नई दिल्ली: भारत में एक बार फिर जासूसी और फोन टैपिंग का जिन्न बोतल के बाहर आ गया है. द गार्जियन अखबार ने एक रिपोर्ट के जरिए आरोप लगाया है कि दुनिया की कई सरकारें एक खास पेगासस नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बड़े वकीलों समेत कई बड़ी हस्तियों की जासूसी करवा रही हैं. जिसमें भारत भी शामिल है. हालांकि भारत सरकार ने द गार्जियन अखबार के दावे को खारिज किया है.


देश में जासूसी-फोन टैपिंग और उस पर बवाल कोई पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भी कई बार नेताओं, अधिकारियों, सामाजिक हस्तियों की ओर से इस तरह के दावे किए जाते रहे हैं. इसके साथ ही इसमें प्राइवेसी में दखल और नियमों की अनदेखी का हवाला दिया जाता रहा है. 


पहले भी देश में कई बार इसे लेकर विवाद होता रहा है तथा नियमों और इसके उद्देश्य को लेकर बहस भी होती रही है. इसे मुख्य तौर पर निजिता के अधिकार के हनन के तौर पर देखा जाता है. वहीं दूसरी ओर इसे राष्ट्रीय सुरक्षा या जन सुरक्षा की दृष्टि से जरूरी बताया जाता रहा है. 


कब हो सकती है फोन टैपिंग और इसके लिए किसकी इजाजत जरूरी?
अंग्रेजों के जमाने में बने 1885 के टेलीग्राफ कानून में कई बार संशोधन हुए. केंद्र और राज्य सरकारों को इंडियन टेलीग्राफ संशोधन नियम, 2007  फोन टैपिंग कराने का अधिकार मिला हुआ है. इसके तहत कहा गया है कि अगर किसी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी को लगता है कि जन सुरक्षा या राष्ट्रीय हित में फोन टैप करने की ज़रूरत है तो उस हालात में फोन कॉल रिकॉर्ड की जा सकती है.


इसके साथ ही इसमें बताया गया है कि फोन टैपिंग या जासूसी करवाने के लिए केंद्र या राज्य सरकार के गृह सचिव स्तर के अधिकारी से इजाजत लेनी होगी. यह परमीशन 60 दिनों के लिये ही मान्य होती है. इसके साथ ही इस समय सीमा को विशेष परिस्थितियों में 180 दिन से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है.


जासूसी या फोन टैपिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट की भी गाइडलाइंस
इसे लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं. सुप्रीम ने भी फोन टैपिंग को लेकर 1997 में PUCL बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के केस में कुछ गाइड लाइंस जारी की थीं. इसके बाद इन गाइडलाइंस के आधार पर केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाई और राज्यों में भी ऐसी ही कमेटियां बनीं.


सुप्रीम कोर्ट ने इसे निजिता के अधिकार से जोड़ते हुए इसे कई फैसलों में इसकी व्याख्या की है. संविधान के अनुच्छेद 20 की बात करें तो इसमें निजिता के अधिकार का उल्लेख है. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी व्याख्या करते हुए जीवन का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की तरह निजिता के अधिकार का उल्लंघन नहीं हो सकता. अगर करना भी हो तो संवैधानिक दायरे में रहते हुए सभी नियमों का पालन करते हुए करना होगा.


गार्जियन ने क्या आरोप लगाए हैं?
गार्जियन अखबार के मुताबिक जासूसी का ये सॉफ्टवेयर इजरायल की सर्विलेंस कंपनी NSO ने देशों की सरकारों को बेचा गया है. गार्जियन अखबार के खुलासे के मुताबिक इस सॉफ्टवेयर के जरिए 50 हजार से ज्यादा लोगों की जासूसी की जा रही है. 


लीक हुए डेटा के कंसोर्टियम के विश्लेषण ने कम से कम 10 सरकारों को एनएसओ ग्राहक के रूप में माना जा रहा है जो एक सिस्टम में नंबर दर्ज कर रहे थे. अजरबैजान, बहरीन, कजाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, हंगरी, भारत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के डाटा इसमें शामिल हैं. गार्जियन का दावा है कि 16 मीडिया संगठनों की जांच के बाद ये खुलासा किया गया है.