नई दिल्लीः पीएनबी घोटाले में अबतक का सबसे बड़ा खुलासा हुआ है. ये रकम 12 हजार 700 करोड़ रुपये की नहीं बल्कि कुल 29 हजार करोड़ रुपये की है. मनमोहन सिंह और मोदी सरकार दोनों के दौरान कर्ज दिये गये हैं. इस घोटाले के लिए जो तरीका अपनाया गया है, वो खुद कई सवाल खड़े कर रहा है.
पीएनबी घोटाला 29 हजार करोड़ रुपये का है और इसमें से 9 हजार करोड़ मनमोहन सरकार के समय फर्जीवाड़ा के बक्से में गया जबकि 20 हजार करोड़ मोदी सरकार के समय आम जनता के हिस्से से गया है. फर्जीवाड़े से जुड़े पूरे दस्तावेजों की कॉपी एबीपी न्यूज के पास है. इन दस्तावेज में पीएनबी घोटाले का काला सच है जो भाजपा और कांग्रेस दोनों की पोल खोलती है वहीं बताती है कि बैंको के साथ दोनों सरकारों का सिस्टम भी फेल हो चुका था.
पंजाब नेशनल बैंक के दस्तावेजो की जांच के दौरान पता चला है कि ये घोटाला साल 2011 से शुरू हुआ तब कांग्रेस की सरकार थी और दस्तावेजों के मुताबिक कांग्रेस सरकार के समय
साल 2011 में 50 एलओयू के जरिए 750 करोड़ रुपये
साल 2012 में 100 एलओयू के जरिए 2300 करोड़ रुपये
साल 2013 में 250 एलओयू के जरिए 4000 करोड़ रुपये और
साल 2014 में 125 एलओयू के जरिए 2000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ
यूपीए सरकार में 9 हजार करोड़/एनडीए के शासनकाल में 20,000 करोड़ रुपये का घोटाला
दस्तावेज कहते हैं कि यूपीए सरकार के शासनकाल में 9 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कथित घोटाला हुआ जबकि एनडीए सरकार के आने के बाद भी घोटाला नहीं रुका बल्कि उसकी रकम बढ़ कर 29 हजार करोड़ रुपये हो गई यानि एनडीए के शासन काल में 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला हुआ.
पीएनबी ने जो दस्तावेज जांच एजेंसियो को सौंपे हैं उनकी जांच चार एजेंसियां-सीबीआई, आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और एसएफआईओ यानि सीरियस फ्राड इन्वेस्टीगेशन आफिस कर रही हैं. इन्हीं विभागों के आकलन के मुताबिक एनडीए के शासन में साल 2015 में 350 एलओयू के जरिए 4200 करोड़ रुपया, साल 2016 में 500 एलओयू के जरिए 7000 करोड़ रुपया, वहीं साल 2017 में 300 एलओयू के जरिए 9500 करोड़ रुपया देश के बाहर गया.
एनडीए के शासनकाल में मामा मेहुल चोकसी और भांजे नीरव मोदी ने बैंकों से किए एलओयू की शर्तों का पालन नहीं किया और 20 हजार करोड़ पर चोट पहुंचाई. बैंकिंग व्यवस्था में एलओयू यानी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग बैंक और कर्ज लेनेवाली कंपनी के बीच एक तरह का अनुबंध पत्र होता है जिसमें लोन लेने और लोन चुकाने की शर्तों का विवरण होता है.
दोनों पार्टियों के दावे चाहे कुछ भी हो लेकिन सच्चाई यही है कि घोटाला दोनों के शासनकाल में बेरोकटोक चलता रहा और अब आम जनता का ये पैसा डूब चुका है जिसकी वापसी के आसार ना के बराबर है. पीएनबी का साल 2011 से शुरू हुआ घोटाला हर साल बढ़ता ही गया और अब तक की जांच के दौरान पता चला है कि घोटालेबाज बैंक के पैसे से ही बैंक का कर्ज बीच बीच में चुकाते रहे जिससे किसी की नजर ना पड़े और हर साल विदेश में ये पैसा अलग अलग कंपनियों में जाता रहा. जांच एजेंसियो को ये भी शक है कि ये कंपनियां भी घोटालेबाजो की ही थी.
घोटाला कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया
जांच से जुड़े एक आला अधिकारी ने बताया कि घोटालेबाजों ने अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाला कुछ इस तरह से अंजाम दिया-पहले साल में बैंक से 100 रुपये उधार लिए गए, दूसरे साल मे बैंक ने जब 100 रुपये लौटाने को कहा तो बैंक से 200 रुपये उधार लिए गए और 100 रुपये वापस कर दिए गए. अगले साल फिर 200 की जगह 400 रुपये उधार लिए गए और 200 लौटा दिये यानि हर साल बैंक का लोन और ब्याज बढ़ता चला गया और साल 2011 का 750 करोड़ रुपया 2018 में 29 हजार करोड़ रुपये के घोटाले में तब्दील हो गया.
दो दर्जन से ज्यादा बैंको को अपना निशाना बनाया
अब तक की जांच के दौरान पता चला है कि घोटालेबाजो ने पीएनबी के जरिए दो दर्जन से ज्यादा बैंको को अपना निशाना बनाया और पीएनबी ने अपना ये शक भी जांच एजेंसियो को जाहिर किया है कि संभवतः घोटालेबाजों की विदेश स्थित बैंको के अधिकारियो से भी मिलीभगत रही होगी.
पीएनबी ने ये शक इसलिए जाहिर किया है कि क्योकि विदेश के बैंक तमाम नियम कानूनों को ताक पर एलओयू की रकमों को जारी करते रहे और किसी ने भी विरोध जाहिर नही किया और ना ही रिजर्व बैंक को बताया. फिलहाल इस मामले की जांच की आंच बैंको के बोर्डो से लेकर कुछ राजनेताओं तक जा सकती है और मामले की जांच के दौरान और अन्य बड़े खुलासे भी हो सकते हैं. गौरतलब है कि पीएनबी घोटाले में अब तक एक दर्जन से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी है.
हालांकि ये बात साफ है कि मनमोहन सिंह के राज में गए हों या मोदी के राज में ये पैसा आपके खून पसीने की कमाई थी, जो डूब गया है. अमेरिका में हीरा व्यापारी और इस कारोबार को बेहद करीब से जानने वाले अवि डांडिया का कहना है कि पैसा वापस आएगा ऐसी कोई भी उम्मीद पालना बेकार है.