मुंबई: महाराष्ट्र में कोरोना पुलिस को तो अपनी गिरफ्त में ले ही रहा है लेकिन साथ-साथ उन लोगों की भी कमर तोड़ रहा है जो कि पुलिस के लिये काम करते हैं. ये लोग हैं पुलिस के मुखबिर जिन्हें खबरी या फिर जीरो नंबर भी कहा जाता है. किसी अपराध की गुत्थी सुलझाने में ये लोग पुलिस की आंख और कान का काम करते हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन्हें काम नहीं मिल रहा और ये लोग भुखमरी के कगार पर आ गए हैं.


पुलिस देती है खबरियों को पैसा


वे गुमनाम रहकर अपराध से जंग लड़ते हैं. वे अपनी जान जोखिम में डालते हैं. ये पुलिस के ऐसे मोहरे हैं जो पर्दे के पीछे रहकर अपना काम करते हैं. ये लोग हैं खबरी. अपराधियों की धरपकड़ के लिये पुलिस खबरियों की मदद लेती है. बदले में पुलिस की ओर से इन्हें बतौर मेहनताना पैसा मिलता है.


इसके लिये हर पुलिस फोर्स में बाकायदा सीक्रेट फंड होता है जो कि खबरियों के बीच बांटा जाता है. कई खबरियों की आजीविका पुलिस से मिले इसी पैसे के आधार पर चलती है. लेकिन लॉकडाउन के बाद से खबरियों की जमात परेशानी में है.


पुलिस के खबरियों को हो रही है परेशानी


पुलिसकर्मी लॉकडाउन पर अमल करवाने में जुटे हुए हैं. ऐसे अपराध भी नहीं हो रहे जिनकी गुत्थी सुलझाने के लिये पुलिस को इन मुखबिरों की जरूरत पड़े. अब कुछ खबरियों ने महाराष्ट्र के डीजीपी को खत लिखकर अपनी व्यथा सुनाई है और मांग की है कि पुलिस के सीक्रेट फंड से उनकी मदद की जाए. उस्मान (बदला हुआ नाम) नाम के एक खबरी ने एबीपी न्यूज को बताया, ''हमने पुलिस के लिये कई सारे काम किये. कई मामले हल किए. जहां पुलिस नहीं पहुंचती है वहां हम लोग पहुंचते हैं. आज मेरे जैसे कई खबरी आज बेहद बुरी हालत में हैं. हम जैसों की ना तो पुलिस मदद कर रही है, ना सरकार और न कोई राजनीतिक पार्टी. हमारी रोजी रोटी बंद हो गई है.''


दो वक्त की रोटी के लिए करना पड़ रहा है संघर्ष


संदीप नाम के एक मुखबिर जो कि पिछले 25 साल से पुलिस के लिये काम कर रहा है का कहा है उसने बताया कि  हमारा काम रोज कुंआ खोदना रोज पानी पीने जैसा है. अगर काम होता है तो पैसा मिलता है. पिछले दो ढाई महीने से मैं और मेरे जैसे कई पेशेवर खबरियों के लिये 2 वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो गया है. हमारे परिवार का गुजारा पुलिस से मिले पैसे पर ही होता है. लॉकडाउन की वजह से हम घर से बाहर नहीं जा सकते और कोई काम नहीं कर सकते. सरकार को हम लोगों के बारे में भी सोचना चाहिये और घर चलाने के लिये कुछ आर्थिक मदद देनी चाहिये.


अंडरवर्लड के खिलाफ जंग में ये खबरी एक अहम औजार रहे हैं. 90 के दशक में जब मुंबई में अंडरवर्लड हावी था तब ऐसे खबरियों की मदद से ही पुलिस ने उनका उनकी धरपकड़ की या उनका एनकाउंटर किया. कौनसा गैंगस्टर कहां छिप कर ऑपरेट कर रहा है, उन्हें हथियार कहां से मिल रहे हैं, कौन किस डांस बार में जाता है, किसने गिरोह बदला है. ये तमाम जानकारियां पुलिस को इन खबरियों के मार्फत मिलतीं थीं.


अंडरवर्लड  का सफाया करने में खबरियों का अहम योगदान


अस्सी और 90 के दशक में अंडरवर्लड ने मुंबई की गलियों में खूब खूनखराबा किया था. फिल्मकारों, मिल मजदूरों, बिल्डरों और तमाम कारोबारियों की हत्या तो ये गैंगस्टर उगाही के लिये करते ही थे, लेकिन साथ साथ एक दूसरे के खून के भी प्यासे थे.फोन टेपिंग वगैरह के जरिये तो पुलिस इन गिरोहों से जुड़ी खुफिया जानकारी जुटाती ही थी लेकिन इसके साथ साथ इन खबरियों से भी अहम इनपुट मिलता था.


मुंबई पुलिस के पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अधिकारी राजा तांबट के मुताबिक हर पुलिस अधिकारी के पास अपने वफादार खबरियों की एक टीम होती थी और वो उनकी आर्थिक मदद करते थे.


सरकार की करनी चाहिए खबरियों की मदद- पूर्व पुलिस कमिश्नर


अंडरवर्लड की कमर टूटने के बाद खबरियों के नेटवर्क ने आतंकी संगठनों के मॉड्यूल्स का पर्दाफाश करने में भी मदद की. National Investigation Agency यानी एनआईए, कस्टम विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, इंटैलीजैंस ब्यूरो जैसी केंद्रीय एजेंसियों के भी अपने अपने खबरियों के नेटवर्क हैं. कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने जीवन के हर क्षेत्र के साथ गुमनामी में रहने वाले खबरियों की दुनिया को भी प्रभावित किया है.


नागपुर के पूर्व पुलिस कमिश्नर अंकुश धनविजय का कहना है कि वक्त के तकाजे को देखते हुए बुरे वक्त में पुलिस महकमें को पर्दे के पीछे काम करने वाले अपने इन नुमाइंदों का साथ देना चाहिये. आने वाले वक्त में अगर खराब आर्थिक स्थिति के कारण समाज में अपराध बढते हैं और शातिर दिमाग माफिया, लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं तो ऐसे में इन खबरियों की बेहद जरूरत महसूस होगी.


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