नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और विभिन्न जांच एजेंसियों से जवाब मांगा है. आरोप लगाया गया है कि कुछ लोगों ने अपने समूह की कंपनियों के जरिए सरकारी खजाने को 500 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया.


मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने शहरी विकास मंत्रालय, दिल्ली सरकार, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई, आयकर आयुक्त और वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) को इस मामले पर अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया है.


जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि दिल्ली के आठ निवासियों ने अपने समूह की कंपनियों के जरिए वित्तीय संस्थानों और राष्ट्रीयकृत बैंकों से बड़ी मात्रा में ‘ठगी’ की है. पीठ ने दोनों सरकारों और जांच एजेंसियों को मामले की पड़ताल करने और इस बारे में अदालत को सूचित करने का आदेश दिया.


जनहित याचिका क्या है?


भारतीय संविधान के अनुसार देश के नागरिकों के मूल अधिकारों के हो रहे नुकसान को रोकने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जा सकती है. संविधान में अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट और अनु्च्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जा सकती है. जनहित याचिकी को पीआईएल या पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन भी कहा जाता है.


कोर्ट में दायर की गई जनहित याचिका पूरी तरह से जनहित याचिका है या फिर नहीं इसका फैसला करना पूरी तरह से कोर्ट पर होता है. वहीं याचिका दायर करने वाले व्यक्ति को कोर्ट में साबित करना होता है कि याचिका से संबंधित मामले में किसी भी नागरिक के अधिकार का हनन कैसे हो रहा है.


इसे भी पढ़ेंः
कायाकल्प के बाद बेहद शानदार और भव्य होगा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन


यमुना में प्रदूषण पर SC ने लिया संज्ञान, पूरी समस्या पर करेगा विचार