नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज पांचवें आयुर्वेदिक दिवस के अवसर पर जामनगर और जयपुर में आयुर्वेद संस्थान का वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से उद्घाटन किया. इन संस्थानों से 21वीं सदी में आयुर्वेद की प्रगति और विकास में पूरी दुनिया में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है. इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि आयुर्वेद भारत की विरासत है जिसके विस्तार में पूरी मानवता की भलाई समाई हुई है.


प्रधानमंत्री ने पांचवें आयुर्वेद दिवस पर आयुर्वेद संस्थानों, जामनगर के आयुर्वेद अध्यापन अनुसंधान संस्थान (आईटीआरए) और जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए) को राष्ट्र को समर्पित करने के बाद अपने संबोधन में ये बात कही.


"आयुर्वेद के विस्तार में पूरी मानवता की भलाई"
प्रधानमंत्री ने कहा, "आयुर्वेद भारत की एक विरासत है, जिसके विस्तार में पूरी मानवता की भलाई है. यह देखकर किस भारतीय को खुशी नहीं होगी कि हमारा पारंपरिक ज्ञान अब अन्य देशों को भी समृद्ध कर रहा है. आज ब्राजील की राष्ट्रीय नीति में आयुर्वेद शामिल है. भारत-अमेरिका संबंध हों या भारत-जर्मनी रिश्ते हों, आयुष और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से जुड़ा सहयोग निरंतर बढ़ रहा है."


प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना से मुकाबले के लिए जब कोई प्रभावी तरीका नहीं था तो भारत के घर-घर में हल्दी, काढ़ा, दूध जैसे अनेक इंम्यूनिटी बूस्टर उपाय बहुत काम आए. इतनी बड़ी जनसंख्या वाला हमारा देश अगर आज संभली हुई स्थिति में है तो उसमें हमारी इस परंपरा का बहुत बड़ा योगदान है.


आयुर्वेदिक उत्पादों का निर्यात करीब डेढ गुना बढ़ा
मोदी ने कहा कि कोरोना काल में पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है और बीते साल की तुलना में इस साल सितंबर में आयुर्वेदिक उत्पादों का निर्यात करीब डेढ गुना बढ़ा है. उन्होंने कहा कि मसालों के निर्यात में भी इस दौरान काफी बढ़ोतरी दर्ज हुई हैं.


प्रधानमंत्री ने कहा, "यह दर्शाता है कि दुनिया में आयुर्वेदिक समाधान और भारतीय मसालों पर विश्वास बढ़ रहा है. अब तो कई देशों में हल्दी से जुड़े विशेष पेय पदार्थों का भी प्रचलन बढ़ रहा है. दुनिया के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल भी आयुर्वेद में नई आशा और उम्मीद देख रहे हैं. भारत के पास आरोग्य से जुड़ी कितनी बड़ी विरासत है लेकिन ये ज्ञान ज्यादातर किताबों में, शास्त्रों में और थोड़ा-बहुत दादी-नानी के नुस्खों तक सीमित रहा. इस ज्ञान को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार विकसित किया जाना आवश्यक है."


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