संयुक्त राष्ट्र में PM मोदी ने कहा- भूमि क्षरण दुनिया के दो तिहाई हिस्से को कर रहा प्रभावित, अनियंत्रित होने पर होगी बड़ी समस्या
संयुक्त राष्ट्र ने कहा, ‘‘वैश्विक रूप से पृथ्वी के भूमि क्षेत्र का दो अरब हेक्टेयर से ज्यादा के क्षेत्र का क्षरण हो गया है, जिसमें कृषि भूमि का आधे से ज्यादा हिस्सा शामिल है. अगर हमने मृदा का प्रबंधन नहीं किया तो 2050 तक 90 प्रतिशत से अधिक भूमि का अवक्रमण हो सकता है.’’
प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के वर्चुअली उच्च स्तरीय कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सोमवार की शाम को कहा कि भारत में हमने हमेशा भूमि को महत्व दिया है और पवित्र पृथ्वी को अपनी मां के रूप में मानते हैं. भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भूमि क्षरण के मुद्दों को उजागर करने का बीड़ा उठाया है.
उन्होंने कहा कि भारत में पिछले 10 साल में लगभग 30 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र जोड़ा गया है. इसने संयुक्त वन क्षेत्र को देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 1/4 भाग तक बढ़ा दिया है. हम भूमि क्षरण तटस्थता की अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्राप्त करने की राह पर हैं.
पीएम मोदी ने कहा कि दुख की बात है कि भूमि क्षरण आज दुनिया के दो तिहाई हिस्से को प्रभावित करता है. अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो यह हमारे समाजों, अर्थव्यवस्थाओं, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता की नींव को ही नष्ट कर देगा.
उन्होंने कहा कि हम 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि को बहाल करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं. यह 2.5-3 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता में योगदान देगा. पीएम ने कहा कि जमीन सभी के जीवन और आजीविका के लिए जरूरी है. हम सभी समझते हैं कि जीवन का जाल एक दूसरे से जुड़े हुए तंत्र के रूप में कार्य करता है. उन्होंने कहा कि लेकिन दुख की बात है कि भूमि क्षरण आज दुनिया के दो तिहाई हिस्से को प्रभावित कर रहा है.
इससे पहले, परामर्श में कहा गया है, ‘‘भूमि हमारे समाज की नींव है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्वास्थ्य, भुखमरी खत्म करने, गरीबी उन्मूलन और किफायती ऊर्जा की आधारशिला है. यह सतत विकास के लिए 2030 के संपूर्ण एजेंडे की सफलता को रेखांकित करता है.’’ पीएम मोदी ने सितंबर 2019 में नई दिल्ली में यूएनसीसीडी सीओपी के उच्च स्तरीय 14वें सत्र का शुभारंभ किया था.
इस कॉफ्रेंस ने दिल्ली घोषणा को मंजूर किया था, जिसमें विभिन्न पक्षों को मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे से निपटने के उद्देश्य वाली परियोजनाओं के संदर्भ में ग्रामीण और शहरी समुदायों की ऊर्जा तक पहुंच बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया.
जलवायु संबंधी कारकों या मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूमि और मृदा की उत्पादक क्षमता में कमी आना भूमि क्षरण कहलाता है. मरुस्थलीकरण ज़मीन का सूखना तथा बंजर होना है, जो शुष्क और अर्द्ध-नम क्षेत्रों में विभिन्न कारकों की वजह से होता है जिनमें विविध जलवायु और मानवीय गतिविधियां भी शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा, ‘‘वैश्विक रूप से पृथ्वी के भूमि क्षेत्र का दो अरब हेक्टेयर से ज्यादा के क्षेत्र का क्षरण हो गया है, जिसमें कृषि भूमि का आधे से ज्यादा हिस्सा शामिल है. अगर हमने मृदा का प्रबंधन नहीं किया तो 2050 तक 90 प्रतिशत से अधिक भूमि का अवक्रमण हो सकता है.’’