नई दिल्ली: कर्ज़माफ़ी के जवाब में मोदी सरकार किसानों के लिए कुछ बड़े क़दमों का ऐलान कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक़ वित्त मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और नीति आयोग किसानों को राहत देने के लिए तीन चार विकल्पों पर विचार कर रही है. इनमें सबसे प्रमुख है- मध्य प्रदेश की भावांतर योजना की तर्ज़ पर किसानों को फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य और उसकी बिक्री मूल्य के अंतर को सीधे किसानों के खाते में भेजना. एबीपी न्यूज़ को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ सरकार इसी विकल्प पर सबसे ज़्यादा गम्भीर दिख रही है.


ख़रीफ़ सीजन से लागू होगी योजना

इस योजना की सबसे बड़ी ख़ासियत ये होगी कि इसे पिछले ख़रीफ़ सीजन से ही लागू किए जाने पर विचार किया जा रहा है यानि इसका लाभ उन किसानों को भी मिलेगा जिन्होंने अपनी ख़रीफ़ की फ़सल अक्टूबर और नवंबर में बाज़ार में बेची है. ख़रीफ़ फ़सलों में धान सबसे प्रमुख फ़सल होता है.

क्या है ये योजना ?

योजना के मुताबिक़ न्यूनतम समर्थन मूल्य और बिक्री मूल्य में जो अंतर आएगा उतना पैसा सीधे किसानों के ख़ाते में भेज दिया जाएगा, लेकिन चूंकि ये योजना पिछले फ़सल सीजन (ख़रीफ़ सीजन) से ही लागू किए जाने की संभावना है इसलिए शुरुआत में इस सीज़न के लिए एक निश्चित औसत पैसा सभी किसानों को दिए जाने की योजना है. मसलन किसानों को प्रति एकड़ एक तय रक़म दी जा सकती है ताकि सभी किसानों को कुछ न कुछ रकम हासिल ज़रूर हो पाए. शुरुआती आकलन के मुताबिक़ सरकार किसानों को प्रति एकड़ 1500 से 2000 रुपया देने पर विचार कर रही है. इस योजना में इस वित्तीय वर्ष में लगभग 50000 करोड़ रुपए ख़र्च होने का अनुमान है. योजना के क्रियान्वयन में मार्च-अप्रैल के रबी बिक्री सीज़न और उसके बाद कुछ बदलाव किया जा सकता है .

दूसरा विकल्प - तेलंगाना और झारखंड का अनुसरण

सूत्रों के मुताबिक सरकार के सामने जो दूसरा विकल्प है वो तेलंगाना और झारखंड की तर्ज़ पर किसानों को फ़सलों की बुवाई से पहले सहायता के तौर पर एक तय रक़म देने का है. देशभर में ऐसी योजना को सबसे पहले तेलंगाना में इसी साल अप्रैल से लागू किया गया था. ' रायतु बन्धु स्कीम ' नाम से चलाई जा रही इस योजना के तहत राज्य सरकार किसानों को ख़रीफ़ और रबी सीजन में फ़सलों की बुवाई से पहले सहायता के तौर पर हर किसान को प्रति एकड़ 4000 रुपए देती है ताकि किसानों को बुवाई के लिए बीज और फ़र्टिलाइज़र खरीदने के लिए क़र्ज़ नहीं लेना पड़े. तेलंगाना में इस योजना से किसानों को काफी फायदा हुआ है जिसके बाद झारखंड और ओडिसा में भी इसे लागू किया गया है. पूरे देश में लागू करने पर इस योजना में करीब 1 लाख करोड़ रुपए का ख़र्च आएगा. इस विकल्प को लेकर उतनी उत्साहित नहीं दिखती.

तीसरा विकल्प - क़र्ज़ माफी

सरकार के भीतर इस विकल्प को भी विचार के लिए लाया गया है लेकिन सूत्रों के मुताबिक सरकार खासकर पीएम मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली फिलहाल इसके पक्ष में नहीं है. प्रस्ताव ये है कि देश भर के किसानों का 1 लाख रुपए तक का कर्ज माफ़ कर दिया जाए. अगर ऐसा किया जाए तो सरकारी खजाने पर क़रीब 3.25 लाख करोड़ का बोझ पड़ेगा. वैसे पैसों के अलावा मोदी सरकार दो और कारणों से इसे लागू नहीं करना चाहती. पहला, इसका फ़ायदा वास्तव में ज़रूरतमंद किसानों तक नहीं पहुंच पाता है. 2008 में घोषित कर्ज़माफी इसका उदाहरण है. दूसरे, सरकार को लगता है कि अगर कर्ज़माफी घोषित भी की गई तो लोकसभा चुनाव में इसका सियासी फ़ायदा नहीं मिलेगा क्योंकि इसका श्रेय कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी को ही मिल जाएगा.

किसानों को मिलेगा नए साल का तोहफा ?

एबीपी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक अगले कुछ दिनों में मोदी सरकार इन विकल्पों में से किसी एक पर फ़ैसला ले सकती है. इन विकल्पों के अलावा किसान क्रेडिट कार्ड में बदलाव और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधारों पर भी विचार किया जा रहा है. माना जा रहा है कि तीन राज्यों के चुनाव में किसानों की नाराजगी झेल चुकी मोदी सरकार नए साल की शुरुआत से पहले ही किसानों के लिए इन सौगातों का ऐलान कर सकती है ताकि समय रहते इन कदमों का फायदा किसानों तक पहुंच सके.

यह भी पढ़ें-

राजस्थान: मंत्रिमंडल पर मची खींचतान खत्म, जाने किसे मिला कौन सा मंत्रालय?