PM Narendra Modi: 'ब्रह्मांड की कोई ताकत अब जम्मू कश्मीर में 370 की वापसी नहीं करा सकती', ये शब्द हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के. प्रिंट मीडिया को दिए अपने लेटेस्ट इंटरव्यू में पीएम मोदी ने साफ कर दिया अब कश्मीर की पहचान से 370 का कोई वास्ता नहीं है. कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी के मिशन कश्मीर पर मुहर लगाई. नरेंद्र मोदी ने एक युवा प्रचारक के तौर पर जो सपना देखा, आज वो हकीकत बन चुका है.
हालांकि, ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर ये कैसे मुमकिन हुआ और राष्ट्र के संकल्प को पीएम मोदी ने खुद के जीवन का मकसद क्यों बनाया. आज हम आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस असाधारण यात्रा और अटल संकल्प के उस साक्षी से मिलवाएंगे, जो नरेंद्र मोदी के कश्मीर वाले दोस्त हैं. वो कश्मीरी मुसलमान जो सबसे पहले नरेंद्र मोदी के मिशन कश्मीर से जुड़ा और आगे चलकर अनुच्छेद 370 को कश्मीर से हटाने में भूमिका निभाई.
लाल चौक पर तिरंगा फहराने का मकसद
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की शुरुआत काफी पहले से ही चल रही थी. कन्याकुमारी से शुरू हुई भारतीय जनता पार्टी की एकता यात्रा अपने आखिरी पड़ाव पर थी. वह 24 जनवरी 1992 को जम्मू-कश्मीर पहुंच चुकी थी. इस यात्रा का मकसद 26 जनवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना था. ये वो दौर था, जब कश्मीर आतंक और अलगाववाद की भट्टी में सुलग रहा था.
आलम ये था कि घरों में तो छोड़िए बाजार में भी तिरंगा नहीं मिलता था.आतंकी संगठनों और पाकिस्तान को भी बीजेपी की एकता यात्रा की पूरी खबर थी. कश्मीर की गली नुक्कड़ पर आतंकियों ने धमकी भरे पोस्टर लगा दिए. इन पोस्टर्स में लिखा गया था कि जिसने अपनी मां का दूध पीया है. वो लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर दिखाए. इस पोस्टर पर उस शख्स की भी नजर पड़ी, जो एकता यात्रा को कॉर्डिनेट कर रहे थे.
पीएम मोदी के भाषण से प्रभावित हुए उनके दोस्त
26 जनवरी से 2 दिन पहले आतंक के साए में एक दहाड़ गूंजी. ये दहाड़ 42 साल के उसी कॉर्डिनेटर की थी, जिसका नाम नरेंद्र मोदी था. पीएम मोदी ने कश्मीर में भाषण दिया और इस भाषण को मोहम्मद अशरफ आजाद नाम का एक कश्मीरी बड़े अचंभे से सुन रहा था. टेरर जोन में इतनी निडर आवाज सुनकर इतना बेखौफ अंदाज देखकर मोहम्मद अशरफ को अहसास हो गया कि अगर कश्मीर से कोई अनुच्छेद 370 हटा सकता है, तो वो हैं नरेंद्र मोदी.
मोहम्मद अशरफ के फीडबैक पर हटा अनुच्छेद 370
मोहम्मद अशरफ बीजेपी नेता और पीएम मोदी के दोस्त हैं. ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि अनुच्छेद 370 का गेम ओवर करने में मोहम्मद अशरफ का बहुत बड़ा रोल है. माना जाता है कि इन्हीं के फीडबैक पर पीएम मोदी ने 370 को इतिहास बना देने वाला ऐतिहासिक फैसला लिया. कश्मीर के एक मुसलमान ने कैसे मोदी के मन में जगह बनाई, किस तरह मोहम्मद अशरफ मोदी के पक्के दोस्त बन गए और कैसे मोहम्मद अशरफ की वजह से मोदी ने वो ऐतिहासिक फैसला किया. ये सब आपको बताएंगे. लेकिन इसके पहले ये जानना जरूरी है कि 26 जनवरी 1992 को लाल चौक पर क्या हुआ?
लाल चौक पर कैसा था लम्हा?
26 जनवरी 1992 को वही हुआ, जो नरेंद्र मोदी ने कहा था. 15 मिनट तक पार्टी के महासचिव मुरली मनोहर जोशी के साथ नरेंद्र मोदी लाल चौक पर थे. आतंकी रॉकेट फायर कर रहे थे, गोलियों की तड़तड़ाहट और बम के धमाकों के बीच लाल चौक पर तिरंगा फहराया गया. निहत्थी भीड़ का भी आक्रोश चरम पर था. कुछ लोग नारे लगा रहे थे कि कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है. ये सुनकर जोशी और मोदी ने जवाब दिया कि पाकिस्तान के बिना हिंदुस्तान अधूरा है.
26 जनवरी 1992 का वो ऐतिहासिक लम्हा आज भी मोहम्मद अशरफ की आंखों में कैद है. सब कुछ अशरफ को याद है, अशरफ को उसी वक्त लग गया था कि पीएम मोदी जो बोल रहे थे. वो राजनीतिक भाषण नहीं था. एक स्वंयसेवक का सपना था. एक राष्ट्रभक्त का संकल्प था और एक हिंदुस्तानी की अमोघ हुंकार थी. पीएम मोदी का ऐसा जादू अशरफ पर चला कि उन्होंने फौरन बीजेपी की सदस्यता ले ली. वो भी उस दौर में भारत का नाम लेने पर ही सर में गोली मार दी जाती थी.
7 अक्टूबर 2001 से भारत की राजनीति में नरेंद्र मोदी के नाम का अध्याय जुड़ा. उस रोज मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. अनुच्छेद 370 को हटाने का मोहम्मद अशरफ से किया वादा, मोदी को याद था, लेकिन वो जानते थे कि चुनौती बहुत बड़ी है और मंजिल बहुत दूर. हालांकि, अंतत: अनुच्छेद 370 इतिहास बन ही गया.
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