नई दिल्ली: किसी बाप के लिए सबसे बुरा वक्त तब होता है जब उसे अपने जवान बेटे को कंधा देना पड़े. लेकिन एक बाप ऐसा भी है जिसे अपने बेटे के मारे जाने का शायद जरा भी अफसोस नहीं है और ना ही उनके चेहरे पर शिकन है. तो आखिर ऐसी क्या वजह है जो एक बाप अपने मरे हुए बेटे का चेहरा तक देखने से इनकार कर रहा है. आखिर एक बाप को ऐसा क्यों कहना पड़ रहा है कि ‘जो देश का नहीं हुआ वो हमारा क्या होगा’. एक बाप के मुंह से अपने जवान बेटे के लिए ये अल्फाज किन हालात में निकले होंगे इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. देश को उस बूढ़े बाप की सराहना करनी होगी जिसने अपने जवान बेटे के एनकाउंटर में मौत पर शायद सवाल उठाने के बजाय, उस हकीकत को समझा जिसने उन लोगों के लिए भी दरवाजे बंद कर दिए जो ऐसे हालात में राजनीति करते हैं.
लखनऊ एनकाउंटर में ढेर हुए संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के मारे जाने के बाद वैसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा आमतौर पर किसी भी एनकाउंटर के बाद होता रहा है. कई नेताओं ने एनकाउंटर पर सवाल उठाने की कोशिश की लेकिन सैफुल्लाह के पिता मोहम्मद सरताज ने उन सबकी बोलती बंद कर दी. सरताज ने अपने बेटे सैफुल्लाह का शव लेने, उसे सुपुर्द-ए-खाक करने और उसका मरा मुंह तक देखने से इनकार कर दिया. जाहिर है एक पिता के इस जज्बे और हिम्मत पर किसको नाज नहीं होगा.
देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी जब लोकसभा में बयान दिया तो वो एनकाउंटर में मारे गए संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के पिता सरताज की तारीफ करना नहीं भूले. राजनाथ ने सदन में कहा कि हमें मोहम्मद सरताज पर नाज है और सदन को भी इसकी सराहना करनी चाहिए, इस पर लोकसभा में सदस्यों ने ताली बजाकर हामी भरी. राजनाथ ने ये भी कहा कि सरताज ने अपनी औलाद को खोया है और ऐसे में सरकार उनके साथ खड़ी है.
बात जब एनकाउंटर की हो रही है तो एक और एनकाउंटर का जिक्र करना यहां जरूरी हो जाता है. 2008 में हुए बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउंटर के बाद देश में क्या हालात हुए थे ये भी किसी से छिपा नहीं है. आज भी वक्त-वक्त पर बटला एनकाउंटर का जिन्न निकल कर हमारे सामने आता रहता है. बटला एनकाउंटर के बाद जिंदा पकड़े गये दिल्ली बम ब्लास्ट के कुछ आरोपी आज भी जेल में बंद हैं. उनका परिवार आज भी कानूनी जंग लड़ रहा है. जेल में बंद ऐसे ही आरोपियों के परिवारों से जब मैंने बात की थी तो उन्होंने अपने बेटों को पीड़ित बताते हुए बटला हाउस एनकाउंटर और पूरे सिस्टम पर ही सवाल उठाए दिए थे. हालांकि इसमें भी कोई शक नहीं कि देश में कई एनकाउंटर फर्जी साबित हो चुके हैं. आतंकी गतिविधियों में शामिल होने या फिर उसे अंजाम देने के आरोप में जेल में बंद कई नौजवान सालों बाद बाइज्जत बरी होकर जेल से वापस भी आए हैं.
सवाल उठाने वाले लखनऊ एनकाउंटर पर भी सवाल उठा रहे हैं और शायद उठाते रहेंगे लेकिन एक बाप जिसका जवान बेटा मारा जा चुका है उसे ये कहने में कोई झिझक नहीं कि जो देश का न हुआ वो मेरा क्या होगा? सवाल कई हो सकते हैं उनके जवाब तलाशना हम सबका काम है. क्या सरताज को मालूम था कि उनका बेट सैफुल्लाह किसी आतंकी संगठन से प्रभावित है? क्या वो जानते थे कि इसका अंजाम यही होना है? क्या वो अपने बेटे को इसका अंजाम बता चुके थे या फिर इसकी नौबत आती उससे पहले ही सैफुल्लाह का ये हश्र हो गया. बात जो भी हो लेकिन एक बाप का ऐसे हालात में अपने को पीड़ित साबित करने के बजाय बेटे की गलतियों का अहसास होना ऐसे लोगों पर बहुत बड़ा तमाचा है जो ऐसे मामलों में हमेशा हमारे सिस्टम और ऐसे एनकाउंटर पर सवाल उठाते हैं.
सैफुल्लाह के पिता सरताज ने उन लोगों के लिए भी एक नजीर पेश की है जो आतंक को एक खास मजहब से जोड़ने की कोशिश करते रहे हैं, जो सच का सामना करने के बजाय सियासी रोटियां सेकने से बाज नहीं आते. जो टोपी लगाए और दाढ़ी रखने वाले हर शख्स को शक की निगाह से देखते हैं. सरताज ने कहा तो जो देश का नहीं हुआ वो हमारा क्या होगा ऐसे में कोई सवाल की गुंजाइश कहां रह जाती है. ज़ाहिर है सरताज ने एक ऐसी शुरूआत की है जिसकी हिम्मत भी एक भारतीय ही जुटा सकता है. ये एक भारतीय मुसलमान का दुनिया को साफ संदेश है कि देश पहले है और देश की सुरक्षा और उसकी इज्जत से समझौता नहीं किया जा सकता.
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