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Places of Worship Act के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं का सिलसिला जारी, अब तक दाखिल हो चुकी हैं कई याचिकाएं

चुनाव सुधार और देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून को लेकर कई जनहित याचिकाएं दाखिल करने वाले वकील और बीजेपी नेता ने 1991 के उपासना स्थल कानून को भी चुनौती दे रखी है.

1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगातार दाखिल हो रही हैं. सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली बनाए रखने के इस कानून को मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध बताया जा रहा है. मामले में सबसे नई याचिका वाराणसी के रहने वाले स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती की है. उन्होंने कहा है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदाय को अपना अधिकार मांगने से वंचित करता है. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून को चुनौती देने वाली वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र को पहले ही नोटिस जारी कर चुका है. सरकार ने अभी तक उस पर जवाब दाखिल नहीं किया है.

कोर्ट ने पूछा है केंद्र से सवाल

12 मार्च 2021 को बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. इस याचिका में बताया गया है कि 1991 में जब प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट बना, तब अयोध्या से जुड़ा मुकदमा पहले से कोर्ट में लंबित था. इसलिए, उसे अपवाद रखा गया. लेकिन काशी-मथुरा समेत बाकी सभी धार्मिक स्थलों के लिए यह कह दिया गया कि उनकी स्थिति नहीं बदल सकती. इस तरह का कानून न्याय का रास्ता बंद करने जैसा है. किसी मसले को कोर्ट तक लेकर आना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है. लेकिन 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट' इस अधिकार से वंचित करता है. यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर जबरन मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे. यह न सिर्फ न्याय पाने के मौलिक अधिकार का हनन है, बल्कि धार्मिक आधार पर भी भेदभाव है.

अब तक दाखिल हो चुकी हैं कई याचिकाएं

1-विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ- मामले में सबसे पहले 14 जून 2020 को विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ नाम की संस्था ने याचिका दाखिल की थी. इसकी सुनवाई से पहले ही जमीयत उलेमा ए हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था. सुन्नी मुस्लिम उलेमाओं के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया था कि वह पुजारी महासंघ की याचिका पर सुनवाई न करे. जमीयत का कहना था कि अयोध्या के फैसले के बाद अगर सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर नोटिस जारी करता है, तो इससे मुस्लिम समुदाय में डर का माहौल पैदा हो जाएगा. हालांकि, इन दोनों याचिकाओं पर सुनवाई से पहले ही कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी कर दिया.

2-अश्विनी उपाध्याय- चुनाव सुधार और देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून को लेकर कई जनहित याचिकाएं दाखिल करने वाले वकील और बीजेपी नेता ने 1991 के उपासना स्थल कानून को भी चुनौती दे रखी है. इस पर 2021 में तत्कालीन चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी किया था.

3-सुब्रमण्यम स्वामी- इस कानून के खिलाफ राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. उनकी याचिका पर भी कोर्ट नोटिस जारी कर चुका है. कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका को अश्विनी उपाध्याय की याचिका के साथ जोड़ दिया है. दोनों पर साथ सुनवाई होगी.

4-चंद्र शेखर- 23 मई को दिल्ली के रहने वाले चंद्र शेखर नाम के वकील ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्होंने कहा है कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट न्याय के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है. यह बर्बर हमलावरों की तरफ से बनाई गई अवैध इमारतों को वैधता प्रदान करता है.

5-जितेन्द्रानंद सरस्वती- अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती वाराणसी में रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में उन्होंने खुद को जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर वासुदेवानंद सरस्वती का शिष्य बताया है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि संविधान के तहत सरकार को किसी समुदाय से विशेष प्रेम या द्वेष नहीं रखना चाहिए. लेकिन सरकार ने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख समुदाय को अपना अधिकार मांगने के लिए कोर्ट जाने से रोकने का कानून बना दिया.

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