नई दिल्ली: संसद ने गुरुवार को 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (संशोधन) विधेयक, 2019' को मंजूरी दी. जिसमें अश्लील प्रयोजनों के लिए बच्चों का उपयोग (चाइल्ड पोर्नोग्राफी) को परिभाषित करने के अलावा बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में मृत्युदंड का भी प्रावधान किया गया है. लोकसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि इस विषय को राजनीति के चश्मे से न देखा जाए, इस पर राजनीति करने का प्रयास नहीं किया जाए.
स्मृति ईरानी ने कहा कि यह एक ऐसी पहल है जो बच्चों और देश के भविष्य को सुरक्षित दिशा में ले जाने का प्रयास है. इस विधेयक का यही मकसद है. ईरानी की यह टिप्पणी कांग्रेस की राम्या हरिदास के बयान के परोक्ष संदर्भ में थी जिसमें उन्होंने उन्नाव बलात्कार मामले का जिक्र करते हुए बीजेपी पर निशाना था.
सरकार ने यौन अपराधों का एक राष्ट्रीय डाटा बेस तैयार किया है- स्मृति ईरानी
मंत्री ने कहा, "उन्नाव दुष्कर्म मामले में कांग्रेस की एक सदस्य ने कुछ बातें कही और उनके आसपास बैठे चार-पांच सांसद मेज थपथपा रहे थे जैसे कोई मजे की बात हो." उन्होंने कहा कि अपराध कानून संशोधन अधिनियम 2018 हो, पॉक्सो कानून में संशोधन की बात हो, अगर जघन्य अपराध होगा तो देश में संसद ने न्यायाधीशों को यह अधिकार दिया है कि वे मौत की सजा दें."
स्मृति ईरानी ने कहा कि मोदी सरकार ने कानून में यह नहीं कहा कि इससे सांसद या विधायक अछूता रहेगा. मंत्री ने कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध और बलात्कार के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने 1023 विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित करने को मंजूरी दी है. उन्होंने कहा कि अभी तक 18 राज्यों ने ऐसी अदालतों की स्थापना के लिए सहमति जतायी है.
महिला और बाल विकास मंत्री ने कहा कि सरकार ने यौन अपराधों का एक राष्ट्रीय डाटा बेस तैयार किया है. ऐसे 6,20,000 अपराधी हैं. अगर कोई ऐसे व्यक्तियों को रोजगार पर रखता है तो संबंधित व्यक्ति के बारे में इससे जानकारी लेने में मदद मिलेगी.
20 साल की सजा से लेकर मृत्युदंड तक का प्रावधान
मंत्री के जवाब के बाद लोकसभा ने विधेयक को मंजूरी दे दी. इससे पहले यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो चुका है. मौजूदा विधेयक में बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के मामलों में 20 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा तथा "दुर्लभतम मामलों" में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है. इस विधेयक के माध्यम से 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012' का और संशोधन किया गया है.
सरकार का मानना है कि कानून में संशोधन के जरिए कड़े दंडात्मक प्रावधानों से बच्चों बच्चों से जुड़े यौन अपराधों में कमी आने की संभावना है. इससे विपत्ति में फंसे बच्चों के हितों की रक्षा हो सकेगी और उनकी सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित किया जा सकेगा. संशोधन का लक्ष्य बच्चों से जुड़े अपराधों के मामले में दंडात्मक व्यवस्थाओं को अधिक स्पष्ट करना है.
दोनों सदनों से अब तक 19 बिल हो चुके हैं पारित
विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि इसका मकसद लैंगिक उत्पीड़नों और बच्चों को निशाना बनाने, अश्लील साहित्य के अपराधों से बालकों का संरक्षण करने और ऐसे अपराधों पर नजर रखने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना करना और उनसे संबंधित विषय है .
इसमें कहा गया है कि विधेयक लिंग निरपेक्ष है और यह बालकों के सर्वोत्तम हित और कल्याण को सर्वोपरि महत्व देगा ताकि बालक के अच्छे शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित किया जा सके. इसमें कहा गया है कि हाल के समय में देश में अमानवीय मानसिकता दर्शाने वाले बाल यौन अपराध के मामलों में वृद्धि हुई है. देश में बाल यौन अपराध की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये जाने की सख्त आवश्यकता है, इसलिए विधेयक में विभिन्न अपराधों के लिए दंड में वृद्धि के नाते उपबंध करने के लिहाज से संशोधन किया जा रहा हैं.
अबतक संसद के दोनों सदनों से 19 बिल पारित हो चुके हैं. जबकि लोकसभा में 27 बिल पारित हो चुके हैं और राज्यसभा में 23 बिल पारित हो चुके हैं. सरकार की मंशा दोनों सदनों में कुल 39 बिल पारित करवाने की है.