नाबालिग बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए पॉक्सो कानून में बदलाव की चर्चा फिर तेज हो गई है. बाली उमर का प्यार में परिवार की इज्जत बचाने के लिए कर रहे कानून के दुरुपयोग ने इस पर न्यायपालिका का भी ध्यान खींचा है. खुद भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़  ने सहमति को लेकर उम्र में बदलाव करने की वकालत की है. 


चीफ जस्टिस ने क्या कहा?
रविवार को एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने रोमांटिक रिलेशनशिप को पॉक्सो में शामिल करने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा- इस केस में दर्ज 18 साल की उम्र पर ज्यूडिशरी को ध्यान देने की जरूरत है. 


सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका को पॉक्सो एक्ट के तहत कंसेंट (सहमति) की उम्र कम करने को लेकर चल रही बहस पर गौर करने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा कि सब जानते हैं कि POCSO एक्ट 18 साल से कम उम्र वालों के बीच सेक्शुअल एक्ट को आपराधिक मानता है, ये देखे बिना कि नाबालिगों के बीच सहमति थी या नहीं.


विवाद क्यों, 2 प्वाइंट्स...



  • पॉक्सो के आने से भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 के अनुसार सहमति से सेक्स करने की उम्र को 16 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया. यानी कोई व्यक्ति (नाबालिग भी) किसी बच्चे के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के यौन कृत्य करता है तो उसको पोक्सो एक्ट के अनुसार सजा मिलेगी.

  • पति या पत्नि 18 साल से कम उम्र के जीवनसाथी के साथ यौन कृत्य करता है तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है. पुलिस ऐसे कई मामलों में एफआईआर कर देती है. 


पॉक्सो एक्ट क्या है?
2012 में भारत सरकार ने नाबालिग बच्चों की सुरक्षा के लिए पॉक्सो बनाया था. इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चा माना गया है और उसके साथ यौन उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. साल 2019 में कानून में संशोधन कर दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. 


अब 3 केस के बारे में, जब पॉक्सो को लेकर हाईकोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी


केस-1
नवंबर 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के एक आरोपी को जमानत देते हुए इस पर गंभीर टिप्पणी की. 17 साल के एक आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा- पॉक्सो एक्ट का मकसद बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, न कि युवा वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना.


कोर्ट ने आदेश में आगे कहा- पीड़िता नाबालिग है, इसलिए उसकी सहमति के कोई कानूनी मायने नहीं है. प्यार की बुनियाद पर सहमति से बनाए गए संबंध के तथ्यों पर भी विचार किया जाना चाहिए. पीड़िता के बयान को नहीं सुनना अन्याय करने जैसा होगा. 


मामला क्या था?
दिल्ली के एक परिवार ने जून 2018 में 17 साल की नाबालिग बेटी की शादी करा दी. लड़की शादी से खुश नहीं थी और अपने प्रेमी संग भाग गई. अक्टूबर 2018 में दोनों ने पंजाब में जाकर शादी कर ली, जिसके बाद लड़की के परिवार वालों ने प्रेमी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी. 


केस-2 
अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में पॉक्सो का एक ऐसा ही मामला सामने आया था. प्रेमी-प्रेमिका के बीच आपसी सहमति से बने संबंध के बाद परिवार वालों ने एफआईआर दर्ज करा दी थी. केस में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी.


जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने केस आरोपी को जमानत देते हुए कहा- दोनों के बीच प्रेम में बनाए गए संबंध के बावजूद पुलिस ने परिवार के कहने पर पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज कर लिया जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है. 


मामला क्या था?
जनवरी 2020 में दर्ज शिकायत के मुताबिक 16 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया कि पढ़ाई के दौरान ही आरोपी युवक उसका पीछा करता था. दोस्ती से इनकार करने के बाद आरोपी युवक ने उसके साथ दुष्कर्म किया, जिससे वो गर्भवती हो गई. आरोपी का कहना था कि पीड़िता उसकी प्रेमिका है और दोनों के बीच स्कूल टाइम से ही अफेयर था. 


केस- 3
नवंबर 2022 में राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉक्सो के एक केस को खारिज करते हुए तल्ख टिप्पणी की. जस्टिस दिनेश मेहता ने केस खारिज करते हुए कहा कि हम ऐसे मामलों में मूकदर्शक नहीं बने रह सकते हैं. जस्टिस मेहता ने कहा- 16 साल की लड़की का 22 साल के लड़के से प्रेम करना और फिर संबंध बनाना कानूनन गलत है, लेकिन क्या सहमति से बने संबंध के इस केस में लड़के को सजा देना न्याय होगा?


मामला क्या था?
जोधपुर की एक हॉस्पिटल में नाबालिग लड़की ने बच्चे को जन्म दिया. अस्पताल प्रशासन ने इसकी सूचना पुलिस को दी, जिसके बाद पुलिस ने लड़की के प्रेमी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज कर लिया. 


भारत में पॉक्सो एक्ट के कितने केस?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2020 में पॉक्सो के 47,221 केस दर्ज किए गए, जबकि यह आंकड़ा साल 2019 में 47,335 था. पॉक्सो के सबसे अधिक केस सिक्किम (48.6%) और केरल (28.6%) दर्ज किए गए. 


पॉक्सो में सजा नहीं, बरी होते हैं ज्यादातर आरोपी
पॉक्सो के 10 साल होने पर विश्वबैंक की डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म (DE JURE) ने दर्ज केसों का विश्लेषण किया. रिपोर्ट में जस्टिस रिफॉर्म ने दावा किया कि पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमों में 43.44% मामले दोषी बरी कर दिए जाते हैं और केवल 14.03% मामलों में ही आरोपी को सजा मिल पाती है. 


रिपोर्ट में आगे कहा गया कि 138 मामलों का विस्तार से अध्ययन किया गया, तो पाया गया कि 22.9 प्रतिशत मामलों में आरोपी और पीड़ित एक-दूसरे को जानते थे.18% मामलों में पीड़ित और आरोपी के बीच फिजिकल रिलेशनशिप बनाने से पहले प्रेम-संबंध होने की बात सामने आई, जबकि 44% मामलों में आरोपी और पीड़ित दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह से अपरिचित थे.