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पीएम मोदी कल करेंगे नए संसद भवन का शिलान्यास, जानें- वर्तमान संसद का इतिहास

वर्तमान संसद भवन का निर्माण छह वर्ष में पूरा हुआ और निर्माण पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी. सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली की पहली बैठक 19 जनवरी 1927 को संसद भवन में हुई.

नई दिल्ली: नए संसद भवन का शिलान्यास समारोह 10 दिसम्बर 2020 को आयोजित किया जाएगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिलान्यास और भूमि पूजन करेंगे. नए संसद भवन के निर्माण का प्रस्ताव भारत के उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति, एम वेंकैया नायडू एवं लोक सभा अध्यक्ष, ओम बिड़ला ने राज्यसभा और लोकसभा में 5 अगस्त 2019 को किया था.

चार मंजिला नए संसद भवन का निर्माण 971 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 64 हज़ार 500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में किए जाने का प्रस्ताव है. इसका निर्माण भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ तक पूरा कर लिया जाएगा. प्रत्येक संसद सदस्य को पुनःनिर्मित श्रम शक्ति भवन में कार्यालय के लिए 40 वर्ग मीटर स्थान उपलब्ध कराया जाएगा, जिसका निर्माण 2024 तक पूरा किया जाएगा.

नए संसद भवन का डिजाइन मैसर्स एचसीपी डिजाइन और मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड, अहमदाबाद द्वारा तैयार किया गया है और इसका निर्माण टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड द्वारा किया जाएगा. नए भवन को सभी आधुनिक दृश्य-श्रव्य संचार सुविधाओं और डाटा नेटवर्क प्रणालियों से सुसज्जित किया जाएगा. यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि निर्माण कार्य के दौरान संसद के सत्रों के आयोजन में कम से कम व्यवधान हो और पर्यावरण संबंधी सभी सुरक्षा उपायों का पालन किया जाए.

तेजी से बदलते इस दौर में यह आवश्यक है कि भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए. प्रस्तावित नए संसद भवन के लोक सभा कक्ष में 888 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी, जिसमें संयुक्त सत्र के दौरान 1224 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था भी होगी. इसी प्रकार, राज्यसभा कक्ष में 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी. नए संसद भवन में भारत की गौरवशाली विरासत को भी दर्शाया जाएगा. देश के कोने-कोने से आए दस्तकार और शिल्पकार अपनी कला और योगदान के माध्यम से इस भवन में सांस्कृतिक विविधता का समावेश करेंगे.

जानें वर्तमान संसद भवन के बारे में देश के सबसे भव्य भवनों में शामिल वर्तमान संसद भवन का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुकार, सर एडविन लुटियंस और सर हरबर्ट बेकर की निगरानी में किया गया था. संसद भवन की आधारशिला 12 फरवरी 1921 को द डयूक ऑफ कनॉट ने रखी थी. भवन का उद्घाटन भारत के तत्कालीन वायसरॉय, लॉर्ड इर्विन ने 18 जनवरी 1927 को किया था.

वर्तमान संसद भवन एक वृहत वृत्ताकार भवन है, जिसका व्यास 560 फीट है. इसकी परिधि एक तिहाई मील है और इसका क्षेत्रफल लगभग छह एकड़ है. इसके प्रथम तल के खुले बरामदे के किनारे पर क्रीम रंग के बालुई पत्थर के 144 स्तम्भ लगे हुए हैं, जिनकी ऊंचाई 27 फीट है. ये स्तम्भ इस भवन को एक अनूठा आकर्षण और गरिमा प्रदान करते हैं. पूरा संसद भवन लाल बालुई पत्थर की सजावटी दीवार से घिरा हुआ है जिसमें लोहे के द्वार लगे हुए हैं. कुल मिलाकर इस भवन में 12 द्वार हैं.

भवन का निर्माण छह वर्ष में पूरा हुआ और निर्माण पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी. सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली की पहली बैठक 19 जनवरी 1927 को संसद भवन में हुई.

यह भवन कई ऐतिहासिक अवसरों का साक्षी रहा है. साल 1921 में सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली और काउंसिल ऑफ स्टेट्स की स्थापना के साथ यहीं पर भारतीय विधानमंडल की यात्रा शुरू हुई थी. ब्रिटेन द्वारा भारत को सत्ता का हस्तांतरण भी इसी परिसर के भीतर हुआ था. भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने वाली संविधान सभा ने भी संसद के केंद्रीय कक्ष में बैठकें की थीं.

13 मई 1952 को स्वतंत्र भारत के इतिहास में आयोजित पहले आम चुनाव के माध्यम से निर्वाचित जन प्रतिनिधियों ने लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों के रूप में पहली बैठक इसी संसद भवन में की. तब से भारत की संसद हमारे देशवासियों की मार्गदर्शक रही है और भारत के संविधान द्वारा दिखाये गए मार्ग पर चलते हुए देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर रही है.

संसद भवन सम्पदा में संसद भवन, स्वागत कार्यालय भवन, संसदीय सौध, संसदीय सौध विस्तार भवन और संसदीय ज्ञानपीठ और इसके आस-पास के विस्तृत लॉन शामिल हैं. संसद भवन परिसर में संसदीय सौध, संसदीय ज्ञानपीठ और संसदीय सौध विस्तार भवन का निर्माण क्रमशः 1975, 2002 और 2017 में हुआ.

वर्तमान संसद में ज़रूरी व्यवस्थाएं दे पाना कठिन संसद भवन का निर्माण हुए 93 साल से अधिक समय बीत चुका है, इसलिए इस भवन में आधुनिक संचार, सुरक्षा और भूकंप रोधी व्यवस्थाएं उपलब्ध कराना कठिन कार्य है. इस भवन का पुनःविकास करने में भी कुछ कठिनाइयां हैं. इसलिए इसमें आवश्यक सुधार और व्यवस्थाएं उपलब्ध कराने में इसके ढांचे और स्वरूप को नुकसान पहुंच सकता है.

समय के साथ विधायी और संसदीय कार्य के परिमाण और जटिलता कई गुना बढ़ गई हैं और इसके कार्यक्षेत्र का भी विस्तार हुआ है, इसलिए एक लंबे अरसे से नए संसद भवन की जरूरत महसूस की जा रही थी. पिछले कुछ सालों में अनेक सदस्यों ने भी आधुनिक और उच्च प्रौद्योगिकी सुविधाओं से युक्त भवन की आवश्यकता पर बल दिया है, ताकि वे अपने निर्वाचकों की आवश्यकताओं पर सार्थक ढंग से ध्यान दे सकें और लोक महत्व के मुद्दों का शीघ्रातिशीघ्र समाधान कर सकें.

भारतीय लोकतंत्र समय की कसौटी पर खरा उतरा है और विगत वर्षों में सुदृढ़ होता गया है. समय के साथ, लोकतांत्रिक संस्थानों और प्रक्रियाओं में लोगों का विश्वास और गहरा हुआ है और उनके मनोभाव मुखरित होने से वे लाभान्वित भी हुए हैं. नया संसद भवन, भारत के लोकतंत्र और भारतवासियों के गौरव का प्रतीक होगा, जो न केवल हमारे गौरवशाली इतिहास अपितु, हमारे लोगों की शक्ति, एकता और विविधता का भी परिचय देगा.

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