सिनेमा हॉल में अब राष्ट्रगान बजाना जरूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
30 नवंबर 2016 को मध्य प्रदेश के रहने वाले श्याम नारायण चौकसे की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान को लोगों में देशभक्ति जगाने का एक अहम ज़रिया बताया था. इसके बाद कई मौकों पर कोर्ट ने थिएटर में राष्ट्रगान बजाने के आदेश को वापस लेने से मना किया था.
नई दिल्ली: सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान चलाना अब ज़रूरी नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में बदलाव कर दिया है. पहले कोर्ट ने फ़िल्म से पहले राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य बनाया था. आज कहा कि अगर हॉल मालिक चाहें तो राष्ट्रगान बजा सकते हैं.
30 नवंबर 2016 को मध्य प्रदेश के रहने वाले श्याम नारायण चौकसे की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान को लोगों में देशभक्ति जगाने का एक अहम ज़रिया बताया था. इसके बाद कई मौकों पर कोर्ट ने थिएटर में राष्ट्रगान बजाने के आदेश को वापस लेने से मना किया था.
लेकिन पिछली सुनवाई में अपने रुख में बदलाव करते हुए कोर्ट ने कहा,"लोगों में देशभक्ति जगाना कोर्ट का काम नहीं है. सरकार अगर हमारे आदेश को सही मानती है तो खुद नियम बनाए. कोर्ट के कंधे का इस्तेमाल न करे."
इसके जवाब में हलफनामा दाखिल करते हुए सरकार ने बताया कि उसने राष्ट्रगान से जुड़े सभी पहलुओं को देखने के लिए 12 सदस्यों की कमिटी के गठन किया है. इसमें कई मंत्रालयों के आला अधिकारी शामिल हैं. ये कमेटी छह महीने में राष्ट्रगान को लेकर नियमों में बदलाव पर रिपोर्ट देगी.
सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि इस दौरान कोर्ट 30 नवंबर 2016 से पहले की स्थिति बहाल कर दे. यानी हॉल में राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता को खत्म कर दे.
इस सुझाव को स्वीकार करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने आदेश में बदलाव कर दिया. कोर्ट ने कहा,"थिएटर चलाने वाले चाहें तो फ़िल्म से पहले राष्ट्रगान चला सकते हैं. अगर वो ऐसा करते हैं तो हॉल में मौजूद लोगों को उस दौरान खड़ा होना होगा. दिव्यांग लोगों को इससे छूट हासिल होगी."
कोर्ट ने कहा कि वो मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई बंद कर रहा है. साफ है कि अब ये सरकार को ही तय करना है कि भविष्य में सिनेमा हॉल या दूसरी जगहों में राष्ट्रगान अनिवार्य होगा या नहीं.