विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जिस कदर भावुक हुए,उसके सियासी गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं. आमतौर पर किसी सदस्य के सदन से रिटायर होने पर प्रधानमंत्री समेत पक्ष-विपक्ष के नेता उस सदस्य के कार्यकलापों की प्रशंसा ही करते हैं लेकिन मोदी ने जिस तरह से आजाद की तारीफ की,उसे अभूतपूर्व ही कहा जायेगा.


दरअसल, सियासी गलियारो में पीएम मोदी की इस तारीफ के राजनीतिक मायने निकालने की भी अपनी वजह है. अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब आजाद समेत ढाई दर्जन से ज्यादा नेताओं ने एक चिट्ठी लिखकर कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की आवाज उठाई थी. वह तो यह तक कह चुके हैं कि सदन और पार्टी के भीतर मैं खुद को गुलाम ही समझता हूं. तभी कांग्रेस के भीतर -बाहर यह कयास लगने लगे थे कि गुलाम नबी अब कांग्रेस से आजाद होने के लिए फड़फड़ा रहे हैं.


बीते अगस्त में ही आजाद ने प्रधानमंत्री मोदी से लंबी मुलाकात की थी. इस मुलाकात को लेकर सोनिया गांधी के करीबी नेताओं ने भी लगभग यह मान लिया था कि अब आजाद कभी भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं. लेकिन चतुर नेता वही होता है जो सही वक्त पर सही फैसला ले.


वैसे आगामी अप्रैल में केरल से राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं. वहां UDF की अगुवाई वाली सरकार में शामिल कांग्रेस के पास अपने एक सदस्य को राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त संख्या है. अगर कांग्रेस ने उन्हें वहां से उम्मीदवार नहीं बनाया,तो इतना तय है कि तब कांग्रेस की गुलामी से आजाद होने के लिए वे भाजपा का दामन थाम सकते हैं. केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने आज सदन में इसका इशारा भी कर दिया कि अगर कांग्रेस दोबारा आपको इस सदन में नहीं लाती है,तो हम ले आएंगे.