होंने महंगे घर खरीदने के लिए पैसा लगाया हो लेकिन घर न मिल पाने का दर्द बात करते आंखों में दिखने लगता है.


लोगों ने सुनाई दर्द भरी दास्तां-

पात्रा चॉल में बन रही बहुमंजिला इमारत में एक घर के लिए टीएस विश्वकर्मा ने बताया कि वे मुंबई महानगर पालिका में सरकारी नौकरी करते थे. मुंबई में एक वन बीएचके फ्लैट में रहने वाले विश्वकर्मा जी का परिवार समय के साथ बड़ा हो रहा था. विश्वकर्मा जी ने साल 2010 में एक टूबीएचके फ्लैट लेने का प्लान बनाया. तभी उन्हें पता चला की गोरेगांव के पात्रा चॉल में कुछ घर के नये प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं. वो अपने बेटे के साथ पात्रा चॉल पहुंचे और मीडोज नामक शुरू हो रहे इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी ली. सब कुछ ठीक लगा और उन्होंने घर बुक करा दिया लेकिन आज तक उनका घर नही मिला.


मिस्टर विश्वकर्मा अब हर महीने अपने बेटे के साथ आकर इस अधूरी और जर्जर हो रही इमारत को निहारते हैं. विश्वकर्मा जी के मुताबिक रिटायरमेंट का पूरा पैसा उन्होंने इस घर में लगा दिया था. सोचा था बुढ़ापा बच्चों के साथ नये घर में बीतेगा लेकिन बड़े घर का सपना अधूरा रहा और लाखों रूपये बर्बाद हो गये. पेशे से व्यापारी देवराज पिपालिया बताते हैं कि वो मिडोज नामक इस बिल्डिंग में नया घर लेकर अपने बेटे की शादी करना चाहते थे, अपनी नयी नवेली बहू को नये और बड़े घर में लाना चाहते थे लेकिन उनका ये ख्वाब, ख्वाब ही रह गया. ये बिल्डिंग ऐसे घोटाले में फंसी कि उनके घर का सपना टूट गया और लाखों रूपये भी इस अधूरी जर्जर बिल्डिंग में बर्बाद होते नजर आ रहे हैं.


उम्र की तकलीफों से परेशान और पेशे से एक सीए मिस्टर गर्ग, प्रवीण राउत की गुरू कृपा कंस्ट्रक्शन कंपनी के पात्रा चॉल प्रोजेक्ट मिडोज में लाखों की रकम लगाकर कानून के चक्कर में ऐसे फंसे हैं कि अच्छी खासी कानूनी कागजातों की फाइल तैयार हो गयी है. उनकी पत्नी नीलम गर्ग बताती हैं कि कैसे उनका पैसा पात्रा चॉल में घर के इस प्रोजेक्ट में डूब गय.


क्या है पात्रा चॉल का विवाद, कैसे हुआ घोटाला

पात्रा चॉल में एचडीआईएल की सिस्टर कंपनी गुरू कृपा कंस्ट्रक्शन जिसके मालिक संजय राऊत के दोस्त प्रवीण राऊत थे. उन्होंने यहां की 47 एकड़ जमीन का हिस्सा करीब 8 बिल्डरों को बेच दिया था. नियम कानून के मुताबिक ये बिल्डर तबतक अपनी पूरी इमारत न तो बना सकते थे न ही बेच सकते थे. जब तक कि यहां के असली निवासियों की रिडेवलपमेंट वाली बिल्डिंग बन नही जाती और उन्हें उनके घर मिल नही जाते.


पात्रा चॉल के निवासियों की मौजूदा कमेटी का आरोप है कि बिल्डर, म्हाडा के तत्कालीन अधिकारी और उनकी पुरानी कमेटी के पदाधिकारियों ने मिलकर उनके साथ बहुत बड़ा घोटाला किया. जिसकी वजह से ये बहुमंजिला इमारतें तो खड़ी हो गयीं लेकिन उनकी रिडेवलपमेंट वाली बिल्डिंग नही बन पायी न घर मिल पाया और इन बड़ी बड़ी इमारतों में जिन लोगों ने घर बुक कराया है उनके पैसे भी फंसे हैं. 


रिडेवलपमेंट के तहत लोगों ने सौंप दी जमीन


मौजूदा पात्रा चॉल कमेटी का ये भी आरोप है कि बिल्डर, म्हाडा ने मिलकर उनके भी हिस्से की जमीन को बिल्डरों के हाथ बेच दिया. अध्यक्ष राजेश दलवी के मुताबिक पात्रा चॉल की करीब 13 एकड़ जमीन पर यहां के निवासियों को रिडेवलपमेंट के तहत घर बनाकर दिये जाने थे लेकिन सिर्फ साढ़े चार एकड़ पर बिल्डिंग बनायी गयी और उनके हिस्से की बाकी करीब 8 एकड़ जमीन को भी बिल्डरों के बेच दी गयी. 

फिलहाल पात्रा चॉल घोटाले का शिकार हुए तमाम लोगों को उनका घर कब मिलेगा, इस मुद्दे पर हमने जिम्मेदार बिल्डर और म्हाडा के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन किसी ने कोई जवाब नही दिया गया.


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