नई दिल्ली: भारत और फिलिस्तीन के रिश्ते हमेशा खुशगवार रहे हैं. फिलिस्तीन को लेकर भारत का रवैया हमेशा से दोस्ताना रहा है. रिश्तों में तल्खी की मिसालें बहुत कम है, लेकिन दोनों देशों के बीच आखिरी तनाव बहुत ताज़ा है. भारत-फिलिस्तीन में तब तल्खी देखी गई जब 2017 के दिसंबर के आखिर में पाकिस्तान में फिलिस्तीनी राजदूत वालिद अबू अली को आतंकी हाफिज सईद के साथ मंच साझा करते हुए पाया गया. फिलिस्तीन के राजदूत के इस रवैए पर भारत ने सख्त एतराज जताया, जिसके बाद नेहरु के दौर से भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्तों का गवाह रहे फिलिस्तीन को अपने राजदूत की भारत विरोधी ये हरकत नागवार गुज़री और उसे तुरंत वापस बुला लिया गया.
ताज़ा तल्खी और बीते दिनों इजराइल के प्रधानमंत्री बिंजामिन नेतन्याहू के भारत दौरे की छाया में मोदी फिलिस्तीन के दौरे पर हैं. पीएम मोदी के इस दौरे के अहम मुद्दों में भारत का 'फिलिस्तीनी मांग' (यूएन से एक देश की मान्यता) को समर्थन के अलावा सिक्योरिटी, हेल्थकेयर, टूरिज़्म, खेती और संस्कृति जैसी बातें शामिल होंगी.
ये चौथा मौका होगा जब पीएम मोदी और फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास की मुलाकात होगी. अपने इस दौरे को लेकर पीएम मोदी फेसबुक पर लिखा, "मैं फिलिस्तीन के द्विपक्षीय दौरे पर जा रहा हूं. ये किसी भारतीय पीएम का पहला फिलिस्तीन का दौरा है. राष्ट्रपति अब्बास के साथ बातचीत को लेकर मुझे काफी उम्मीदें हैं. भारत फिलिस्तीन की मांग और उसके लोगों के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धाता दोहराता है."
क्यों मायने रखता है मोदी का ये दौरा
भारत के पीएम का ये दौरा इसलिए बहुत मायने रखता है क्योंकि इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच बीते 5 दशक से मतभेद हैं और अब भारत इन दोनों देशों के काफी करीब है. फिलिस्तीन से भारत का रिश्ता नेहरू के जमाने से बहुत ही करीबी है, जबकि 90 के दशक में इजराइल से राजनयिक रिश्तों की शरुआत हुई, जो अब काफी करीबी हो चली है. ऐसे में भारत को दोनों देशों से बेहतर तालमेल की कसौटी पर उतरना है.
यूएन में फिलिस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता नहीं मिली है. भारत इस मांग का समर्थक है, वहीं इज़राइल अपने पड़ोसी को देश की मान्यता दिए जाने का घोर विरोधी है. दुनिया में भारत के बढ़ते कद के साथ सबकी निगाहें इसपर होंगी कि फिलिस्तनी को देश का दर्जा दिलाने वाले भारत के स्टैंड को इस दौरे से कौन सा नया मोड़ मिलता है. साथ ही इजराइल से रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा.
मोदी अपने इस दौरे के दौरान वेस्ट बैंक के रामल्ला में यासीर अराफात म्युज़ियम जाएंगे. यहां वे देश के ऐतिहासिक नेता रहे अराफात की याद में आयोजित किए जा रहे एक समारोह में हिस्सा लेंगे. वेस्ट बैंक को लेकर भी इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद है. इज़राइल पर लगतार वेस्ट बैंक में अतिक्रमण करने के अरोप लगते रहे हैं. एक समय में इस इलाके में फिलिस्तीन की भारी आबादी थी जिसे इज़राइल ने लगभग पूरी तरह से कमज़ोर कर दिया.
यूएन में भारत फिलिस्तीन की तमाम मांगों के साथ कंधे से कंधा मिलाए खड़ा नज़र आता है. हाल ही में जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने येरुशलम को इज़राइल की राजधानी मानाने का एलान किया तब भारत इसके विरोध में फिलिस्तीन के साथ खड़ा नज़र आया. हालांकि, विश्लेषक कयास लगा रहे थे कि मोदी सरकार का अमेरिका के इस कदम को समर्थन मिले लेकिन वो गलत साबित हुए.
भारत के बारे में क्या राय रखता है फिलिस्तीन
पीएम मोदी के फिलिस्तीन पहुंचने के पहले देश के राष्ट्रपति के सलाहकार माजिद अल खालिदी ने एक बयान में कहा, "पीएम मोदी का ये दौर एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हो रहा है. वे तब इस दौरे पर आ रहे हैं जब फिलिस्तीन चाहता है कि भारत इस क्षेत्र में मौजूद बाकी देशों के साथ मेल-जोल बढ़ाए." इसी सिलसिले में उन्होंने अमेरिका को दरकिनार करते हुए कहा कि अमेरिका अकेली ताकत नहीं हो सकती जो बाकी दुनिया का भविष्य तय करे. अब दुनिया में कई ताकते हैं और उन्हीं में से एक भारत को फिलिस्तीन न्यौता देता है कि दिक्कतों को हल करने में हमारी मदद करे.
भारत की गरिमा को और बढ़ाते हुए अल खालिदी ने कहा कि भारत उन चंद देशों में शुमार है जिसे इस क्षेत्र में मौजूद किसी देश से कोई समस्या नहीं है. भारत-पाक रिश्तों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि हम खास मामलों में दख्ल नहीं देते हैं. वे आगे कहते हैं कि जब हमारे राजदूत ने भारत विरोधी बातें कीं तब हमें उन्हें हटाने का निर्णय लेने में बिल्कुल देर नहीं लगी.
क्या है इज़राइल और फिलिस्तीन विवाद
इज़राइल और फिलिस्तीन का संघर्ष काफी लंबे समय से चला आ रहा है. इसकी शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध में यहूदियों के इस क्षेत्र में आने के बाद से ही शुरू हुई जिसने कभी थमने का नाम ही नहीं लिया. इसे यहूदी-अरब विवाद के तौर भी जाना जाता है. विवादित मुद्दों में इज़राइल का वेस्ट बैंक और गज़ा स्ट्रीप जैसे क्षेत्रों पर कब्ज़ा और फिलिस्तनी का इज़राइल के यहां से पीछे हटने की मांग जैसी प्रमुख बातें शामिल हैं.
लंबे समय से चली आ रही कई शांति वार्ताएं कोई नतीजा लाने में सफल नहीं रही हैं. दोनों देश एक-दूसरे को देश मानने के लिए तैयार नहीं हैं ऐसे में प्रमुख मुद्दों में एक-दूसरे को देश के तौर पर मान्यता देना, बॉर्डर, सुरक्षा, पानी के अधिकार, येरुशलम किसके हिस्से जाएग, इज़राइल का वेस्ट बैंक और गज़ा स्ट्रीप जैसे क्षेत्रों पर कब्ज़ा, कब्ज़े वाले क्षेत्र में फिलिस्तिनियों को मूवमेंव की आज़ादी और कब्ज़े वाले क्षेत्र में फिलिस्तिनियों को लौटने की अज़ादी जैसी बातें शुमार हैं.
दुनिया में आम मत है कि विवादित पक्षों को दो देशों की थ्योरी को मान लेना चाहिए जिसमें एक तरफ स्टेट ऑफ़ इज़राइल और दूसरी तरफ फिलिस्तिनी स्टेट शांति से एक-दूसरे के साथ रह सकें. पोल्स के मुताबिक दोनों देशों में ज़्यादातर लोगों का भी यही मानना है.