PM Narendra Modi Or Tipu Sultan: कर्नाटक का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए कई मायनों में अहम है. मसलन, इसी चुनाव के जरिए बीजेपी तेलंगाना में अपनी जमीन मजबूत कर सकती है. इसके अलावा, अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है. ऐसे में बीजेपी राज्य के इस चुनाव को हर हाल में जीतना चाहती है. इससे पहले, बीजेपी में मुद्दों को लेकर बहस छिड़ गई है. ये बहस मैसूर के शासक टीपू सुल्तान और नरेंद्र मोदी को लेकर छिड़ी हुई है.


दरअसल, कर्नाटक में बीजेपी प्रमुख नलिन कुमार कतील ने हाल ही में एक बयान दिया जिसमें उन्होंने टीपू सुल्तान को लेकर कहा था कि टीपू सुल्तान के वंशजों को खदेड़ कर जंगलों में भेज देना चाहिए. उन्होंने एक सभा में कहा, ‘हम भगवान राम और हनुमान के भक्त हैं. हम टीपू सुल्तान के वंशज नहीं हैं. हमें टीपू सुल्तान के वंशजों को बाहर भेज देना चाहिए.’ उनके इस बयान पर विवाद तो हुआ ही साथ ही बीजेपी में दो फाड़ देखने को मिल रहे हैं. दरअसल, बीजेपी का एक धड़ा कतील के इस बयान से खुश नहीं है.


क्या चाहता है केंद्रीय नेतृत्व?


इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, पार्टी के एक धड़े का मानना है कि टीपू सुल्तान पर कतील का ये बयान केंद्रीय नेतृत्व के एजेंडे पर सही नहीं बैठता है. तो वहीं दूसरे धड़े का मानना है कि ये बिल्कुल सटीक फॉर्मूला है. पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘कर्नाटक एक बेहद ही संवेदनशील राज्य है. मुझे नहीं लगता कि एक ही मुद्दे का प्रभाव पूरे कर्नाटक पर पड़ सकता है. हां, राज्य के कुछ हिस्सों में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है लेकिन बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है और इसमें ये मुद्दा फिट नहीं बैठता है."


उन्होंने आगे कहा कि कर्नाटक में मोदी पर ध्यान केंद्रित करते हुए बीजेपी की तरफ वोटर्स को खींचा जा सकता है क्योंकि वो महसूस करते हैं कि पीएम मोदी देश को आगे ले जा रहे हैं.


तो वहीं, कर्नाटक के एक बीजेपी सांसद ने कहा कि कई निर्वाचन क्षेत्रों में समर्थन हासिल करने के लिए "कतील रणनीति" पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकती है. "निश्चित रूप से, यह हमारा मुख्य अभियान नहीं हो सकता लेकिन टीपू को कन्नडिगा नायकों के खिलाफ खड़ा करना एक चतुर फॉर्मूला है. इस महीने की शुरुआत में ही कतील ने ये दावा करके विवाद खड़ा कर दिया था कि राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव टीपू बनाम सावरकर होगा


टीपू सुल्तान का मुद्दा


कर्नाटक की राजनीति में टीपू सुल्तान का मुद्दा ध्रुवीकरण का तत्व बन गया है. साल 2018 के चुनाव बीजेपी के फायरब्रांड नेता और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने टीपू सुल्तान बनाम हनुमान बहस की शुरुआत की थी. चुनाव की दिशा तय करने वाली अपनी एक रैली में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कर्नाटक "हनुमान की भूमि" है, जिस पर तत्कालीन विजयनगर साम्राज्य का शासन था.


राज्य में एक वर्ग टीपू सुल्तान को एक कट्टर अत्याचारी के रूप में देखते हैं, जिन्होंने हजारों लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया. तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार ने लगातार दो सालों तक टीपू जयंती मनाई. सिद्धारमैया सरकार ने टीपू सुल्तान को शुरुआती स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर देखा. हालांकि, बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठन इसका पुरजोर विरोध करते आए हैं. आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से टीपू सुल्तान एक मुद्दा बन गया है.


कर्नाटक में चुनावी मुद्दा


कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों पर चुनाव होना है और इन्हें जीतने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत लगा रखी है. इस विधानसभा चुनाव में आरक्षण भी एक अहम मुद्दा होने वाला है. सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटे मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई जहां पंचमशाली आरक्षण और अब एससी-एसटी आरक्षण मे बढ़ोतरी का इरादा जता चुके हैं और इसे बार-बार दोहराया जा रहा है. वहीं यह खतरा भी है कि इन दोनों आरक्षणों की तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हुई तो कांग्रेस भी इसे ही मुद्दा बनाएगी.


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