प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 समिट में हिस्सा लेने के लिए तीन दिन के जापान दौरे पर रवाना होंगे. जहां दुनिया के तमाम देश जुट रहे हैं. जी-7 देशों का ये सम्मेलन इस बार परमाणु हमले का दंश झेल चुके जापान के हिरोशिमा में होने जा रहा है. पीएम मोदी 1974 में हुए पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद पहले पीएम होंगे जो जापान के हिरोशिमा जाएंगे. उनसे पहले तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू 1957 में हिरोशिमा का दौरा किया था, इसके बाद से कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री जापान के हिरोशिमा नहीं गया. इसीलिए पीएम मोदी का ये दौरा काफी अहम है. आइए समझते हैं पीएम मोदी के हिरोशिमा दौरे के क्या मायने हैं.
भारत के लिए अहम दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 मई से लेकर 21 मई तक जापान दौरे पर रहेंगे. इस बार जापान इस समिट की अध्यक्षता कर रहा है. जी-7 देशों में जापान, फ्रांस, कनाडा, इटली, अमेरिका, यूके और जर्मनी हैं. इस सम्मेलन में भारत समेत कई अन्य देशों को निमंत्रण दिया गया है. भारत इस सम्मेलन में अपने मुद्दों को रखेगा और चाहेगा कि उसका मैसज पूरी दुनिया तक जाए. पीएम मोदी कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी करेंगे. खासतौर पर चीन की हरकतों को रोकने के लिए पीएम मोदी का जी-7 समिट में शामिल होना काफी अहम माना जा रहा है. बता दें कि जी-7 दुनिया के सबसे ताकतवर संगठनों में एक माना जाता है.
1974 के बाद क्यों हिरोशिमा नहीं गया कोई पीएम
अब सवाल ये है कि आखिर 1974 के बाद से कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री जापान के इस शहर क्यों नहीं गया. दरअसल भारत ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 1974 में पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था, जिसका सीधा असर भारत और जापान के रिश्ते पर भी पड़ा था. तमाम पश्चिमी देश भारत के इस कदम के खिलाफ उतर आए थे, जिनमें जापान भी शामिल था. जापान की तरफ से भारत के खिलाफ बयान दिए गए और प्रतिबंध लगाने की भी बात हुई.
अगले कुछ सालों में जापान से रिश्ते ठीक होते उससे पहले 1998 में एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए दूसरा परमाणु परीक्षण कर दिया गया. इसके बाद जापान ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. जापान ने भारत की खूब आलोचना की थी, जिसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में दरार और ज्यादा गहरी हो गई.
जापान और भारत के रिश्तों में सुधार
परमाणु परीक्षण के बाद खराब हुए जापान और भारत के रिश्तों में सुधार का दौर साल 2000 में शुरू हुआ, जब जापान के पीएम योशिरो मोरी भारत दौरे पर आए. इस दौरान दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई. यहां से जापान-भारत के रिश्ते सुधरने शुरू हो गए. इसके बाद 2006 में भारत के तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह जापान दौरे पर गए. तब जापान के पीएम शिंजो आबे से सिंह ने कई मसलों पर बात की और रिश्तों के एक नए दौर की शुरुआत हुई. शिंजो आबे के लंबे कार्यकाल के दौरान भारत और जापान के रिश्तों में खूब सुधार हुआ और दोनों देशों के बीच व्यापार में भी भारी इजाफा हुआ. आज भारत और जापान के बीच रिकॉर्ड स्तर पर ट्रेड होता है और कई प्रोजेक्ट्स में भी दोनों देश साथ काम कर रहे हैं.
चीन के मोर्चे पर भी काम
जापान और भारत की दोस्ती चीन के आक्रामक रवैये को लेकर भी काफी खास है. जापान से भारत की दोस्ती हमेशा से ही चीन की आंखों में चुभती आई है. जापान और भारत क्वाड संगठन का भी हिस्सा हैं, जिसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हैं. इस संगठन को चीन के लिए काफी खास माना जाता है, हर बार चीन की बढ़ती आक्रामकता को इस मंच से जवाब दिया गया है. इसीलिए क्वाड से भी चीन खौफ खाता है. इंडो पैसिफिक रीजन में चीन के बढ़ते दबदबे को लेकर भी भारत और जापान लगातार काम कर रहे हैं.
क्यों खास है हिरोशिमा
जापान के पीएम फुमियो किशिदा खुद हिरोशिमा से ही आते हैं, इसीलिए इस बार जी-7 समिट को इसी शहर मे आयोजित किया जा रहा है. 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिराए गए थे. जिसके बाद द्वतीय विश्व युद्ध खत्म हो गया. सबसे पहला बम हिरोशिमा में गिराया गया था, जिसमें लाखों लोगों की जान गई और जमकर तबाही मची. यही कारण है कि जापान में मौत का मंजर देखने वाले इस शहर में ये बड़ा सम्मेलन हो रहा है. जिससे परमाणु हथियारों के बढ़ते खतरे को लेकर दुनिया को एक मैसेज दिया जा सके.