प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी युवा काल में क्या सोचते थे? वास्तव में उनकी क्या शख्सियत थी? 'देवी मां' से कैसे वह अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे? ऐसे तमाम सवाल यदि आपके मन में हैं. तो थोड़ा इंतजार और करिए. क्योंकि जून के अंत तक इन सभी सवालों से पर्दा उठने वाला है. दरअसल, 80 के दशक में प्रधानमंत्री मोदी रोजाना देवी मां को गुजराती भाषा मे पत्र लिखते थे. उन्ही पत्रों के आधार पर एक किताब 'लेटर्स टू मदर' का सृजन किया गया है. जिसे हॉर्पर कोलिन्स पब्लिकेशन ने छापा है.


इस किताब को जानी मानी आरजे भावना सोमाया ने उन पत्रों का गुजराती से अंग्रेजी में ट्रांसलेशन. साथ ही ई कामर्स कंपनी एमेजॉन पर इसकी बुकिंग भी शुरू हो गई है. जिसकी कीमत 269 रुपये रखी गई है. एमेजॉन के मुताबिक 20 जून 2020 के आसपास किताब की डिलीवरी शुरू हो जाएगी. प्रधानमंत्री मोदी की ये 17वीं किताब है.


एबीपी न्यूज को मिली जानकारी के मुताबिक जब नरेंद्र मोदी युवा थे. तब वह रोज रात को देवी माँ को एक पत्र लिखते थे. दरअसल वो अपनी भावनाओं और सोच को उन पत्रों में शब्द के रूप में व्यक्त करते थे. कहते हैं कि माँ देवी को एक पत्र लिखने की आदत पड़ गई थी. जिसे वे हर रात सोने से पहले जगत जननी के रूप में संबोधित करते थे. कहा जाता है कि उनके लेखन में एक नौजवान का उत्साह था और बदलाव की शुरूआत करने का जुनून. लेकिन हर कुछ महीनों में, मोदी पन्नों को फाड़ देते हैं और उन्हें आग के हवाले कर देते हैं.


गुजराती से अंग्रेजी में अनुवाद


हालांकि 1986 में उन्हें एक पुरानी डायरी मिली. जिसके कुछ पन्ने बच गए थे. उसी डायरी के बचे हुए पन्नों पर ये किताब आधारित है. ये किताब अंग्रेजी भाषा मे लिखी गई है. जिसका गुजराती से अंग्रेजी में अनुवाद भावना सोमाया ने किया है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मोदी ने इन पत्रों को देवी मां के साथ वार्तालाप के रूप में वर्णित किया गया है. 'भय की मेरी भावना ... चिंता की ... संकट की ... साधारण मनुष्य की साधारण भावनाओं की.'


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