PM Modi Europe Visit: यूक्रेन संकट पर अलग रुख के बावजूद यूरोप से बेझिझक और सीधे संवाद की तैयारी से मिलेंगे पीएम मोदी
जर्मनी की सत्ता में आई एसडीपी और ग्रीन पार्टी की नई सरकार इस मामले में संवेदनशील भी है और इस मामले में भारत से अधिक मुखर रुख़ की उम्मीद जता चुकी है.
PM Modi Europe Tour: रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के मुद्दे पर भारत और उसके यूरोपीय साझेदार भले ही अलग अलग पाले में खड़े हों, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिवसीय यूरोप दौरे में भारत इस मामले पर जर्मनी, फ्रांस, डेनमार्क और नॉर्डिक कुनबे के मुल्कों के साथ बेझिझक व सीधे संवाद की तैयारी से पहुंचेगा.
पीएम मोदी की यात्रा से पहले मीडिया से रू-ब-रू हुए नए विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा कि यूक्रेन के मुद्दे पर भारत की राय बहुत स्पष्ट है. हम चाहते हैं कि प्रतिशोध व हिंसा की कार्रवाई खत्म हो और राजनयिक प्रयासों से समाधान का जाए. उन्होंने कहा कि भारत के सभी अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों, ख़ासकर यूरोप के साथियों को पूर्णतया साफ है, हमें नहीं लगता कि इसके बारे में किसी को कोई संशय या संकोच है. लिहाजा इस मामले पर जब भी और जहां भी बात होगी भारत का मत स्पष्टता के साथ रखा जाएगा. यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी मत में उसकी प्रस्तावना ही नहीं होती बल्कि उसका सकारात्मक पहलू भी होता है. सो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे साथियों को इस मत की ना केवल जानकारी है बल्कि गहराई से समझ भी है.
महत्वपूर्ण है कि बर्लिन में चांसलर ओलाफ शुल्ट्ज अपने जिस दफ़्तर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करेंगे उससे महज़ चंद मीटर के फ़ासले पर ही यूक्रेन से आए शरणार्थियों के लिए राहत कैंप स्थापित किए गए हैं. जर्मनी की सत्ता में आई एसडीपी और ग्रीन पार्टी की नई सरकार इस मामले में संवेदनशील भी है और इस मामले में भारत से अधिक मुखर रुख़ की उम्मीद जता चुकी है. हालांकि भारत भी यह साफ़ कर चुका है कि वो रूस के ख़िलाफ़ पाबंदी और हथियारबंदी की सियासत का समर्थन नहीं करता. बल्कि समाधान का रास्ता बातचीत से निकाला जाना चाहिए.
पीएम मोदी के दौरे में यूक्रेन के मुद्दे का सवाल केवल जर्मनी के दौरे में ही नहीं बल्कि डेनमार्क में होने वाली द्विपक्षीय मुलाक़ातों और भारत-नॉर्डिक देशों के सम्मेलन में भी चर्चाओं में उठेगा. रूस-यूक्रेन संकट के बीच नॉर्डिक क्षेत्र में मची खलबली का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वीडन और फ़िनलैंड ने अपनी नाटो सदस्यता का आवेदन आगे बढ़ाया है.
कोपनहेगन के बाद पेरिस में फ़्रांस के पुनर्निर्वाचित राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रों के साथ होनी वाली पीएम की मुलाक़ात में भी यह मुद्दा उठ सकता है. शांति के प्रयासों राष्ट्रपति मैक्रो जहां राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति जेलेंस्की से बात करते रहे हैं, वहीं पीएम मोदी ने भी दोनों नेताओं से इस संकट के दौरान दो बार बात की है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य होने के नाते भी दोनों देशों के नेताओं ही यह बातचीत अहम होगी. फ़्रांस जहां सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य होगा वहीं भारत अस्थाई सदस्य है.
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