PIL: दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें केंद्र से सभी छात्रों के लिए समान शिक्षा प्रणाली, समान पाठ्यक्रम और मातृ भाषा में सामान्य पाठ्यक्रम, कक्षा 12 तक सभी छात्रों के लिए और इसके अनुरूप लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई है. समाज के संवैधानिक लक्ष्यों, धर्मनिरपेक्षता, स्थिति की समानता, समान अवसर, भाईचारा, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए ये मांग की गई है.


इस जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी प्रवेश परीक्षाओं जैसे संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE), बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस एडमिशन टेस्ट (BITSAT), राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET), प्रबंधन योग्यता परीक्षा (MAT) के लिए पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम समान हैं। राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET), राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), केंद्रीय विश्वविद्यालय सामान्य प्रवेश परीक्षा (CU-CET), सामान्य कानून प्रवेश परीक्षा (CLAT), अखिल भारतीय विधि प्रवेश परीक्षा ((AILET), सिम्बायोसिस प्रवेश परीक्षा (SET), किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (KVPY), नेशनल एंट्रेंस स्क्रीनिंग टेस्ट (NEST), प्रोबेशनरी ऑफिसर (PO), स्पेशल क्लास रेलवे अपरेंटिस (SCRA), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT), ऑल इंडिया एंट्रेंस एग्जामिनेशन फॉर डिजाइन (AIEED), नेशनल एप्टीट्यूड टेस्ट इन आर्किटेक्चर (NATA), सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी (CEPT) आदि लेकिन, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE), इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (ICSE) और स्टेट Boa का पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम आरडीएस बिल्कुल अलग हैं। इस प्रकार, छात्रों को अनुच्छेद 14-16 की भावना में समान अवसर नहीं मिलता है.


मौजूदा शिक्षा प्रणाली समाज को कई तबकों में विभाजित कर रही
याचिकाकर्ता वकील और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस जनहित याचिका में इस बात का आरोप लगाया है कि स्कूल माफिया एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड नहीं चाहते हैं, "कोचिंग माफिया एक राष्ट्र-एक पाठ्यक्रम नहीं चाहते हैं और किताब माफिया सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें नहीं चाहते हैं. इसलिए 12वीं तक की एक समान शिक्षा प्रणाली अभी तक लागू नहीं की गई है." याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली न केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS), गरीबी रेखा से नीचे (BPL), मध्यम आय समूह (MIG), उच्च आय समूह (HIG), एलीट क्लास के बीच समाज को विभाजित कर रही है, बल्कि ये एकता और भाईचारे और राष्ट्र की अखंडता और 'समाजवाद धर्मनिरपेक्षता' के खिलाफ भी है.


शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार
याचिकाकर्ता ने आगे कहा, "इसके अलावा, यह सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान नहीं करता है क्योंकि सीबीएसई, आईसीएसई और राज्य बोर्ड के पाठ्यक्रम-पाठ्यक्रम पूरी तरह से अलग हैं. हालांकि अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21 ए के अनुच्छेद 38, 39, 46 के साथ सामंजस्यपूर्ण-उद्देश्यपूर्ण निर्माण इस बात की पुष्टि करता है कि शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है और राज्य क्षेत्र, धर्म, नस्ल, जाति, वर्ग या संस्कृति के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता हैं." एक सरकारी स्कूल का छात्र एक निजी स्कूल के छात्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए अयोग्य है जो शिक्षा की एक ब्रिटिश/फ्रांसीसी (अंतर्राष्ट्रीय स्तर की) प्रणाली प्रदान करता है और धारा 1(4) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम की 1(5) के कारण व्यापक अंतर हो जाता है.


शिक्षा का अधिकार बच्चे की आर्थिक या सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित नहीं होनी चाहिए
अश्विनी कुमार उपाध्याय ने आगे कहा, "भले ही इस असमानता को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता है, लेकिन सरकार कॉलेज और विश्वविद्यालय के उम्मीदवारों के लिए एक मानक के मुताबिक प्रवेश प्रणाली स्थापित कर सकती है. पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम के मानकीकरण का मतलब है कि सभी को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश के समान अवसर मिलेंगे." उन्होंने याचिका में आगे कहा, 'शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है इसलिए यह समान मानक और समान स्तर पर होना चाहिए, न कि बच्चे की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों पर आधारित होनी चाहिए. धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बच्चों को उनके सामाजिक-आर्थिक के बावजूद मुफ्त अनिवार्य और सामान्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है.'


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