Full Statehood Demand for Ladakh: केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) लद्दाख (Ladakh) को राज्य का दर्जा (Statehood) दिलाने की मांग को लेकर बुधवार (2 नवंबर) को दो संगठनों लेह एपेक्स बॉडी (Leh Apex Body) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (Kargil Democratic Alliance) ने प्रदर्शन किया.
प्रदर्शनकारी भारतीय संविधान (Indian Constitution) की छठी अनुसूची की तर्ज पर संवैधानिक सुरक्षा उपायों, प्रारंभिक भर्ती प्रक्रिया और लेह और कारगिल के लिए संसद में अलग सीटों की भी मांग कर रहे थे.
कारगिल में प्रदर्शन
कारगिल में प्रदर्शन हुसैनी पार्क से शुरू हुआ फिर इस्ना अशरिया चौक की ओर बढ़ा और लाल चौक कारगिल पर समाप्त हुआ. प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने भारत सरकार से देरी करने की रणनीति को रोकने और लद्दाख के लोगों की शिकायतों को सुनने का आग्रह किया. वे 'डेमोक्रेसी बहाल करो', 'जुलुम और जबर बंद करो' जैसे नारे भी लगा रहे थे.
लेह में भी सड़क पर उतरे लोग
लेह में भी इसी तरह का प्रदर्शन किया गया. प्रदर्शन के दौरान सभी वर्गों के लोग रैली में शामिल हुए. प्रदर्शन एनडी स्टेडियम से शुरू हुआ फिर पोलो ग्राउंड लेह की ओर मार्च किया गया और उसके बाद शीर्ष निकाय के नेता थुपस्तान त्स्वेंग ने सभा को संबोधित किया. उन्होंने राज्य की मांग और छठी अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने की मांग की.
अलग लोकसभा और राज्यसभा सीटों की मांग
5 अगस्त 2019 को लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया था और बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया था. अब लोग न केवल पूर्ण राज्य की बहाली की मांग कर रहे हैं, बल्कि लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा और राज्यसभा सीटों की मांग कर रहे हैं. लद्दाख में वर्तमान में कोई विधानसभा नहीं है और एक लोकसभा सीट है जिसका राज्यसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुरू में लद्दाख की बीजेपी इकाई भी अलायंस का हिस्सा थी लेकिन दोहरे मापदंड के आरोपों के चलते पार्टी ने खुद को बाहर खींच लिया था. यह पहली बार है जब मुस्लिम बाहुल्य कारगिल और बौद्ध प्रभाव वाले लेह ने उनके राजनीतिक भविष्य को देखते हुए हाथ मिलाया है.
इसलिए राज्य का दर्जा मांग रहे लोग
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लंबे समय से सैन्य गतिरोध चल रहा है. इस बीच इस तरह के प्रदर्शन केंद्र के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं. बीजेपी नीत केंद्र सरकार ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले को ऐतिहासिक बताया था. सरकार का कहना था कि इस कदम से विकास आएगा और क्षेत्र से दशकों का भेदभाव खत्म होगा. हालांकि, स्थानीय लोग महसूस कर रहे हैं कि उनके क्षेत्र का राजनीतिक दखल खत्म हो गया है और अब वे पूर्ण राज्य की मांग को लेकर एकजुट हो रहे हैं. बता दें कि पिछले एक वर्ष में पूर्ण राज्य की मांग को लेकर लद्दाख में कई बार प्रदर्शन किए गए हैं.
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