SCO Summit Update: उज्बेकिस्तान के समरकंद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मुलाकात की स्थितियां इस बार भी कुछ वैसी ही हैं, जैसी 2017 में G20 शिखर सम्मेलन के वक्त थी. जुलाई 2017 में जर्मनी के हैम्बर्ग में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली से पीएम के रवाना होने तक दोनों नेताओं की मुलाकात की खबरों को नकारा जा रहा था. सीमा का तनाव सुलझा नहीं था और ऐसे में जर्मनी की जमीन पर दोनों के बीच बैठक तो दूर मिलने की संभावना पर भी दोनों तरफ से चुप्पी थी. 


हैम्बर्ग में जो हुआ उसने दुनिया को चौंका दिया था. जी20 के हाशिए पर न केवल दोनों नेता मिले बल्कि एक अनौपचारिक ब्रिक्स बैठक भी हुई थी. मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात का नतीजा भी निकला था और डोकलाम में 21 हफ्तों तक चला विवाद सुलझने का रास्ता इसके बाद निकल गया था. हैम्बर्ग की मुलाकात के ही तीन महीने बाद बीजिंग में हुई पार्टी कॉंग्रेस की बैठक में राष्ट्रपति पद पर शी जिनपिंग के दूसरे कार्यकाल पर मुहर लग गई थी. 


दोनों देशों में कम नहीं हुआ है तनाव
 
इसके बाद दोनों नेताओं ने अनौपचारिक शिखर बैठक का सिलसिला शुरू किया. इस कड़ी में अप्रैल 2018 में दोनों नेता जहां वुहान में मिले वहीं भारत के माम्लापुरम में भी दोनों की मुलाकात हुई. यह सिलसिला आगे बढ़ता इसके पहले ही कोरोना महामारी ने दुनिया को दबोच लिया. वहीं, पूर्वी लद्दाख में सरहद पर चीनी सेना हदें तोड़ मोर्चाबंदी बनाकर बैठ गईं. जाहिर है यह प्रधानमंत्री मोदी और भारत के भरोसे को झटका था. भारत ने लद्दाख की जमीन पर चीन के पैंतरे का पूरा और उसकी ही भाषा में जवाब भी दिया. करीब 28 महीनों की मशक्कत और गलवान घाटी संघर्ष जैसी घटना के बाद कुछ मोर्चों पर सेनाएं पीछे लेने का फैसला जरूर हुआ है, लेकिन तनाव कम नहीं हुआ है.


अब इसे संयोग कहिए या रणनीतिक हालात, मगर समरकंद में भी जब दोनों नेता 16 सितंबर को रूबरू होंगे तो हाल-गोचर में नजर आएंगे, लेकिन यह भी सही है कि इस दौरान बहुत कुछ ऐसा भी है जो बदला है. सो, यह सवाल उठता है कि क्या भारत और चीन के नेताओं करीब 34 महीने बाद रूबरू होने पर पुराने अंदाज में बातचीत करेंगे? सामान्य शिष्टाचार निभाया जाएगा या सरहद पर चली तल्खी का असर समरकंद में भी नजर आएगा?


सरहद पर बन गए थे जंग के हालात 


इतना ही नहीं, सवाल इस बात को लेकर भी हैं कि क्या पीएम मोदी और जिनपिंग मिलकर वुहान स्पिरिट जैसे किसी आश्वासन पर भरोसा जगा पाएंगे? क्योंकि पहले हैम्बर्ग और फिर वुहान में भी चीनी नेतृत्व की तरफ से विवादों को सुलझाने और शीर्ष स्तर पर राजनीतिक समझ-संवाद का भरोसा तो दिया गया था, लेकिन कुछ ही महीनों में बीजिंग के ऐसे तमाम वादों की कलई उतर गई. यहां तक कि सरहद पर जंग के हालात बन गए थे. 


यह संदेश दे सकते हैं पीएम मोदी 


अपने-अपने देशों में बेहद ताकतवर नेता की छवि रखने वाले दोनों नेताओं के बीच यह बात तो कई बार हुई कि विवादों को सुलझाया जाए, लेकिन बीते दस सालों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कभी देपसांग, चुमार, डोकलाम तो कभी गलवान जैसे विवाद खड़े होते ही रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा कि समरकंद में पीएम यह संदेश जरूर देने का प्रयास करेंगे कि बातचीत की कवायदें और सैनिक तनाव बढ़ाने वाले तौर-तरीके एक साथ नहीं चल सकते. साथ ही अगर दोनों नेताओं के बीच बात होती हैं तो भारत की तरफ से दोहराया जाएगा कि सीमाओं पर शांति और स्थायित्व की बेहतर संबंधों का आधार है. 


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