नई दिल्ली: पीएम मोदी आज तीन दिन के दौरे पर थाइलैंड पहुंच गए हैं, वहां वो आसियान बैठक में हिस्सा लेंगे. पीएम मोदी का ये दौरा व्यापार, समुद्री सुरक्षा एवं संपर्क जैसे प्रमुख क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित होगा. इस दौरान वह आसियान-भारत, पूर्वी एशिया और RCEP शिखर सम्मेलनों में भी हिस्सा लेंगे. 4 नवंबर को पीएम मोदी RCEP बैठक में हिस्सा लेंगे. मुक्त व्यापार समझौते RCEP को लेकर भारत में विरोध भी शुरू हो गया है.


क्या है आरसीईपी समझौता?
आरसीईपी (रीजनल कॉम्प्रीहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) यानी 16 देशों के बीच होने वाला ऐसा मुक्त व्यापार समझौता है जिससे इनके बीच होने वाले व्यापार को आसान बनेगा. इस प्रस्तावित समझौते के लिए आसियान के 10 देशों (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, वियतनाम) और 6 अन्य देशों (चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्ष‍िण कोरिया, जापान और न्यूजीलैंड) के बीच बातचीत चल रही है.


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आरसीईपी समझौते के लिए सात साल पहले यानी साल 2013 से ही प्रयास किए जा रहे हैं. लक्ष्य के मुताबिक इसे इस साल नवंबर तक फाइनल कर लिया जाएगा. समझौता होने के बाद इसमें शामिल देशों के बीच पारस्परिक व्यापार में टैक्स में तो कटौती होगी ही इसके साथ ही कई और तरह की छूट भी दी जाएगी. इस तरह के समझौते ( मुक्त व्यापार समझौता) में शामिल देश आपस आसान व्यापार के लिए माहौल तैयार करते हैं.


महाबलिपुरम में उठा था आरसीईपी समझौते का मुद्दा
हाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच तमिलनाडु के महाबलिपुरम में हुए अनौपचारिक वार्ता के दौरान में इस समझौते का मुद्दा प्रमुखता से उभरा था. इस समझौते को लेकर भारत की चिंताएं हैं क्योंकि इसके लागू होने के बाद बहुत से उत्पादों पर आयात शुल्क बहुत कम हो जाएगा. ऐसे में खास तौर पर कृषि और डेयरी क्षेत्र में सस्ते उत्पादों के डिंपिंग का खतरा है जो भारत के घरेलू उत्पादकों के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ा सकता है.


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समझौते से भारत को क्या फायदा या नुकसान होगा?
SBI की रिपोर्ट में कहा गया है, 2018-19 में RCEP के 15 में से 11 सदस्य देशों के साथ भारत का घाटे का व्यापार रहा. भारत का 2018-19 में व्यापार घाटा 12.87 लाख करोड़ का था. RCEP के देशों से भारत का आयात 34 फ़ीसदी और निर्यात महज 21 फ़ीसदी था. भारत में सबसे बड़ी आपत्ति ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से डेयरी उत्पादों के आयात पर है. इसके अलावा जेनरिक दवाइयों की सुलभता के साथ, खनन मुनाफा, पानी, ऊर्जा, परिवहन और टेलिकॉम का निजीकरण भी बड़ी अड़चने हैं.


भारत के लिए फैसला लेना मुश्किल है
इस मामले पर जहां एक तरफ आसियान मुल्क औऱ चीन समेत अधिकतर देश जल्द समझौते की पैरवी कर रहें है. वहीं भारत में विपक्ष ही नहीं सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ संघ परिवार में शामिल स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन भारत के RCEP में शामिल होने का खुलकर विरोध कर चुके हैं. हालांकि पीएम के इस दौरे से पहले भारत सरकार ने साफ किया है कि RCEP को लेकर चल रही वार्ताओं को लेकर अब भी उसकी कई आपत्तियां हैं जिनके समाधान का इंतजार है.


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पहले से आर्थिक मंदी के बुखार और सुस्ती के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के मौजूदा सूरते-हाल को देखते हुए सरकार के लिए फौरन आरसीईपी पर कोई फैसला लेना कठिना है. ऐसे में भारत की कोशिश होगी कि 2022 में इस समझौते के लागू होने की प्रस्तावित सीमा से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग जगत को ताकत का टॉनिक दिया जाए. ताकि आरसीईपी के लागू होने पर वो प्रतिस्पर्धा में मुकाबला कर सके.