नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के 75वें दिन समाचार एजेंसी आईएएनएस को इंटरव्यू दिया है. इस इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने 75 दिनों के कार्यकाल के दौरान 'अपने सबसे बड़े फैसले' जम्मू कश्मीर से 370 हटाए जाने के मुद्दे पर भी खुलकर अपनी बात रखी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले का विरोध करने वालों का दिल आतंकियों के लिए धड़कता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटना राष्ट्र की बात है राजनीति की नहीं. लोकसभा में हुए रिकॉर्ड कामकाज के बारे में बताते हुए पीएम ने कहा कि इस दौरान कई काम हुए, कश्मीर से बड़ा कोई निर्णय नहीं हो सकता.
लोग देख रहे हैं कि पहले जो असंभव लगता था आज हकीकत है- पीएम
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "कश्मीर पर लिए गए निर्णय का जिन लोगों ने विरोध किया, उनकी जरा सूची देखिए -असामान्य निहित स्वार्थी समूह, राजनीति परिवार, जो कि आतंक के साथ सहानुभूति रखते हैं और कुछ विपक्ष के मित्र. लेकिन भारत के लोगों ने अपनी राजनीतिक संबद्धताओं से इतर जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के बारे में उठाए गए कदमों का समर्थन किया है. यह राष्ट्र के बारे में है, राजनीति के बारें में नहीं. भारत के लोग देख रहे हैं कि जो निर्णय कठिन ने मगर जरूरी थे, और पहले असंभव लगते थे, वे आज हकीकत बन रहे हैं."
अनुच्छेद 370 ने जम्मू कश्मीर को अलग-थलग रखा- पीएम
प्रधानमंत्री का स्पष्ट विचार है कि घाटी में जीवन सामान्य हो जाएगा. उन्होंने कहा कि इस प्रावधान ने वास्तव में भारत का नुकसान किया है, और इससे मुट्ठीभर परिवारों और कुछ अलगाववादियों को लाभ हुआ है. मोदी ने कहा, "इस बात से अब हर कोई स्पष्ट है कि अनुच्छेद 370 और 35ए ने किस तरह जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख को पूरी तरह अलग-थलग कर रखा था. सात दशकों की इस स्थिति से लोगों की आकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाईं. नागरिकों को विकास से दूर रखा गया. हमारा दृष्टिकोण अलग है - गरीबी के दुष्चक्र से निकाल कर लोगों को अधिक आर्थिक अवसरों से जोड़ने की आवश्यकता है. वर्षो तक ऐसा नहीं हुआ. अब हम विकास को एक मौका दें."
अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर को समान अवसर नहीं मिले- पीएम
प्रधानमंत्री ने अपने कश्मीरी भाइयों से एक उत्कट विनती की, "जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के मेरे भाई-बहन हमेशा एक बेहतर अवसर चाहते थे, लेकिन अनुच्छेद 370 ने ऐसा नहीं होने दिया. महिलाओं और बच्चों, एसटी और एससी समुदायों के साथ अन्याय हुआ. सबसे बड़ी बात कि जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के लोगों के इनोवेटिव विचारों का उपयोग नहीं हो पाया. आज बीपीओ से लेकर स्टार्टअप तक, खाद्य प्रसंस्करण से लेकर पर्यटन तक, कई उद्योगों मे निवेश आ सकता है और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार पैदा हो सकता है. शिक्षा और कौशल विकास भी फलेगा-फूलेगा." उन्होंने कहा, "मैं जम्मू एवं कश्मीर के अपने बहनों और भाइयों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि ये क्षेत्र स्थानीय लोगों की इच्छाओं, सपनों और महात्वाकांक्षाओं के अनुरूप विकसित किए जाएंगे. अनुच्छेद 370 और 35ए जंजीरों की तरह थे, जिनमें लोग जकड़े हुए थे. ये जंजीरे अब टूट गई हैं."
अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करने वालों दिन आतंकियों के लिए दड़कता है- पीएम
जो लोग जम्मू एवं कश्मीर पर लिए गए निर्णय का विरोध कर रहे हैं, उनके बारे में प्रधानमंत्री का मानना है कि वे बस एक बुनियादी सवाल का उत्तर दे दें, "अनुच्छेद 370 और 35ए को वे क्यों बनाए रखना चाहते हैं? उन्होंने कहा, "उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है. और ये वही लोग हैं, जो उस हर चीज का विरोध करते हैं जो आम आदमी की मदद करने वाली होती हैं. रेल पटरी बनती है, वे उसका विरोध करेंगे. उनका दिल केवल नक्सलियों और आतंकवादियों के लिए धड़कता है. आज हर भारतीय जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के लोगों के साथ खड़ा है और मुझे भरोसा है कि वे विकास को बढ़ावा देने और शांति लाने में हमारे साथ खड़ा रहेंगे."
क्या कश्मीर के लोगों की आवाज सुनी जाएगी? इस पर पीएम मोदी ने कहा, "कश्मीर ने कभी भी लोकतंत्र के पक्ष में इतनी मजबूत प्रतिबद्धता नहीं देखी. पंचायत चुनाव के दौरान लोगों की भागीदारी को याद कीजिए. लोगों ने बड़ी संख्या में मत डाले और धमकाने के आगे झुके नहीं. नवंबर-दिसंबर 2018 में पैंतीस हजार सरपंच चुने गए और पंचायत चुनाव में रिकार्ड 74 फीसदी मतदान हुआ. पंचायत चुनाव के दौरान कोई हिंसा नहीं हुई. चुनावी हिंसा में रक्त की एक बूंद भी नहीं गिरी. यह तब हुआ जब मुख्यधारा के दलों ने इस पूरी प्रक्रिया के प्रति उदासीनता दिखाई थी. यह बहुत संतोष देने वाला है कि अब पंचायतें विकास और मानव सशक्तिकरण के लिए फिर से सबसे आगे आ गईं हैं. कल्पना कीजिए, इतने सालों तक सत्ता में रहने वालों ने पंचायतों को मजबूत करने को विवेकपूर्ण नहीं पाया. और यह भी याद रखिए कि लोकतंत्र पर वे महान उपदेश देते हैं लेकिन उनके शब्द कभी काम में नहीं बदलते."
मुझे हैरानी औैर दुख हुआ कि 3वां संशोधन जम्मू एवं कश्मीर में लागू नहीं होता था- पीएम
उन्होंने कहा, "इसने मुझे चकित और दुखी किया कि 73वां संशोधन जम्मू एवं कश्मीर में लागू नहीं होता. ऐसे अन्याय को कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है? यह बीते कुछ सालों में हुआ है जब जम्मू एवं कश्मीर में पंचायतों को लोगों को प्रगति की दिशा में काम करने के लिए शक्तियां मिलीं. 73वें संशोधन के तहत पंचायतों को दिए गए कई विषयों को जम्मू एवं कश्मीर की पंचायतों को स्थानांतरित किया गया. अब मैंने माननीय राज्यपाल से ब्लॉक पंचायत चुनाव की दिशा में काम करने का अनुरोध किया है. हाल में जम्मू एवं कश्मीर प्रशासन ने 'बैक टू विलेज' कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें लोगों को नहीं बल्कि समूची सरकारी मशीनरी को लोगों तक पहुंचना पड़ा. वे केवल लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए उन तक पहुंचे. आम नागरिकों ने इस कार्यक्रम को सराहा. इन प्रयासों का नतीजा सभी लोगों के सामने है. स्वच्छ भारत, ग्रामीण विद्युतीकरण और ऐसी ही अन्य पहलें जमीनी स्तर तक पहुंच रही हैं. वास्तविक लोकतंत्र यही है."
उन्होंने कहा, "मैंने लोगों को आश्वस्त किया है कि जम्मू, कश्मीर में चुनाव जारी रहेंगे और केवल इन क्षेत्रों के लोग हैं जो वृहत्तर जनसमुदाय का प्रतिनिधित्व करेंगे. हां, जिन्होंने कश्मीर पर शासन किया, वे सोचते हैं कि यह उनका दैवीय अधिकार है, वे लोकतंत्रीकरण को नापसंद करेंगे और गलत बातें बनाएंगे. वे नहीं चाहते कि एक अपनी मेहनत से सफल युवा नेतृत्व उभरे. यह वही लोग हैं जिनका 1987 के चुनावों में आचरण संदिग्ध रहा है. अनुच्छेद 370 ने पारदर्शिता और जवाबदेही से परे जाकर स्थानीय राजनैतिक वर्ग को लाभ पहुंचाया. इसको हटाया जाना लोकतंत्र को और मजबूत करेगा."
कश्मीर से बड़ा कोई निर्णय नहीं हो सकता- पीएम मोदी
लोकसभा में हुए रिकॉर्ड कामकाज के बारे में बताते हुए पीएम ने कहा, ''17वीं लोकसभा का प्रथम सत्र ने रिकॉर्ड बनाया है. यह 1952 से लेकर अबतक का सबसे फलदायी सत्र रहा है. "मेरी नजर में यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, बल्कि बेहतरी का एक ऐतिहासिक मोड़ है, जिसने संसद को जनता की जरूरतों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया है. कई ऐतिहासिक पहले शुरू की गई, जिसमें किसानों और व्यापारियों के लिए पेंशन योजना, मेडिकल सेक्टर का रिफॉर्म, दिवाला एवं दिवालियापन संहिता में महत्वपूर्ण संशोधन, श्रम सुधार की शुरुआत..मैं लगातार आगे बढ़ता रहा. कोई समय की बर्बादी नहीं, कोई लंबा सोच-विचार नहीं, बल्कि कार्यान्वयन और साहसी निर्णय लेना, कश्मीर से बड़ा कोई निर्णय नहीं हो सकता."
सवाल- आखिर दूसरा कार्यकाल किस तरह से अलग है?
प्रधानमंत्री ने सीधा-सा जवाब दिया, "हमने अपनी सरकार बनने के चंद दिनों के भीतर ही एक अभूतपूर्व रफ्तार तय कर दी. हमने जो हासिल किया है, वह स्पष्ट नीति, सही दिशा का परिणाम है. हमारी सरकार के प्रथम 75 दिनों में ही ढेर सारी चीजें हुई हैं. बच्चों की सुरक्षा से लेकर चंद्रयान-2, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से लेकर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसी बुराई से मुक्ति दिलाना, कश्मीर से लेकर किसान तक हमने वह सबकुछ कर के दिखाया है, जो एक स्पष्ट बहुमत वाली दृढ़संकल्पित सरकार हासिल कर सकती है. हमने जल आपूर्ति सुधारने और जल संरक्षण को बढ़ावा देने के एकीकृत दृष्टिकोण और एक मिशन मोड के लिए जलशक्ति मंत्रालय के गठन के साथ हमारे समय के सर्वाधिक जरूरी मुद्दे को सुलझाने के साथ शुरुआत की."
सवाल- क्या इस तेज रफ्तार की वजह पहले कार्यकाल से अधिक बहुमत के साथ सत्ता में लौटना तो नहीं है? क्या वह इस बात को लेकर सजग हैं कि जिन लोगों ने उन्हें इतना बड़ा बहुमत दिया है, उन्हें एक संदेश देना आवश्यक है कि अगले पांच साल में क्या होने वाला है?
प्रधानमंत्री ने इस बात को स्वीकार किया और कहा, "एक तरह से, सरकार की जिस तरह जोरदार तरीके से सत्ता में वापसी हुई है, उसका भी यह परिणाम है. हमने इन 75 दिनों में जो हासिल किया है, वह उस मजबूत बुनियाद का परिणाम भी है, जिसे हमने पिछले पांच साल के कार्याकाल में बनाए थे. पिछले पांच सालों में किए गए सैकड़ों सुधारों की वजह से देश आज इस गति से आगे बढ़ने के लिए तैयार है, इसमें जनता की आकांक्षाएं जुड़ी हुई हैं. यह सिर्फ सरकार के कारण नहीं, बल्कि संसद में मजबूती की वजह से भी हुआ है."
प्रधानमंत्री ने कहा कि 17वीं लोकसभा का प्रथम सत्र ने रिकॉर्ड बनाया है. यह 1952 से लेकर अबतक का सबसे फलदायी सत्र रहा है. "मेरी नजर में यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, बल्कि बेहतरी का एक ऐतिहासिक मोड़ है, जिसने संसद को जनता की जरूरतों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया है. कई ऐतिहासिक पहले शुरू की गई, जिसमें किसानों और व्यापारियों के लिए पेंशन योजना, मेडिकल सेक्टर का रिफॉर्म, दिवाला एवं दिवालियापन संहिता में महत्वपूर्ण संशोधन, श्रम सुधार की शुरुआत..मैं लगातार आगे बढ़ता रहा. कोई समय की बर्बादी नहीं, कोई लंबा सोच-विचार नहीं, बल्कि कार्यान्वयन और साहसी निर्णय लेना, कश्मीर से बड़ा कोई निर्णय नहीं हो सकता."
सवाल- क्या आपको लगता है कि आपने जो यह बदलाव किए हैं, वे अच्छे से सोच विचार कर किए गए हैं?
इस सवाल पर प्रधानमंत्री ने कहा, "हमने जब 2014 में सरकार बनाई थी, तब मेडिकल शिक्षा की मौजूदा व्यवस्था को लेकर कई तरह की चिंताएं सामने आई थीं. इससे पहले, अदालतों ने भारत में मेडिकल शिक्षा को संभाल रही संस्थाओं के खिलाफ कड़े शब्दों में आपत्ति दर्ज कराई थी, इन्हें भ्रष्टाचार के गढ़ कहा था. एक संसदीय समिति ने गहन अध्ययन के बाद मेडिकल शिक्षा को लेकर निराशाजनक तस्वीर पेश की थी. उसने कुप्रबंधन, पारदर्शिता की कमी, मनमानेपन का उल्लेख किया था. पहले की सरकारों ने इस क्षेत्र को सुधारने के बारे में सोचा था, लेकिन इस दिशा में वे आगे नहीं बढ़ सकी थीं. हमने इस दिशा में आग बढ़ने का फैसला किया, क्योंकि यह मामला ऐसा नहीं है, जिसे हल्के में लिया जाए. यह हमारे लोगों की सेहत और हमारे युवाओं के भविष्य से जुड़ा हुआ है. इसलिए, हमने विशेषज्ञों का एक समूह यह देखने के लिए बनाया कि समस्या कहां है. विशेषज्ञ समूह ने प्रणाली का बारीकी से अध्ययन किया और समस्याओं तथा सुधार के क्षेत्रों को चिन्हित किया. यह विशेषज्ञों के सुझाव हैं, जिसे हम मौजूदा विधेयक में लेकर आए हैं."
अपने दृष्टिकोण को पूरी तरह स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "मौजूदा समस्याओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनएमसी) इस क्षेत्र में एक दूरगामी सुधार है. इसमें सुधार के कई आयाम हैं, जो भ्रष्टाचार के मौकों को खत्म करते हैं और पारदर्शिता को बढ़ाते हैं. एक ऐसे समय में जब दुनिया के देश विश्व में विकास को गति देने के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं, हमने महसूस किया कि ऐसा केवल एक स्वस्थ आबादी के साथ ही हो सकता है. गरीब लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से मुक्त करना बेहद जरूरी है, जिसे सेहत संबंधी समस्याएं स्थायी बना देती हैं. एनएमसी इस उद्देश्य को भी पूरा करता है. यह देश में मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और गुणवत्ता को सुनिश्चित करेगा. इसका लक्ष्य विद्यार्थियों पर से बोझ घटाना, मेडिकल सीट बढ़ाना, मेडिकल शिक्षा की लागत को घटाना है. इसका मतलब यह है कि और अधिक प्रतिभावान युवा मेडिसिन को एक पेशे के रूप में अपना सकेंगे और इससे मेडिकल पेशेवरों की संख्या को बढ़ाने में मदद मिलेगी.''
उन्होंने कहा, ''आयुषमान भारत चिकित्सा देखभाल के क्षेत्र में क्रांति लाने के बारे में है. यह जागरूकता बढ़ा रहा है, साथ ही गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा को पहुंच के दायरे में ला रहा है, खासकर द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों में. हम इसे सुनिश्चित करने पर भी काम कर रहे हैं कि हर तीन जिले के दायरे में एक मेडिकल कॉलेज हो. चिकित्सा सेवा के प्रति बढ़ती जागरूकता, बढ़ती आय और लोगों के बीच बेहतर जीवन के लक्ष्य पर फोकस के बीच हमें इस मांग को पूरा करने के लिए हजारों चिकित्सकों की जरूरत पड़ेगी, खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में. एनएमसी सभी हितधारकों के लिए बेहतर नतीजों के लिए इन सभी मुद्दों पर गौर करेगा. आपने निश्चित ही पढ़ा होगा कि दो दर्जन नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के साथ 2019-20 का एकेडमिक साल सरकारी कॉलेजों में एक साल में सर्वाधिक अतिरिक्त मेडिकल सीटों का इजाफा देखेगा. हमारा रोड मैप साफ है- एक पारदर्शी, सुगम और वहन करने योग्य मेडिकल शिक्षा व्यवस्था जो बेहतर चिकित्सा सेवा के नतीजों तक ले जाए."