सेंट्रल विस्टा: केंद्र ने HC में याचिका को बताया परियोजना रोकने का 'बहाना', याचिकाकर्ता ने 'आशवित्ज' से की तुलना
सेंट्रल विस्टा के खिलाफ दायर याचिका का विरोध करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह याचिका असल में जनहित याचिका की आड़ में एक “बहाना” है परियोजना को रोकने का जिसे वो हमेशा से रोकना चाहते थे.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट में महामारी के मद्देनजर सेंट्रल विस्टा परियोजना को रोके जाने को लेकर दायर एक जनहित याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह याचिका काम को रुकवाने के लिए एक “बहाना” है.
दूसरी तरफ याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि उनकी रूचि सिर्फ परियोजना स्थल पर काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा और नागरिकों के जीवन की रक्षा में है. उन्होंने परियोजना की तुलना द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एक जर्मन यातना शिविर “आशवित्ज” से की.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष करीब तीन घंटे तक चली सुनवाई के दौरान याचिका को खारिज करने और परियोजना का काम चालू रखे जाने के पक्ष में पुरजोर दलीलें दी गईं. पीठ ने मामले पर फैसला सुरक्षित रखा है.
इस परियोजना का ठेका प्राप्त करने वाली शापूरजी पालोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने भी जनहित याचिका में वास्तविकता की कमी होने का जिक्र करते हुए इसका विरोध किया और कहा कि वह अपने कर्मियों का ध्यान रख रही है.
याचिकाकर्ताओं के दावों का विरोध करते हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह याचिका असल में जनहित याचिका की आड़ में एक “बहाना” है परियोजना को रोकने का जिसे वो हमेशा से रोकना चाहते थे.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल दिल्ली के लोगों के स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिये सिर्फ संदेश दे रहे हैं और अगर सरकार इसे नहीं देख सकती तो नागरिकों के जीवन के प्रति चिंता का यह “अफसोसनाक प्रदर्शन” है.
चालू परियोजना को सेंट्रल विस्टा के बजाय “मौत का केंद्रीय किला” कहते हुए लूथरा ने इसकी तुलना “आशवित्ज” से करते हुए दलील दी कि निर्माणस्थल पर चिकित्सा सुविधाएं, जांच केंद्र आदि के उपलब्ध होने के बारे में केंद्र ने जो बातें कहीं थीं वो सब गलत हैं.
उन्होंने कहा कि उस जगह सिर्फ खाली तंबू लगा दिये गए हैं और वहां कोई बिस्तर या दूसरी सुविधा नहीं है जहां मजदूर ठहर व सो सकें.
अदालत अनुवादक अन्य मल्होत्रा और इतिहासकार व वृतचित्र फिल्मकार सोहेल हाशमी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने दलील दी थी कि यह परियोजना आवश्यक गतिविधि नहीं है और इसलिये महामारी के दौरान अभी इसे टाला जा सकता है.
परियोजना के तहत एक नया संसद भवन, एक नए आवासीय परिसर के निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसमें प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति के आवास के साथ-साथ कई नए कार्यालय भवन और मंत्रालयों के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय का निर्माण होना है.