Pegasus Latest Update: बजट सत्र से ऐन पहले और पांच राज्यों में चुनावों की गर्मी के बीच पैगासिस का जिन्न फिर से बोतल से निकल आया है. अमेरिकी अखबार न्यूयॉक टाइम्स में खुलासे के बाद भारत में राजनीति और गर्माने के आसार हैं. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में इस मुद्दे की गूंज सुनाई दी है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मामले को लेकर मोदी सरकार पर देशद्रोह का आरोप लगाया तो बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर सेल्फ गोल कर रही है.


मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है- राहुल गांधी


न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी खबर के बाद विपक्ष को हमले का मौका मिल गया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘’मोदी सरकार ने हमारे लोकतंत्र की प्राथमिक संस्थाओं, राजनेताओं और जनता की जासूसी करने के लिए पेगासस ख़रीदा था. फोन टैप करके सत्ता पक्ष, विपक्ष, सेना, न्यायपालिका सब को निशाना बनाया है. ये देशद्रोह है. मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है.’’


दिल्ली ही नहीं यूपी से लेकर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल तक बीजेपी के विरोधियों को मुद्दा मिल गया. वहीं कांग्रेस के वार पर बीजेपी ने पैगासस मुद्दे को कांग्रेस का सेल्फ गोल करार दिया. पेगासस पर राजनीति फुल है. सवाल ये है कि पेगासस का मुद्दा आने वाले बजट सत्र में क्या रंग दिखाएगा और यूपी चुनावों में इसका क्या फर्क पड़ेगा. साल 2019 से पेगासस का मुद्दा सरकार के गले की हड्डी बना हुआ है. विपक्ष इस मुद्दे को सड़क से लेकर संसद तक उठा रहा है, वहीं फिलहाल ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है जिस पर जल्द सुनवाई हो सकती है.


रिपोर्ट में क्या दावा किया गया है?


रिपोर्ट के मुताबिक भारत-इजराइल के बीच हुए लगभग दो अरब डॉलर के हथियार और खुफिया उपकरण सौदे में मिसाइल सिस्टम के अलावा स्पाइवेयर पेगासस भी था. सरकार दावा करती रही है कि उसने 2 अरब डॉलर यानी करीब 16 हजार करोड़ रुपयों का करार बराक मिसाइल सिस्टम के लिए था, लेकिन रिपोर्ट कहती है कि इसमें पेगासस स्पाईवेयर भी शामिल था. आरोप है कि इजरायल से सौदे के बाद भारत ने इजरायल के पक्ष में वोट किया. इसे पूर्व राजनयिक अकबरुद्दीन गलत बताते हैं. यानी रिपोर्ट ने देश से लेकर विदेश तक के मामलों पर सवाल खड़ा कर दिया.


2019 में पहली बार सामने आया था ये मामला


2019 के दौरान व्हाट्सएप के जरिए पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किए जाने का आरोप लगा था. 100 नामी हस्तियों की जासूसी की बात सामने आई थी, जिसके बाद संसद में पेगासस जासूसी पर जमकर हंगामा हुआ. जुलाई 2021 में पेगासस मामला फिर उछला. एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि 300 से अधिक भारतीय नंबर पेगासस की निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में थे. इसमें पत्रकार, विपक्षी-सत्तादल के कुछ नेताओं के नाम भी सामने आए थे.


इस लिस्ट में राहुल गांधी, प्रशांत किशोर समेत कुछ जजों और मंत्रियों का भी नाम था. दुनिया भर में 50 हजार ऐसे नंबर्स की लिस्ट जारी हुई थी, जिनकी कथित तौर पर पेगासस से निगरानी हुई. इसके बाद से विपक्ष सरकार को लगातार घेर रहा है. इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में जांच भी चल रही है. सेवानिवृत्त न्यायाधीश रवींद्रन की देखरेख में एक समिति इसकी जांच कर रही है, जिसकी रिपोर्ट का इंतजार है.


क्या है पेगासस?


पेगासस एक निगरानी स्पाइवेयर है. इसे इजराइल की साइबर सुरक्षा कंपनी NSO ने तैयार किया है. इसे सिर्फ अधिकृत सरकारी एजेंसियों को बेचने का दावा करती है. ये एक ऐसा प्रोग्राम है जिसे अगर किसी स्मार्टफोन में डाल दिया जाए तो कोई हैकर उस स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, ऑडियो और टेक्सट मेसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल कर सकता है.


एक पेगासस लाइसेंस की कीमत एक साल की 60 करोड़ तक हो सकती है. 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 10 लोगों की निगरानी में 9 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है. एक पेगासस लाइसेंस से साल भर में 500 लोगों की निगरानी हो सकती है. एक बार में करीब 50 लोगों की निगारनी संभव है.


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