नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज एक अजीबोगरीब मामला सामने आया. 87 साल के बुजुर्ग याचिकाकर्ता का कहना था कि कोर्ट धर्म की परिभाषा तय करे. ऐसा करने से सभी धार्मिक विवाद खत्म हो सकते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा, "हम न तो इस विषय के विशेषज्ञ हैं, न इस पर सुनवाई करना हमारा काम है."


रमेशचंद्र विट्ठलदास शेठ नाम के याचिकाकर्ता अपने मामले की पैरवी के लिए खुद पेश हुए. चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच से उन्होंने कहा, “संविधान में धर्म की परिभाषा तय नहीं की गई है. लेकिन धर्म से जुड़े कई अनुच्छेद संविधान का हिस्सा हैं. बिना परिभाषा तय किए इन अनुच्छेदों का विशेष अर्थ नहीं रह जाता है." इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि धर्म की परिभाषा तय करना कोर्ट का काम नहीं है.


याचिकाकर्ता ने अपनी जिरह जारी रखी. कहा, “सभी धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. एक ही ईश्वर को मानते हैं. अगर धर्म की परिभाषा तय कर दी जाएगी तो हर तरह का विवाद खत्म हो जाएगा. आतंकवाद और परमाणु युद्ध का खतरा भी खत्म हो जाएगा. यहां तक कि पाकिस्तान को भी समझ में आ जाएगा कि गीता और कुरान एक ही हैं."


जजों ने इन दलीलों पर हैरानी जताते हुए कहा, “आप 87 साल के हैं. आप पूरा जीवन क्या करते रहे? यह बातें आपने पहले कहीं क्यों नहीं रखीं?” याचिकाकर्ता ने जवाब दिया, “मैं पिछले 50 साल से लोगों को धर्म के बारे में शिक्षित करता आ रहा हूं. मेरे अनुभव का लाभ उठाया जाए. इससे तमाम तरह के विवाद खत्म हो सकते हैं. हमारा महान भारत देश हमेशा के लिए सुरक्षित हो सकता है."


चीफ जस्टिस ने कहा, “हम सब चाहते हैं कि हमारा महान देश हमेशा सुरक्षित रहे. लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि हम धर्म के विशेषज्ञ नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट या कोई भी हाई कोर्ट इस तरह के मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता. अगर आपको कोई बात रखनी है तो आपको सरकार के पास जाना चाहिए."


कोर्ट ने रमेशचंद्र शेठ को सरकार को ज्ञापन सौंपने के लिए कहते हुए याचिका वापस लेने की सलाह दी. लेकिन याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि वह सरकार को पहले ही ज्ञापन सौंप चुके हैं. आखिरकार कोर्ट ने यह कहते हुए मुकदमा खारिज कर दिया कि वह याचिकाकर्ता की कोई भी मदद कर पाने में सक्षम नहीं है.


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