गृहराज्य लौटने की इजाजत मिली लेकिन खत्म नहीं हो रहीं मजदूरों की मुश्किलें, अपनी ही सरकार पर भड़के संजय निरूपम
इन दिनों मुंबई के तमाम पुलिस थानों और डॉक्टरों के क्लिनिक के बाहर सैकड़ों की तादाद में खड़े मजदूरों की कतार नजर आ रहीं है. ये वे मजदूर हैं जो कि लॉकडाऊन के कारण मुंबई से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड या पश्चिम बंगाल में अपने गांवों को नहीं लौट पा रहे.
मुंबई: केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से देशभर में जगह-जगह लॉकडाऊन की वजह से फंसे मजदूरों को उनके गृहराज्य लौटने की इजाजत भले ही मिल गई हो, लेकिन उनकी मुसीबतें खत्म नहीं हो रहीं. वापस लौटने के लिये जो प्रक्रिया तय की गई है उसने प्रवासी मजदूरों की परेशानी बढा दी है. मजदूर नियमों में बदलाव करने की मांग कर रहे हैं.
इन दिनों मुंबई के तमाम पुलिस थानों और डॉक्टरों के क्लिनिक के बाहर सैकड़ों की तादाद में खड़े मजदूरों की कतार नजर आ रहीं है. ये वे मजदूर हैं जो कि लॉकडाऊन के कारण मुंबई से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड या पश्चिम बंगाल में अपने गांवों को नहीं लौट पा रहे. ज्यादातर के पैसे खत्म हो चुके हैं. अब तक इन्हें खाना या तो सरकार की तरफ से मिल रहा था या कुछ समाजसेवी संस्थाएं दे रहीं हैं. रोज खाना मिलेगा ही इस बात की कोई गारंटी नहीं है. खाना मिलता भी है तो उसका कोई तय वक्त नहीं होता. ऐसे में इनके सामने यही विकल्प नजर रहा है कि मुंबई में भूखे मरने से अच्छा है कि अपने गांव लौट जाय़ा जाये. इसके लिये सरकार ने जो प्रकिया सुझाई है उसे पूरा कर पाने में इन किसानों को दिक्कत आ रही है.
प्रवासी मजदूरों को वापस भेजे जाने की प्रकिया के तहत जिन मजदूरों को वापस अपने गांव जाना है उन्हें स्थानीय पुलिस थाने के पास जाकर एक फॉर्म जमा करना होता है. इस फॉर्म में मजदूर को अपनी व्यकितगत जानकारी देनी होती है, बताना होता है कि कौनसे जिले में जाना है और साथ ही आधार कार्ड जैसे अपने पहचान पत्र की प्रति देनी होती है. इसके साथ ही उन्हें डॉक्टर की ओर से जारी किया गया प्रमाणपत्र देना होता कि वे स्वस्थ हैं और उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं.
जब किसी एक ठिकाने के लिये सरकार के नॉडल अधिकारी जो कि मुंबई पुलिस के डीसीपी रैंक का अधिकारी होता है के पास हजार के करीब लोगों के नाम आते हैं तो वो अधिकारी रेलवे की ओर से नियुक्त किये गये नॉडल अधिकारी से उस ठिकाने के लिये ट्रेन चलाने की दरखास्त करता है. जब ट्रेन छोडने का दिन और वक्त मुकर्रर हो जाता है तब पुलिस सुरक्षा के बीच रजिस्टर्ड किये गये लोगों को स्टेशन लाकर ट्रेन में बिठाया जाता है.
इन नियमों के ऐलान के बाद से कई डॉक्टरों के क्लिनिक के बाहर मेडिकल सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए सैंकडों लोगों की भीड़ लग रही है. सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा.
कांग्रेस के नेता और पूर्व सांसद संजय निरूपम ने आरोप लगाया कि कुछ डॉक्टर मजदूरों से सर्टिफिकेट जारी करने के लिये 200 रूपये प्रति मजदूर तक ले रहे हैं. संजय निरूपम ने राज्य की सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रवासी मजदूरों की समस्या समझने और सुलझाने में सरकार नाकाम रही है. मजदूर अगर बड़ी संख्या में वापस लौटने को मजबूर हैं तो इसका मतलब यही है कि सरकार उनका पेट भरने में कामियाब नहीं हो सकी. वक्त रहते सरकार समस्या को भांप नहीं पाई. निरूपम जिस कांग्रेस पार्टी के नेता हैं वो महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में शामिल है.
जिस तरह की भीड़ डॉक्टरों के क्लीनिक के बाहर देखी जा रही है वैसी ही भीड़ पुलिस थानों के बाहर भी देखी जा रही है. मजदूर रजिस्ट्रेशन फॉर्म लेने और उन्हें जमा करवाने के लिए कतार लगा रहे हैं. निरूपम का आरोप है कि जिन मजदूरों के आधार कार्ड पर मुंबई का पता है उनका रजिस्ट्रेशन खारिज किया जा रहा है.