नई दिल्ली: मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद दिल्ली के लिए रवाना हो गए. माले में हुई पीएम नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की मुलाकात हुई. इस दौरान पीएमो मोदी का जोरदार स्वागत हुआ.  पीएम मोदी मालदीव एयरपोर्ट से सीधे नेशनल स्टेडियम पहुंचे. वहां उन्होंने मालदीव और दुनिया के कई अन्य लीडर्स से भी मुलाकात की. शपथग्रहण समारह के बाद पीएम मोदी ने सोलिह बधाई दी और फिर दिल्ली के लिए रवाना हो गए.


इसके अलावा पीएम मोदी ने ट्वीट कर के भी सोलिह को बधाई दी. उन्होंने लिखा, 'मालदीव के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के लिए इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को बधाई. मैं उनके बेहतरीन कार्यकाल के लिए बधाई देता हूं. मैं दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के लिए सोलिह के साथ काम करने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं.'






यह पहला मौका होगा जब भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी किसी पड़ोसी मुल्क के शपथग्रहण समारोह में शरीक हुए हैं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और मालदीव के सबसे बड़े पड़ोसी भारत के प्रधानमंत्री इस द्वीप देश में चुनावी करवट के बाद शपथ ले रही सरकार को बधाई और समर्थन का सम्बल देने पहुंचें हैं.




शपथ ग्रहण समारोह के बाद नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के साथ पीएम की शिष्टाचार भेंट होगी. मोदी शाम करीब 7:30 बजे माले से दिल्ली के लिए वापस रवाना भी हो जाएंगे. यह प्रधानमंत्री मोदी की पहली मालदीव यात्रा है. इससे पहले 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्रीय मनमोहन सिंह ने हिंद महासागर के इस द्वीपीय देश की यात्रा की थी.


बता दें कि मालदीव ही एक मात्र ऐसा पड़ोसी मुल्क बचा था जहां पीएम मोदी की यात्रा अब तक नहीं हो सकी थी. निवर्तमान अब्दुल्ला यमीन सरकार के साथ रिश्तों में आई खटास के कारण 2015 में पीएम मोदी की मालदीव यात्रा का कार्यक्रम टालना पड़ा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई मुल्कों के प्रमुखों को खास मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया था. मगर यह पहला मौका है जब वो स्वयं भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर किसी पड़ोसी मुल्क में नई सरकार के शपथ समारोह में शामिल हो रहे हैं.



रोचक संयोग है कि 2014 में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बतौर मालदीव राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन अब्दुल गयूम आए थे. जबकि सितंबर 2018 को हुए चुनावों में चीन समर्थक छवि वाले यमीन की शिकस्त और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद समर्थक विपक्षी दलों की जीत को लोकतंत्र हिमायती ताकतों और भारत की कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है.