नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड योजना 2018 को लागू करने पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के लिए असीमित कॉरपोरेट दान के दरवाजे खुल गए हैं. इसके अलावा भारतीयों के साथ ही विदेशी कंपनियों द्वारा अज्ञात वित्तीय दान दिए जा रहे हैं, जिसका देश के लोकतंत्र पर बुरा असर पड़ सकता है.


याचिका में ये भी कहा गया कि कि वित्त कानून 2017 और इससे पहले वित्त कानून 2016 में कुछ संशोधन किए गए थे, और दोनों को वित्त विधेयक के तौर पर पारित किया गया था. जिनसे विदेशी कंपनियों से असीमित राजनीतिक चंदे के दरवाजे खुल गए और भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिला. साथ ही इससे राजनीतिक चंदे में पूरी तरह अपारदर्शिता आ गई.


एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से दायर याचिका में कहा गया, "वित्त कानून 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल शुरू किया गया जिसमें जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत खुलासे से छूट प्राप्त है. इसमें राजनीतिक दलों को बिना निगरानी फंडिंग मिलती है. उक्त संशोधन में कंपनियों द्वारा पिछले तीन वर्ष के अभियान चंदे में 7.5 फीसदी के वर्तमान कुल लाभ की सीमा को हटा दिया गया है और अज्ञात चंदे को कानूनी रूप दिया गया है"


याचिका में आगे कहा गया है, इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दान देने वालों के बारे में राजनीतिक दलों को व्यक्ति या कंपनी का खुलासा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि बॉन्ड धारक उपकरण हैं और उन्हें भुनाने के लिए राजनीतिक दलों के सामने पेश करना पड़ता है इसलिए दल जानेंगे कि उन्हें कौन चंदा दे रहा है. केवल आम आदमी को पता नहीं होगा कि कौन किस पार्टी को चंदा दे रहा है. इस प्रकार इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक चंदे में बेनामी लेन-देन को बढ़ावा देगा.


वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि "राजनीतिक चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल करना चिंता की बात है क्योंकि ये बॉन्ड, धारक बॉन्ड की प्रकृति के हैं और चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी जाती है. केंद्र सरकार द्वारा दो जनवरी 2018 को अधिसूचित इलेक्टोरल बॉन्ड योजना 2018 को लागू करने पर रोक लगाने की अपील की जाती है."


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