Project Cheetah: पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भारत के आखिरी चीते के शिकारी का जिक्र किया था? जानिए कौन था वो
PM Modi On Project Cheetah: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन पर प्रोजेक्ट चीता को लेकर बेहद उत्साहित हैं. उन्होंने कहा कि ये चीते मेहमान बन कर आए हैं. ये देश में पर्यटन को बढ़ावा देंगे.
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PM Modi On Project Cheetah: नामीबिया से भारत आए चीतों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अपने जन्मदिन (PM Modi Birthday) के मौके पर कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा. इसके बाद पीएम ने कहा कि दशकों पहले जैव विविधता की जो कड़ी टूट गई थी उसे आज जोड़ने का हमें मौका मिला है. चीते भारत की धरती पर वापस आ गए हैं. पीएम ने कहा कि बीती सदी में वो वक्त भी देखा है जब प्रकृति के दोहन को शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक मान लिया गया था. 1947 में जब देश में केवल आखिरी तीन चीते बचे थे, तो उनका भी शिकार कर लिया गया. ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों के विलुप्त होने का एलान तो कर डाला, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए कोई सार्थक कोशिश नहीं की.
पीएम ने आखिरी तीन चीतों के शिकार का जिक्र किया है. आपके जेहन में भी ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिरी शिकारी कौन था. तो आज हम आपको भारत की धरती से आखिरी चीते को मिटा डालने वाले इस शिकारी के बारे में बताते हैं.
आखिर क्यों दिखे 75 साल बाद भारत में चीते
आज शनिवार 17 सितंबर को पीएम मोदी के बर्थडे पर भारत में 75 साल बाद चीतों के दीदार हुए हैं. ये 8 चीते अफ्रीका के नामीबिया से लाकर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए हैं. आखिर क्या हुआ था कि भारत की जमीं से चीते विलुप्त हो गए? इसकी भी एक कहानी है. दरअसल देश के आखिरी बचे तीन चीतों (Cheetah) का आज से 75 साल पहले शिकार कर लिया गया था. चीतों का ये शिकार छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था.
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ संदीप पौराणिक के मुताबिक भारत में आखिरी चीते के शिकार के बाद देश के जंगलों से एशियाई चीते लुप्त हो गए थे. इसकी जानकारी सरकार ने आधिकारिक तौर पर दी थी. वह कहते हैं कि उस वक्त राजा-महाराजाओं के शिकार का शौक भी जंगली जानवरों के मारे जाने की वजह बना.
क्यों हुआ था शिकार चीतों का
ये सच है कि पुराने वक्त में राजा-महाराजाओं का प्रिय शगल जंगली जानवरों का शिकार हुआ करता था. राजे-रजवाड़े शिकार को अपने मनोरंजन का साधन माना करते थे. राजाओं में जंगली जानवरों का शिकार करना आम माना जाता था. लेकिन कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव के इन चीतों के शिकार करने की वजह कुछ और थी. हालांकि वह भी शिकार के शौकीन रहे थे, लेकिन राजा रामानुज ने इन चीतों का शिकार शौक के लिए नहीं किया था. ये भी सच है कि उस वक्त दुनिया में लुप्त प्राय जानवरों को लेकर भी कोई खासी जागरूकता नहीं थी.
तब वह दौर था जब छत्तीसगढ़ का अच्छा खासा इलाका घनघोर जंगलों से घिरा हुआ था. इसकी उत्तरी सरहद पर कोरिया रियासत थी. ये मौजूदा वक्त में जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर है. यहां के लोगों की मानें तो राजा रामानुज के दौर में एक चीता आदमखोर हो गया था. इसकी वजह से यहां आसपास के लोगों में खौफ का माहौल था. ये बात जब राजा रामानुज प्रताप सिंह देव तक भी पहुंची तो उन्होंने उसके शिकार का फैसला लिया. इसके कुछ दिन बाद राजा ने बैकुण्ठपुर से कुछ ही दूर सलका के जंगलों में इस चीते को मार गिराया.
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में है तस्वीर
चीते को मारने के बाद राजसी ठसक का प्रदर्शन करने के लिए राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने चीतों के शव के साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई थी. ये तस्वीर आज भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में महफूज है. देश से विलुप्त हो चुके चीतों के बारे में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के दस्तावेज तस्दीक करते हैं कि छत्तीसगढ़ के कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने ही भारत के तीन आखिरी चीतों को 1947 में मारा था. यहां ये जानकारी राजा के निजी सचिव ने भेजी थी.
हालांकि मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में कई सरकारों में मंत्री रहे चुके राजा रामानुज के बेटे रामचंद्र सिंह देव ये नहीं मानते हैं कि कोरिया में साल 1947 में मारे गए तीन चीते भारत के आखिरी चीते थे. उन्होंने दावा किया था कि जिस इलाके में आखिरी चीतों के मारे जाने की बात कही जाती हैं. उसी इलाके में उन्होंने दो साल पहले खुद चीता देखा था.
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