नई दिल्ली: ब्रिटेन के नामी अखबार द गार्जियन ने एक रिपोर्ट के जरिए आरोप लगाया है कि दुनिया की कई सरकारें एक खास पेगासस नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बड़े वकीलों समेत कई बड़ी हस्तियों की जासूसी करवा रही हैं. जिसमें भारत भी शामिल है. भारत में जिन लोगों की जासूसी का आरोप है उन में चालीस से ज्यादा पत्रकार, एक संवैधानिक व्यक्ति, तीन विपक्षी नेता, सरकार के दो मंत्रियों, सुरक्षा एजेंसियों के मौजूदा और पूर्व चीफ और कुछ बिजनेसमैन शामिल हैं.
भारत सरकार ने गार्जियन के दावे के खारिज किया, कहा- सभी की प्राइवेसी सुरक्षित
गार्जियन के खुलासे पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया आई है. भारत सरकार की तरफ से कहा गया है कि भारत एक मजबूत लोकतंत्र है- यहां सभी की निजता का सम्मान है- भारत में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन कानून लागू है जिसके मुताबिक सभी की प्राइवेसी सुरक्षित है. सरकार ने कहा है कि गार्जियन की स्टोरी में बिना सबूत के निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं- जिसका मतलब है कि आप बिना वजह वकील और विवेचक की भूमिका निभाना चाहते हैं.
सरकार ने कहा कि मौलिक अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की प्रतिबद्धता भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला है. हमने हमेशा खुले संवाद की संस्कृति पर जोर देते हुए एक जागरूक नागरिक प्राप्त करने का प्रयास किया है. सरकार ने अपने जवाब में साफ़ किया है कि छापी गयी कहानी बोगस है और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर तथ्यहीन कहानी छापी गयी है.
गार्जियन ने क्या आरोप लगाए हैं?
गार्जियन अखबार के मुताबिक जासूसी का ये सॉफ्टवेयर इजरायल की सर्विलेंस कंपनी NSO ने देशों की सरकारों को बेचा गया है. गार्जियन अखबार के खुलासे के मुताबिक इस सॉफ्टवेयर के जरिए 50 हजार से ज्यादा लोगों की जासूसी की जा रही है.
लीक हुए डेटा के कंसोर्टियम के विश्लेषण ने कम से कम 10 सरकारों को एनएसओ ग्राहक के रूप में माना जा रहा है जो एक सिस्टम में नंबर दर्ज कर रहे थे. अजरबैजान, बहरीन, कजाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, हंगरी, भारत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के डाटा इसमें शामिल हैं. गार्जियन का दावा है कि 16 मीडिया संगठनों की जांच के बाद ये खुलासा किया गया है.
इस जांच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पेगासस स्पाइवेयर के ज़रिए इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे, द हिंदू, द वायर और द पायनियर जैसे मीडिया संस्थानों से जुड़े पत्रकारों को निशाना बनाया गया था. दावा है कि एक भारतीय एजेंसी ने साल 2017 से लेकर 2019 के बीच इन सस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों की निगरानी के लिए इनके फोन को टैप किया था.
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