नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को असम में डिब्रूगढ़ के निकट बोगीबील में ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे लंबे रेल-रोड पुल का उद्घाटन किया. नई दिल्ली से दोपहर में डिब्रूगढ़ पहुंचने के बाद मोदी ने एक हेलिकॉप्टर से सीधे बोगीबील के लिए उड़ान भरी और नदी के दक्षिणी किनारे से 4.94 किलोमीटर लंबे डबल-डेकर पुल का उद्घाटन किया.


पीएम मोदी असम के राज्यपाल जगदीश मुखी और मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के साथ पुल पर कुछ मीटर तक चले. विशाल ब्रह्मपुत्र नदी पर बना, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण यह पुल अरुणाचल प्रदेश के कई जिलों के लिए कई तरह से मददगार होगा. डिब्रूगढ़ से शुरू होकर ये पुल असम के धेमाजी जिले में जाकर खत्म होता है. यह पुल अरुणाचल प्रदेश के भागों को सड़क के साथ-साथ रेलवे से जोड़ेगा.





असम समझौते का हिस्सा रहे बोगीबील पुल को 1997-98 में मंजूरी दी गई थी. ऐसा माना जा रहा है कि यह पुल अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा के पास रक्षा गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा. बोगीबील पुल की आधारशिला साल 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने रखी थी, लेकिन इसका निर्माण कार्य साल 2002 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शुरू हुआ.


आज 25 दिसंबर को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन है और आज ही के दिन ये पुल देश के लोगों को मिल जाएगा. जानिए इस पुल से जुड़ी 10 खास बातें:


ये पुल इतना मजबूत है कि इस पर सेना के टैंक चलाए जा सकते हैं और फाइटर जेट भी लैंड हो सकते हैं.


बोगीबील पुल की आधारशिला साल 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने रखी थी, लेकिन इसका निर्माण कार्य साल 2002 में अटल जी की सरकार में शुरू हुआ.


पीएम मोदी इस पुल के उद्घाटन के मौके पर तिनसुकिया और नहारलागुन इंटरसिटी एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाएंगे.


4.94 किलोमीटर लंबा बोगीबील पुल एशिया का दूसरा और देश का सबसे लंबा रेल-रोड पुल है.



बोगीबील पुल भारत का एकमात्र पूरी तरह से वेल्डेड पुल है जिसके लिए यूरोपीय कोड और वेल्डिंग मानकों का पालन किया गया है.


ब्रह्मपुत्र नदी पर बना ये पुल कुल 42 खम्भों पर टिका हुआ है जिन्हें नदी के अंदर 62 मीटर तक गाड़ा गया है. ये पुल 8 तीव्रता का भूकंप झेलने की क्षमता रखता है.


ये एक डबल डेकर पुल है जिसे भारतीय रेलवे ने बनाया है. इसके नीचे के डेक पर दो रेल लाइने हैं और ऊपर के डेक पर तीन लेन की सड़क है. रेल लाइन पर 100 किलोमीटर की रफ्तार से ट्रेनें दौड़ सकेंगी.


पुल को बनाने में इंजीनियरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी की चौड़ाई 10 किलोमीटर से भी ज्यादा है और इसके रास्ते में भी बदलाव होता रहता है. ऐसे में सबसे पहले इंजीनियरों ने यहां सीमेंट के बड़े-बड़े ढांचे खड़े किए और इस नायाब तकनीक से नदी की चौड़ाई को 5 किलोमीटर में बदल दिया.


ये पुल ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी और दक्षिणी सिरों को जोड़ेगा. पहले धेमाजी से डिब्रूगढ़ की 500 किमी की दूरी तय करने में 34 घंटे लगते थे, अब ये सफर महज 100 किमी का रह जाएगा और 3 घंटे लगेंगे. पहले इटानगर से डिब्रूगढ़ की भी दूरी तय करने में 24 घंटे का समय लगता था लेकिन अब पुल की मदद से सिर्फ 5 घंटे लगेंगे.


पुल को बनाने में तकरीबन 6000 करोड़ रुपयों की लागत आई है जबकि इसका शुरुआती बजट 3200 करोड़ रुपये था और इसकी लंबाई भी शुरुआत में 4.31 किमी तय की गई थी. पुल को बनाने में 30 लाख सीमेंट की बोरियां लगी.


पुल को बनाने में 15 साल से ज्यादा का वक्त लगा, क्योंकि डिब्रूगढ़ में मार्च से लेकर अक्टूबर तक बारिश होती है. हालांकि, पुल को बनाने की समय सीमा 6 साल तय की गई थी.


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