SC Hearing on Uniform Civil Code: उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता पर अध्ययन के लिए कमेटी बनाए जाने को सुप्रीम कोर्ट ने कानूनन सही कहा है. दोनों राज्य सरकारों के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि कमेटी का गठन संविधान से राज्य सरकारों को मिली शक्ति के दायरे में आता है. सिर्फ कमिटी के गठन को चुनौती नहीं दी जा सकती.
याचिकाकर्ता अनूप बरनवाल ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक राष्ट्रीय मसला है. इस पर राज्यों की तरफ से अध्ययन करवाना जरूरी नहीं है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने याचिका को आधारहीन करार दिया.
CJI ने यह कहा
चीफ जस्टिस ने विवाह और गोद लेने जैसे मसलों से जुड़े कानूनों के संविधान की समवर्ती सूची में होने का हवाला दिया. उन्होंने कहा, "समवर्ती सूची की एंट्री 5 को देखिए. आप यह नहीं कह सकते कि राज्य सरकारों को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है. वैसे भी, अभी सिर्फ अध्ययन के लिए कमेटी का गठन किया गया है. इसे चुनौती देने का कोई आधार नहीं. दोनों राज्य सरकारों ने जो किया है, वह संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत राज्यों को मिले अधिकार के तहत सही है."
मई में उत्तराखंड सरकार को रिपोर्ट सौंप सकती है समिति
उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल 27 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. इस समिति को राज्य में समान नागरिक संहिता के अध्ययन और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. समित मई 2023 तक अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है. समित का कार्यकाल छह और महीने के लिए बढ़ाया गया था. उत्तराखंड इस मामले में ऐसा फैसला लेने वाला देश का पहला राज्य है.
वहीं, पिछले साल 29 अक्टूबर को गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में अध्ययन करने वाली समिति को बनाने का फैसला लिया था.
UCC को लेकर गृह मंत्री अमित शाह का बयान
गुजरात के अलावा हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के चुनावी अभियान में समान नागरिक संहिता बीजेपी के प्रचार का हिस्सा थी. पिछले साल नवंबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी समान नागरिक संहिता को बहस और चर्चा के बाद लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा था कि जनसंघ के समय से ही बीजेपी का इसे लेकर वादा है. टाइम्स नाउ समिट में गृह मंत्री शाह ने कहा था कि बीजेपी के अलावा, संविधान सभा ने संसद और राज्य सरकारों को सही समय पर समान नागरिक संहिता लागू करने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा था कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में कोई कानून धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा था कि आज बीजेपी को छोड़कर कोई पार्टी इसके पक्ष में नहीं है, मामले पर स्वस्थ चर्चा होनी चाहिए.
UCC पर कानून की मांग वाली अर्जी पर केंद्र ने दिया था ये जवाब
बता दें कि पिछले अक्टूबर की शुरुआत में ही केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था. इसमें कहा गया था कि सरकार संसद को समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने को लेकर कोई निर्देश नहीं दे सकता है. एक वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में अर्जी देकर समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने की मांग की थी, जिसके जवाब में केंद्र ने हफलनामा दाखिल किया था.
अश्विनी उपाध्याय की याचिका में उत्तराधिकार, विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, रखरखाव और गुजारा भत्ता वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की गई थी.
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