Ram Mandir: राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर अयोध्या में तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. प्राण प्रतिष्ठा से पहले होने वाला अनुष्ठान भी शुरू हो गया है. हालांकि, राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में शंकराचार्यों ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है. इसे लेकर काफी विवाद भी मचा हुआ है. वहीं, जब कवि कुमार विश्वास से इस संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि शंकराचार्यों पर टिप्पणी करना उनके लिए सही बात नहीं है. 


चंडीगढ़ में एक कार्यक्रम में पहुंचे कुमार विश्वास ने कहा, '550 वर्षों के संघर्ष का स्वप्न दिवस आ रहा है. पूरे विश्व में भगवान के प्रति जो भी आग्रह रखते हैं, उन सभी लोगों को हार्दिक बधाई है.' उन्होंने कहा, 'मेरा सौभाग्य है कि मुझे उस पुण्य क्षण में मौजूद होने का निमंत्रण मिला है. इसलिए मैं वहां जाऊंगा. मैं आप सभी को शुभकामना देता हूं कि आप सब लोग इस अवसर को भगवान राम के आदर्शों पर चलने के लिए स्वयं को प्रेरित करने का लक्ष्य बनाएं.'


शंकराचार्च ईश्वरीय वाणी: कुमार विश्वास


वहीं, जब विश्वास से सवाल किया गया कि शंकराचार्यों ने प्राण प्रतिष्ठा ने नहीं आने का फैसला किया है. इस पर आप क्या कहना चाहेंगे. इसके जवाब में कवि ने कहा, 'हम तो अपने पिता के आगे नहीं बोले हैं. अगर कोई व्यक्ति ऐसा कह रहा है तो वह खुद इतने बड़े संत हैं. उन पर टिप्पणी करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है.'


उन्होंने आगे कहा, 'हम उस परंपरा में हैं, जहां हम अपने पिता की किसी बात का प्रतिकार नहीं करते, उत्तर नहीं देते और टिप्पणी नहीं करते हैं. भगवान शंकराचार्य सनातन धर्म की मर्यादा पीठ के पितामह हैं. वे स्वयं ईश्वरीय वाणी हैं. मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए उन पर टिप्पणी करना सीमा से बाहर की बात है.'



शंकराचार्यों ने किया प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने से इनकार


दरअसल, एक इंटरव्यू में ज्योतिर्मठ के वर्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि उन्हें अभी तक प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण नहीं मिला है. मगर उन्हें निमंत्रण दिया भी जाता है, तो वह उसमें शामिल नहीं होंगे. अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है. अयोध्या में जिस तरह से अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है, वो शास्त्रों के विरुद्ध है. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि जो कुछ भी हो, वो शास्त्रों के अनुरुप हो.


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